Saturday, June 21, 2014

GYAN DARSHAN DIES SILENTLY


यह पोस्ट मैने अपने मित्र आलोक वर्मा के लिंक्डइन अकाउंट से हासिल की है। ज्ञान दर्शन जैसे चैनलों का बंद होना हमारे सामाजिक पतन की निशानी है। केवल ज्ञान दर्शन ही नहीं एकलव्य और व्यास चैनल भी खत्म हो रहे हैं।

Gyan Darshan, a knowledge dissemination television channel under IGNOU, breathed its last without anyone knowing about it. Instead of ratifying the legality of the channel by the I and B Ministry, which initiated the 'must carry' provision for cable operators, refused to allow the channel to function from a new transponder allotted by ISRO. Also dead are Eklavya channel operated by IITs and Vyas channel operated by the UGC.

Dr R Sreedher, a wellknown academician and media practitioner, who was responsible for setting up these channels to offer educational support to the disadvantaged rural India, has been waging a lone battle to revive these channels by convincing the Ministries of I & B and HRD to reconsider their decision.

If any of journalist friends want to to do this story can contact Dr R Sreedher at his mobile no +91 9810778459

The following is a version of events from Dr sreedher who have shape it these channels .

1. When we started transmission on 26th january 2000 we used the transponder on the ageing satellite INSAT 1B which was at the disposal of Doordarshan

2. Later in 2002, at the initiative of Mr Kasturi Rangan, Mr Abdul Kalam and others, a new full transponder was allotted to Gyan Darshan on Insat 3c. In fact Gyan Darshan was the first to dock with the satellite

3. Mr Kalam and Mr Kasturi rangan insisted on going digital in 2002 itself so Gyan Darshan became simulcast , analog and digital.

4. One analog transponder can be used to transmit 6 digital tv channels in those days and today i hear that due to compression technologies we can go upto 12

5. Hence Gyan Darshan transponder's capacity was augmented for 6 digital channels in 2002

6. 2003 Jan 26 -Eklvaya - the GD3 channel- technology - was launched with IITs providing the infrastructure and contents but uplinked form IGNOU

7. Jan 26, 2004 Gyan Darshan 4 - Vyas Channel - Higher education channel - was launched with UGC taking the resposiility through conosrtiumof educational communciation

8. 2004 - Govt declares Gyan Darsan channel - a must carry for cable operators along with Lok Sabha and Rajya sabha channels

9. It was never the intentin of the Govt to run these chanels through IGNOU. The first order in Jan 2000 itself said that it was only an interim arrangement till a separate entitity for Educational media transission was established

10. Educational Brodcasting coroporation of India ( Gyan Bharati) was also proposed

11.Since it was found that IGNOU is not the right place to run these channels due to change of Vice chanellor and his way of working on Septemer 30th 2003 Government issued an extra ordinary gazette to take away the role of IGNOU in managing these channels

12. IGNOU was asked to submit a report to the new committee which was to meet in Jan 2004 and the VC was just one of the members of the same.

13. IGNOU VC used his clout and postponed the meeting

14.February 2004 - Loksabha was dissolved and country went it for elections

15. UPA Government thought that these were NDA's babies and gave lukewarm response

16. 2012 - Government proposes to start 40 DTH channels for education while the 4 earlier channels were languishing


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Friday, June 20, 2014

होलसेल नियुक्तियों की राजनीतिक संस्कृति

 शुक्रवार, 20 जून, 2014 को 16:20 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे अपने साथ ऐसे मंत्रालयी कर्मचारियों को ‘किसी भी रूप में’ न रखें जो यूपीए सरकार के मंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं. यह निर्देश अपने ढंग का अनोखा है और नौकरशाही के राजनीतिकरण को रेखांकित करता है.
नई सरकार बनने के साथ नियुक्तियां और इस्तीफे चर्चा का विषय बन रहे हैं.
शुरुआत प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र की नियुक्ति से हुई थी, जिसके लिए सरकार ने एनडीए सरकार के बनाए एक नियम को बदलने के लिए अध्यादेश का सहारा लिया था.
राज्यपालों, अटॉर्नी और एडवोकेट जनरलों, महिला आयोग और अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग या योजना आयोग के अध्यक्षों तक मामला समझ में आता है.
हम मानकर चल रहे हैं कि ऐसे पदों पर नियुक्तियाँ राजनीतिक आधार पर होती हैं लेकिन इस निर्देश का मतलब क्या है? क्या यह नौकरशाही की राजनीतिक प्रतिबद्धता का संकेत नहीं है?
नियुक्तियों का दौर शुरू हुआ है तो अभी यह चलेगा. मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव होगा. फिर दूसरे पदों पर. यह क्रम नीचे तक जाएगा. ऊँचा अधिकारी नीचे की नियुक्तियाँ करेगा. पर कुछ सवाल खड़े होंगे, जैसे इस बार राज्यपालों के मामले पर हो रहे हैं.

