Sunday, May 12, 2013

दिल्ली के येदियुरप्पा न बन जाएं मनमोहन


कर्नाटक ने कांग्रेस की मुश्किल घड़ी में बड़ी मदद की है। उसके डूबते जहाज को सहारा दिया है, बल्कि गहरी मूर्च्छा में पड़ी पार्टी को संजीवनी दी है। पर यह सब इतना ही है, इससे आगे नहीं। कांग्रेस कह रही है कि अब तो ट्रेंड सेट हो गया है, जो 2014 के चुनाव तक चलेगा। यह भी कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस की नीतियों की जीत है। 

मनमोहन सिंह ने यह जीत राहुल गांधी को समर्पित की है और दिग्विजय सिंह ने हार का ठीकरा नरेन्द्र मोदी के सिर पर फोड़ा है। कांग्रेस नेता नारायणसामी के अनुसार नरेन्द्र मोदी डूब गए। क्या कर्नाटक के मतदाता ने भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट दिया है? बेशक उसने भाजपा के खिलाफ वोट दिया है, पर यह भाजपा के भ्रष्टाचार के खिलाफ है या प्रदेश के विफल प्रशासन के खिलाफ? या भाजपा के वोटों के बँटवारे के कारण? 

सम्भव है सारे कारणों का कुछ न कुछ योगदान हो, पर यह वोट काग्रेस के पक्ष में सकारात्मक न होकर भाजपा के खिलाफ नकारात्मक वोट है। कांग्रेस ने इसका ज्यादा फायदा उठाया, क्योंकि उसने खुद को विकल्प के रूप में पेश किया। जेडीएस को उसने विकल्प नहीं बनाया, क्योंकि जेडीएस का जनाधार छोटा है और 2008 के चुनाव में वोटर ने जेडीएस की धोखाधड़ी के खिलाफ ही भीजेपी को जिताया था।

Saturday, May 11, 2013

अगला कौन?

हिन्दू में केशव का कार्टून

15 नवम्बर 2010 ए राजा, टूजी

7 जुलाई 2011 दयानिधि मारन, एयरसेल-मैक्सिस डील

26 जून 2012 वीरभद्र सिंह, कारोबारी सौदों में घूसखोरी

10 मई 2013 पवन कुमार बंसल और अश्विनी कुमार, रेलगेट और कोलगेट


अगला कौन?

सतीश आचार्य का कार्टून

Friday, May 10, 2013

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के कुछ ‘गैर-कांग्रेसी’ कारण


Photo: Shikari Rahul!
(Fake Encounter in Karnataka)

ऊपर सतीश आचार्य का कार्टून नीचे हिन्दू में केशव का कार्टून
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार हैं राहुल गांधी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार हैं राहुल गांधी. राहुल गांधी से पूछें तो शायद वे मधुसूदन मिस्त्री को श्रेय देंगे. या कहेंगे कि पार्टी संगठन ने अद्भुत काम किया.

कांग्रेस संगठन जीता ज़रूर पर पार्टी अध्यक्ष परमेश्वरन खुद चुनाव हार गए. कमल नाथ के अनुसार यह कांग्रेस की नीतियों की जीत है.

कांग्रेस की इस शानदार जीत के लिए वास्तव में पार्टी संगठन, उसके नेतृत्व और नीतियों को श्रेय मिलना चाहिए.

पर उन बातों पर भी गौर करना चाहिए, जिनका वास्ता कांग्रेस पार्टी से नहीं किन्ही और ‘चीजों’ से हैं.

राज्यपाल की भूमिका
सन 1987 में जस्टिस आरएस सरकारिया आयोग ने राज्यपाल की नियुक्तियों को लेकर दो महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे. पहला, घनघोर राजनीतिक व्यक्ति को जो सक्रिय राजनीति में हो, उसे राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए.

दूसरा यह कि केंद्र में जिस पार्टी की सरकार हो, उसके सदस्य की विपक्षी पार्टी के शासन वाले राज्य में राज्यपाल के रूप में नियुक्ति न हो.

30 मई 2008 को येदियुरप्पा सरकार बनी और उसके एक साल बाद 25 जून 2009 को हंसराज भारद्वाज कर्नाटक के राज्यपाल बने, जो संयोग से इन योग्यताओं से लैस थे.

विधि और न्याय मंत्रालय में भारद्वाज ने नौ वर्षों तक राज्यमंत्री के रूप में और पांच साल तक कैबिनेट मंत्री रहकर कार्य किया. वे देश के सबसे अनुभवी कानून मंत्रियों में से एक रहे हैं.

वे तभी खबरों में आए जब उन्होंने यूपीए-1 के दौर में कई संवेदनशील मुद्दों में हस्तक्षेप किया. प्रायः ये सभी मामले 10 जनपथ से जुड़े थे.

