मोदी सरकार का पहला महीना उस
गर्द-गुबार से मुक्त रहा, जिसका अंदेशा सरकार बनने के पहले देश-विदेश के मीडिया
में व्यक्त किया गया था। कहा जा रहा था कि मोदी आए तो अल्पसंख्यकों का जीना हराम
हो जाएगा वगैरह। मोदी के आलोचक आज भी असंतुष्ट हैं। वे मानते हैं कि मोदी ने व्यावहारिक
कारणों से अपने चोले को बदला है, खुद बदले नहीं हैं। बहरहाल सरकार के सामने पाँच
साल हैं और एक महीने के काम को देखकर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
मोदी सरकार के पहले महीने के बारे में
विचार करने के पहले ही ‘हनीमून पीरियड’, ‘कड़वी गोली’ और ‘अच्छे दिन’ के जुम्ले हवा में थे और अभी हैं। मोदी के समर्थकों से ज्यादा
विरोधियों को उनसे अपेक्षाएं ज्यादा हैं। पर वे आलोचना के किसी भी मौके पर चूकेंगे
नहीं। खाद्य सामग्री की मुद्रास्फीति के आंकड़े जैसे ही जारी हुए, आलोचना की झड़ी
लग गई। इसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि ये आँकड़े मई के महीने के हैं, जब यूपीए
सरकार थी। महंगाई अभी बढ़ेगी। सरकारी प्रयासों से सुधार भी हुआ तो उसमें समय
लगेगा। हो सकता है कि सरकार विफल हो, पर उसे विफल होने के लिए भी समय चाहिए। पिछली
सरकार के मुकाबले एक अंतर साफ दिखाई पड़ रहा है। वह है फैसले करना।