Tuesday, June 17, 2014

राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौतियाँ

शनिवार को भारतीय नौसेना के सबसे बड़े विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्‍य से नरेंद्र मोदी ने क्या संदेश दिया? उनकी सरकार बने अभी तीन सप्ताह हुए हैं और उसने एक से ज्यादा बार इस बात की ओर इशारा किया है कि हमारा ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर है। क्या यह सिर्फ प्रचारात्मक है या इसके पीछे छिपी कोई रणनीति है? विक्रमादित्य का मुआयना करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना के अधिकारियों और नाविकों को संबोधन में कहा, 'न हम आँख दिखाएंगे और न आँख झुकाएंगे। हम आँख से आँख मिलाकर बात करेंगे।' मोदी ने एक मजबूत नौसेना की जरूरत को रेखांकित करते हुए छत्रपति शिवाजी का उल्लेख किया। शिवाजी जानते थे कि नागरिक व्यापार के लिए ताकतवर नौसेना भी जरूरी होती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा और विक्रमादित्य की सवारी

देश की सुरक्षा से जुड़ी तीन-चार खबरें एक साथ सामने आईं हैं. इस हफ्ते जम्मू-कश्मीर सीमा पर फिर से गोलाबारी हुई है. तीन हफ्ते पहले ही नई सरकार ने अपना काम शुरू किया है. शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का आगमन खास खबर थी. ऐसे में गोलाबारी का मतलब क्या है? क्या यह संयोग रक्षामंत्री अरुण जेटली की जम्मू-कश्मीर यात्रा से जुड़ा हुआ था? हालंकि अरुण जेटली ने इस गोलाबारी को ज्यादा महत्व नहीं दिया, पर तमाम पहेलियाँ अनबुझी हैं.

Monday, June 16, 2014

लोकतंत्र तभी सफल होगा जब दबाव नागरिक का होगा

नई सरकार के लिए राष्ट्रपति के पहले अभिभाषण की उन बातों ने देश का ध्यान खींचा है, जो आर्थिक और तकनीकी विकास से जुड़ी हैं. तमाम बातों की सफलता या विफलता उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है, इसलिए उनके बारे में कहने से कोई लाभ नहीं है. बेहतर होगा कि हम अगले महीने आने वाले बजट का इंतज़ार करें, जिसमें कुछ ठोस कार्यक्रम होंगे. जनता का मसला है महंगाई. इस बार बारिश कम होने का अंदेशा सबसे बड़ा खतरा है. कैबिनेट सचिव अजित सेठ पिछले कुछ दिनों से केवल इसी विषय पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि अनाज और अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों को बढ़ने से किस तरह रोका जाए. प्याज, आलू, गैर-बासमती चावल, दालों और दूध की कीमतों पर सरकार की निगाहें हैं. अगले छह महीनों की अशंकाओं को सामने रखकर सरकार काम कर रही है. पर सरकार उस खतरे से निपटने की कोशिश करे उसके पहले ही दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ शहरों में पड़ रही गरमी ने उसके सामने संकट खड़ा कर दिया है. यह संकट बिजली की कटौती का है. बिजली और पानी के संकट ने जीना हराम कर दिया है. संकट की गहराई से ज्यादा सरकार मीडिया में इसकी चर्चा से घबराती है. सही या गलत इस चुनाव के बाद से मीडिया और शहरी नागरिक राजनीति के केंद्र में हैं. उनके सभी मसले सार्थक नहीं होते. पर इनके तेज स्वर इनकी महत्ता स्थापित करने में सफल हुए हैं.