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एक माँ का अचानक खो जाना


प्रमोद जोशी
 साहित्य, संगीत, चित्रकला और रंगमंच पर माँ विषय सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाला विषय है। निराशा में आशा जगाती, निस्वार्थ प्रेम की सबसे बड़ी प्रतीक है माँ। जितना वह हमें जानती है हम उसे नहीं जानते। दक्षिण कोरिया की लेखिका क्युंग-सुक शिन ने अपनी अंतर्राष्ट्रीय बेस्ट सेलर प्लीज लुक आफ्टर मॉममें यही बताने की कोशिश की है कि जब माँ हमारे बीच नहीं होती है तब पता लगता है कि हम उसे कितना कम जानते थे। सन 2011 के मैन एशियन पुरस्कार से अलंकृत इस उपन्यास का 19 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। और अब यह हिन्दी में माँ का ध्यान रखना नाम से उपलब्ध है।
इसकी कहानी 69 साल की महिला पार्क सो-न्यो के बारे में है, जो दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल के मेट्रो स्टेशन पर भीड़ के बीच उसका हाथ पति के हाथ से छूटा और वह बिछुड़ गई। उसका झोला भी उसके पति के पास रह गया। वह खाली हाथ थी। वे दोनों अपने बड़े बेटे ह्योंग चोल के पास आ रहे थे। पूरे उपन्यास में माँ की गुजरे वक्त की कहानी है। पाँच बच्चों की माँ। इनमें तीसरे नम्बर की बेटी लेखिका है। वह ह्योंग चोल को वकील बनाना चाहती थी, पर वह कारोबारी बना। माँ के बिछुड़ जाने पर ह्योंग चोल को अफसोस है। माँ की कहानी त्याग की कहानी है। उसने अपना जन्मदिन भी पिता के जन्मदिन के साथ मनाना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे खामोशी से माँ का असली जन्मदिन नज़रन्दाज कर दिया गया। जब वह खो गई तो इश्तहार देने के लिए किसी के पास उसकी फोटो नहीं थे। फोटो खिंचाते वक्त वह गायब हो जाती थी। बड़े बेटे को जब शहर में हाईस्कूल के सर्टिफिकेट की ज़रूरत हुई तो उसने पिता को फोन किया कि किसी के हाथ बस से भेज दो, मैं ले लूँगा। उस ठंडी रात में माँ वह कागज लेकर खुद शहर जा पहुँची।

Monday, May 6, 2013

इस स्टूडियो-उन्माद को भी बन्द कीजिए


अच्द्दा हुआ कि लद्दाख में चीनी फौजों की वापसी के बाद तनाव का एक दौर खत्म हुआ, पर यह स्थायी समाधान नहीं है। भारत-चीन सीमा उतनी अच्छी तरह परिभाषित नहीं है, जितना हम मान लेते हैं। दूसरे हम पूछ सकते हैं कि हमारी सेना अपनी ही सीमा के अंदर पीछे क्यों हटी? इस सवाल का जवाब बेहतर हो कि राजनयिक स्तर पर हासिल किया जाए। पिछले हफ्ते कई जगह कहा जा रहा था कि भारत सॉफ्ट स्टेट है। सरकार ने शर्मनाक चुप्पी साधी है। बुज़दिल, कायर, दब्बू, नपुंसक। खत्म करो पाकिस्तान के साथ राजनयिक सम्बन्ध। तोड़ लो चीन से रिश्ते। मिट्टी में मिला दी हमारी इज़्ज़त। इस साल जनवरी में जब दो भारतीय सैनिकों की जम्मू-कश्मीर सीमा पर गर्दन काटे जाने की खबरें आईं तब लगभग ऐसी प्रतिक्रियाएं थीं। और फिर जब लद्दाख में चीनी घुसपैठ और सरबजीत सिंह की हत्या की खबरें मिलीं तो इन प्रतिक्रयाओं की तल्खी और बढ़ गई। टीवी चैनलों के शो में बैठे विशेषज्ञों की सलाह मानें तो हमें युद्ध के नगाड़े बजा देने चाहिए। सरबजीत का मामला परेशान करने वाला है, पर मीडिया ने उसे जिस किस्म का विस्तार दिया वह अवास्तविक है। हम भावनाओं में बह गए। सच यह है कि जब सुरक्षा और विदेश नीति पर बात होती है तो हम उसमें शामिल नहीं होते। उसे बोझिल और उबाऊ मानते हैं। और जब कुछ हो जाता है तो बचकाने तरीके से बरताव करने लगते हैं। हमने 1965, 1971 और 1999 की लड़ाइयों में पाकिस्तान के साथ राजनयिक रिश्ते नहीं तोड़े तो आज तोड़ने वाली बात क्या हो गईहम बात-बात पर इस्रायली और अमेरिकी कार्रवाइयों का जिक्र करते हैं। क्या हमारे पास वह ताकत है? और हो भी तो क्या फौरन हमले शुरू कर दें? किस पर हमले चाहते हैं आप?  बेशक हम राष्ट्र हितों की बलि चढ़ते नहीं देख सकते, पर हमें तथ्यों की छान-बीन करने और बात को सही परिप्रेक्ष्य में समझना भी चाहिए।