Tuesday, January 28, 2014

राहुल सवालों को टालेंगे तो फँसेंगे

 मंगलवार, 28 जनवरी, 2014 को 16:52 IST तक के समाचार
राहुल गांधी की सरलता को लेकर सवाल नहीं है. पार्टी की व्यवस्था को रास्ते पर लाने की उनकी मनोकामना को लेकर संशय नहीं. वह सच्चे मन से अपनी बात कहते हैं, इससे भी इनकार नहीं.
पर लगता है कि कांग्रेस को घेरने वाले जटिल सवालों की गंभीरता से या तो वह वाकिफ नहीं हैं, वाकिफ होना नहीं चाहते या पार्टी और सरकार ने उन्हें वाकिफ होने नहीं दिया है.
पिछले दस साल की सक्रिय राजनीति में राहुल का यह पहला इंटरव्यू था. उम्मीद थी कि वह अपने मन की बातें दमदार तरीके से कहेंगे.
खासतौर से इस महीने हुई कांग्रेस महासमिति की बैठक में उनके उत्साहवर्धक भाषण के संदर्भ में उम्मीद काफी थी. पर ऐसा हो नहीं पाया.
उनसे काफी तीखे सवाल पूछे गए, जिनके तीखे जवाब देने के बजाय वह सवालों को टालते नजर आए.
उनसे पूछा गया कि वह टू जी के मामले में कुछ क्यों नहीं बोले, कोल-गेट मामले में चुप क्यों रहे? पवन बंसल और अश्विनी कुमार के मामले में संसद में छह दिन तक गतिरोध रहा, आपको नहीं लगता कि उस समय बोलना चाहिए था? महंगाई पर नहीं बोलना चाहिए था?

राहुल के इंटरव्यू के निहितार्थ


आज सुबह के अखबारों से लेकर दिन के मीडिया तक पर राहुल का इंटरव्यू छाया है। राहुल का मीडिया के सामने जाना बहादुरी का परिचायक है, पर उनकी तैयारी कच्ची थी। दिल्ली में आप सरकार का एक महीना पूरा हो गया। इसकी रस्म अदायगी भी मीडिया में हो रही है। 

                                         अमर उजाला


राष्ट्रपति के भाषण की राजनीति

हमारे राष्ट्रपतियों के भाषण अक्सर बौद्धिक जिज्ञासा के विषय होते हैं. माना जाता है कि भारत का राष्ट्रपति देश की राजनीतिक सरकार के वक्तव्यों को पढ़ने का काम करता है. एक सीमा तक ऐसा है भी, पर ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्होंने सामयिक हस्तक्षेप किए हैं और सरकार की राजनीति के बाहर जाकर भी कुछ कहा. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्र के नाम सम्बोधन को राजनीति मानें या राजनीति और संवैधानिक मर्यादाओं को लेकर उनके मन में उठ रहे प्रश्नों की अभिव्यक्ति? यह सवाल इसलिए उठा क्योंकि गणतंत्र दिवस के ठीक पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी का धरना चल रहा था. देश भर में इस बात को लेकर चर्चा थी कि क्या ऐसे मौके पर यह धरना उचित है? क्या अराजकता का नाम लोकतंत्र है? संवैधानिक मर्यादा की रक्षा करने की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री को क्या निषेधाज्ञा का उल्लंघन करना चाहिए?

Monday, January 27, 2014

गणतंत्र दिवस की राजनीति और तेलंगाना की भैंस गई पानी में

हिंदू में सुरेन्द्र का कार्टून

गणतंत्र दिवस की छुट्टी के कारण आज देश के काफी शहरों से अखबार नहीं निकलते। हालांकि अब यह गए जमाने की बात है कि एक दिन खबर विहीन हो जाता है। अब तो 24 घंटे के न्यूज चैनल हैं। फिर भी प्रिट मीडिया सोचने-विचारने के लिए कुछ छोड़ जाता है। टीवी चैनलों का एक दोष यह है कि वे सब एक दूसरे की नकल करते हैं। अखबारों के सोच-समझ में अंतर दिखाई पड़ता है। मसलन आज के जागरण की लीड है कि गणतंत्र परेड में भी सियासत झलकी। उसके अनुसार कांग्रेस शासित राज्यों की झाँकियाँ बढ़-चढ़कर थीं और दूरदर्शन की कमेंट्री में सरकारी संदेश छिपे थे। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति के राष्ट्र के नाम संदेश पर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में विवेचन है। अखबार ने कई विश्लेषकों से बात की। इनमें विनोद मेहता को इस रूप में उधृत किया है, 'With Mukherjee's remarks that "populist anarchy" could not be a "substitute for governance" being seen as a reference to the recent Aam Aadmi Party dharna, Outlook editor in chief Vinod Meta said, "I can't remember the last time the President's speech was on page one of newspapers since it is usually full of platitudes." 

Mehta said he found it a "matter of concern that such a speech has been made since the President's office is seen as above politics. But the reference to constitutional anarchy clearly refers to AAP as it is so close to the Delhi protests. I don't think there is any ambiguity. In fact, Arvind Kejriwal may have reason to strike a mild protest" पूरी खबर यहाँ पढ़ेंइंडियन एक्सप्रेस ने इस विषय पर सम्पादकीय लिखा है जिसमें कहा गया है, While speaking of democracy’s marvellous ability to renew itself, the president spoke of the way ends are met in politics, through discussion and negotiation, how those norms could not be relegated or sacrificed, and the need to ensure that “healthy differences of opinion” do not lead to “an unhealthy strife” within the polity. He spoke of the plunging quality of debate. As the president talked to the people, it was tempting to read between the lines, guess at which party or mobilisation was being alluded to — and there could be several interpretations. But above all, President Mukherjee managed to convey the truth about these times, without attacking or holding up one or the other political force, while involving them all, along with the citizens of this nation (पूरा सम्पादकीय पढ़ें यहाँ). इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर आंध्र की वह खबर ली है, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने विधान सभा से आग्रह किया है कि तेलंगाना बिल पास न करे। बहरहाल आज की कतरनों पर नजर डालें

नवभारत टाइम्स


Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र का दर्शन

आज सुबह अखबारों में प्रकाशित राष्ट्रपति के भाषण से लगा कि इसपर राजनीति का असर है। दूसरी ओर विचार करते हैं तो लगता है कि यह एक तटस्थ संरक्षक की राय है। प्रणब मुखर्जी बेशक राजनेता हैं, पर अनेक कारणों से वे तटस्थ पर्यवेक्षक लगते हैं। आज के अखबारों में अरविंद केजरीवाल का गणतंत्र दिवस भाषण भी छपा है। इसमें बाकी बातें पीछे रह गईं, सबसे आगे उनकी मीडिया को लेकर कड़वाहट सामने आई। किसी न किसी मौके पर हमें अपना मीडिया अराजक लगने लगता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए।यों आज के अखबारों में गणतंत्र के दर्शन पर काफी सामग्री है। कम्प्यूटर ऑन करने पर सबसे पहले दर्शन होते हैं गूगल लोगो के


नवभारत टाइम्स