Monday, February 10, 2014

केजरी और केंद्र की कव्वाली

मंजुल का कार्टून
हिंदू में केशव का कार्टून
देवयानी खोब्रागड़े के पति को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विवि में नौकरी की पेशकश। यानी अमेरिका नहीं माना तो देवयानी का परिवार भारत में रह सकेगा। यह खबर कोलकाता के टेलीग्राफ ने छापी है। पर टेलीग्राफ की रोचक खबर है उसकी लीड। कोलकाता में वाम मोर्चा की रैली प्रभावशाली थी, पर पार्टी के भीतर मतभेद भी उजागर हो गए। पार्टी का कार्यकर्ता निराश है। दो दिन पहले वाम मोर्चा के दो एमएलए तृणमूल में चले गए। उधर पार्टी तीसरे मोर्चे को लेकर परेशान हैं। दिल्ली में केजरीवॉल बनाम केंद्र सरकार आज भी सुर्खियों में है। नवभारत टाइम्स ने आप के मंत्रियों को दी गई सुविधाओं की सूची छापी है। जो सुविधाएं गिनाई गई हैं, वे सामान्य जरूरतों से जुड़ी हैं। उनमें कुछ विशेष नहीं है। नजर डालें इन कतरनों पर
नवभारत टाइम्स

Sunday, February 9, 2014

केजरीवाल की लड़ाई का निर्णायक दौर शुरू

मंजुल का कार्टून
दैनिक भास्कर और दिल्ली के नवभारत टाइम्स के सकल प्रभाव से भले ही मेरी असहमति है, पर कवरेज में नयापन लाने के लिहाज से ये दो अखबार उल्लेखनीय हैं। भास्कर की रविवारीय पेज 1 की विशेष खबरें पठनीय होती है। रोज के अखबार में कुछ खबरें तस्वीरों के साथ लगाना और खासतौर से दुनिया की रोचक जानकारियाँ देना अच्छा है। हालांकि इसके पीछे अभी तक यह उद्देश्य नजर नहीं आता कि पाठकों की वैश्विक समझ बनाई जाए। मोटी बात मसाला परोसने तक सीमित लगती है। फिर भी इसके बहाने काफी  चीजें सामना आ जाती है। नवभारत टाइम्स खासतौर से दिल्ली की रोचक खबरें दे रहा है। और यह अनायास नहीं है, उनके पीछे योजना भी है। अलबत्ता भाषा के मामले में इस अखबार की नीति खोखली है। आज के अखबारों में केजरीवाल की यह चेतावनी महत्वपूर्ण तरीके से परोसी गई है कि मैं किसी भी हद तक जाऊँगा। नवभारत टाइम्स ने आज अन्ना का इंटरव्यू भी छापा है जो समय के साथ मौजूं है। दिल्ली में मणिपुर की लड़की से रेप आज की दूसरी महत्वपूर्ण घटना है। मोदी और राहुल की जवाबी कव्वाली को भी अखबारों ने महत्व दिया है।

नवभारत टाइम्स

गले की फाँस बना तेलंगाना

संसद का यह महत्वपूर्ण सत्र तेलंगाना के कारण ठीक से नहीं चल पा रहा है। इसके पहले शीत सत्र और मॉनसून सत्र के साथ भी यही हुआ। तेलंगाना की घोषणा से कोई खुश नहीं है। कांग्रेस ने सन 2004 में तेलंगाना बनाने का आश्वासन देते वक्त नहीं सोचा था कि यह उसके लिए घातक साबित होने वाला है। इस बात पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया है कि सन 2004 में कांग्रेस के प्राण वापस लाने में तेलंगाना की जबर्दस्त भूमिका थी। एक गलतफहमी है कि 2004 में भाजपा की हार इंडिया शाइनिंग के कारण हुई। भाजपा की हार का मूल कारण दो राज्यों का गणित था।

आंध्र और तमिलनाडु में भाजपा  के गठबंधन गलत साबित हुए। दूसरी और कांग्रेस ने तेलंगाना का आश्वासन देकर अपनी सीटें सुरक्षित कर लीं। सन 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कुल 182 सीटें मिलीं थीं, जो 2004 में 138 रह गईं। यानी 44 का नुकसान हुआ। इसके विपरीत कांग्रेस की सीटें 114 से बढ़कर 145 हो गईं। यानी 31 का लाभ हुआ। यह सारा लाभ तमिलनाडु और आंध्र से पूरा हो गया। 1999 में इन दोनों राज्यों से कांग्रेस की सात सीटें थीं, जो 2004 में 39 हो गईं। इन 39 में से 29 आंध्र में थीं, जहाँ 1999 में उसके पास केवल पाँच सीटें थीं। कांग्रेस को केवल लोकसभा में ही सफलता नहीं मिली। उसे आंध्र विधानसभा के चुनाव में भी शानदार सफलता मिली, और वाईएसआर रेड्डी एक ताकतवर मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हुए।

Saturday, February 8, 2014

अपना समर्थन वापस ले लीजिए प्लीज़!!!

हिंदू में केशव का कार्टून
इंडियन एक्सप्रेस में उन्नी

मंजुल का कार्टून
आप के मोर्चे खुलते जा रहे हैं। उसका लोकपाल कानून तो बनने से रहा, पर उसके सहारे वह कांग्रेस की बखिया उधेड़ने में कामयाब होती जा रही है। उधर कांग्रेस अपने गले में तेलंगाना का प्रस्ताव लटकाकर घूम रही है। इस समय सबसे ज्यादा कार्टून आप को लेकर बन रहे हैं। यह स्थिति कॉमिकल है या संजीदा? नजर डालें आज की कतरनों पर

Friday, February 7, 2014

असीमानंद से तेलंगाना ऑटो एक्सपो तक

हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून

आप सरकार और केंद्र सरकार के बीच मुठभेड़ जारी है। एक दूसरे किस्म की मुठभेड़ कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही है। इशरत जहाँ मामला और असीमानंद का मामला जितना सीधा लगता है उससे ज्यादा टेढ़ा है। इसकी अनुगूँज 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद सुनाई पड़ेगी। इसकी तार्किक परिणति भी हमें दिखाई पड़ेगी, शायद कुछेक साल बाद। बशर्ते तब तक कुछ और बड़े घोटालें न खुलें। दिल्ली में डिफेंस एक्सपो और ऑटो एक्सपो के साथ-साथ तेलंगाना एक्सपो भी चल रहा है। इस बात को ऊपर आप हिंदू में प्रकाशित कार्टून से समझ सकते हैं।  
टाइम्स ऑफ इंडिया

This Lok Sabha cleared 17% of bills in less than five minutes

NEW DELHI: Don't be surprised if Parliament manages to clear a slew of anti-graft bills, theTelangana Bill or the Communal Violence Prevention Bill despite the din in the next few days of the current session — 17% of bills, 20 to be precise, were passed by the 15th Lok Sabhawith less than five minutes' discussion.
According to an analysis by PRS Legislative Research, of the 118 bills passed so far by this Lok Sabha, only 23%, or 27 bills, have been passed after more than three hours of discussion. Twenty-six bills (22%) were passed after two to three hours of discussion. Twenty-four bills (20%) were passed after discussions ranged between one and two hours. Eleven bills (9%) were passed after discussions lasting 30 minutes to an hour. And 10 bills (8%) drew the attention of members for barely half an hour. No less than 20 bills were passed in less than five minutes.
पूरी खबर पढ़ें यहाँ 

नवभारत टाइम्स