हिग्स बोसोन की खोज निश्चित रूप से इनसान का एक लम्बा कदम है, पर इससे सृष्टि की सारी पहेलियाँ सुलझने वाली नहीं हैं। केवल पार्टिकल फिजिक्स की एक श्रृंखला की अप्राप्त कड़ी मिली है। हमें एक अरसे से मालूम है कि सृष्टि में कुछ है, जिसे हम देख नहीं पा रहे हैं। उसे हमने पा लिया है, भले ही उसे देखना आज भी असम्भव है। क्या इससे एंटी मैटर या ब्लैक मैटर के स्रोत का भी पता लग जाएगा? क्या इससे सृष्टि के जन्म की कहानी समझ में आ जाएगी, कहना मुश्किल है। इसमें दो राय नहीं कि आधुनिक फिजिक्स ने जबर्दस्त प्रगति की है, पर अभी हम ज्ञान की बाहरी सतह पर हैं। प्रायः वैज्ञानिकों की राय एक होती है, क्योंकि वे अपने निष्कर्ष प्रयोगिक आधार पर निकालते हैं। पर सृष्टि से जुड़े अधिकतर निष्कर्ष अवधारणाएं हैं। बिंग बैंग भी एक अवधारणा है वैज्ञानिक समुदाय इस अवधारणा के पक्ष में एकमत नहीं है। खगोलविज्ञान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर का कहना है कि हिग्स बोसोन को लेकर जो मीडिया ने हाइप बनाया है, उसमें कुछ दोष हैं। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर में प्रति कण जो ऊर्जा तैयार की गई वह उस ऊर्जा के अरबवें अंश के हजारवें अंश के बराबर भी नहीं हैं, जो सृष्टि के स्फीति-काल में रही होगी। इसी तरह हम उपलब्ध तकनीक और उपकरणों के सहारे पदार्थ का केवल चार फीसदी ही देख पाते हैं। शेष 96 फीसदी के बारे में अनुमान हैं और उन्हें प्रयोगशाला में साबित नहीं किया जा सकता।
Friday, July 6, 2012
Tuesday, July 3, 2012
मसाज़ तक ठीक, मज़ाक तो न बने मीडिया
अखबार के दफ्तरों में हाल में नए आए पत्रकारों में एक बुनियादी फर्क उनके काम की शैली का है। आज के पत्रकार को जो तकनीक उपलब्ध है वह बीस साल पहले उपलब्ध नहीं थी। बीस साल पहले फोटो टाइप सैटिंग शुरू हो गई थी, पर सम्पादकों ने पेज बनाने शुरू नहीं किए थे। कम से कम हमारे देश में नहीं बनते थे। 1985 में ऑल्डस कॉरपोरेशन ने जब अपने पेजमेकर का पहला वर्ज़न पेश किया तब इरादा किताबों के पेज तैयार करने का था। उन्हीं दिनों पहली एपल मैकिंटॉश मशीनें तैयार हो रहीं थीं। 1987 में माइक्रोसॉफ्ट की विंडोज़ 1.0 आ गई थी। 1987 में ही क्वार्क इनकॉरपोरेटेड ने क्वार्कएक्सप्रेस का मैक और विंडो संस्करण पेश कर दिया। यह पेज बनाने का सॉफ्टवेयर था, पर सूचना और संचार की तकनीक का विस्तार उसके पहले से चल रहा था। टेलीप्रिंटर, लाइनो-मोनो टाइपसैटिंग, फैक्स और जैरॉक्स जैसी तमाम तकनीकों का वैश्विक-संवाद में क्या स्थान है इसे समझने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। आज से तीस साल पहले वेस्ट इंडीज़ में हो रहे क्रिकेट मैच की खबर तीसरे रोज़ अखबारों में पढ़ने को मिलती थी। कुछ समर्थ अखबार ब्लैक एंड ह्वाइट फोटो भी छापते थे। पर 1996 के एटलांटा ओलिम्पिक के रंगीन टीवी प्रसारण से फोटो ग्रैब करके एक हिन्दी अखबार ने जब छापे तब लगा कि क्रांति तो हो गई। पर इस लेख का उद्देश्य अखबारों की तकनीकी क्रांति पर रोशनी डालना नहीं है।
Monday, July 2, 2012
सुधारों के लिए चाहिए साहस
इस हफ्ते शेयर बाज़ार, मुद्रा बाज़ार और विदेश-व्यापार के मोर्चे से कुछ अच्छी खबरें मिल सकती हैं। शायद मॉनसून भी इस हफ्ते तेजी पकड़े, पर बड़े स्तर पर बदलाव के लिए सरकार और मोटे तौर पर पूरी राजनीति को हिम्मत दिखानी होगी।
Sunday, July 1, 2012
Majority of Pakistanis consider India greatest enemy
Pew Research Center is one of the biggest opinion gathering institution in world. It regularly conducts surveys in different parts of world. Here are some results from Pakistan.
Only 22% of Pakistanis have a favorable view of traditional rival India, although this is actually a slight improvement from 14% last year. Moreover, when asked which is the biggest threat to their country, India, the Taliban, or al Qaeda, 59% name India.
Friday, June 29, 2012
कितना वेतन मिलता है प्रधानमंत्री को
यह जानकारी काफी लोगों के लिए रोचक होगी कि प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार पंकज पचौरी का वेतन प्रधानमंत्री को मिलने वाले वेतन से 30 हजार रुपया महीना कम है। इन्हें 1.30 लाख रुपया महीना मिलता है जो प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पुलक चटर्जी के वेतन (90 हजार) से ज्यादा है। उनसे ज्यादा वेतन भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी मुथु कुमार को मिलता है (1.40 लाख रु) जो पिछले सात साल से पीएमओ में हैं। ये जानकारियाँ आरटीआई के तहत हासिल की गईं हैं और इन्हें आज के मेल टुडे ने छापा है।
PRIME MINISTER'S SALARY SLIP
Rs50,000 pay
Rs3,000 sumptuary allowance
Rs62,000 daily allowance (Rs2,000 per day)
Rs45,000 constituency allowance
Rs1.6 lakh - gross pay/month
मेल टुडे के ईपेपर में पढ़ें खबर
मेल ऑनलाइन में पढ़ें पूरी कथा
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