Friday, October 7, 2011

स्टीव जॉब्स

स्टीव जॉब्स को हम इतनी अच्छी तरह जानते थे यह मुझे पता नहीं था। पर मीडिया की कवरेज से पता लगता है कि दुनियाभर के लोग इनोवेशन, लगन और सादगी को पसंद करते हैं। आज के अखबारों पर नजर डालने के बाद और नेट पर खोज करने के बाद मुझे काफी सामग्री नजर आई। सब कुछ एक साथ देना सम्भव नहीं है। कुछ अखबारों के पहले सफे और कुछ कार्टून पेश हैं। चित्रों को बड़ा करने के लिए उन्हें क्लिक करें



एक और अंत का प्रारम्भ !!!


न्यूयॉर्क की वॉल स्ट्रीट अमेरिका के फाइनेंशियल मार्केट की प्रतीक है। न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नासदेक समेत अनेक स्टॉक एक्सचेंज इस इलाके में हैं। बीस दिन से अमेरिका में एक जन-आंदोलन चल रहा है। इसका नाम है ‘ऑक्यूपाई द वॉल स्ट्रीट।‘ यह आंदोलन न्यूयॉर्क तक सीमित नहीं है। वॉशिंगटन, लॉस एंजेलस, सैन फ्रांसिस्को, बोस्टन, शिकागो, अलबर्क, टैम्पा, शार्लेट, मिज़ूरी, डेनवर, पोर्टलैंड और मेन जैसे शहरों में इस आंदोलन का विस्तार हो चुका है। हालांकि इसमें शामिल लोगों की तादाद बहुत बड़ी नहीं है, पर धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। भारतीय मीडिया की नज़र अभी इस तरफ नहीं पड़ी है। पड़ी भी है तो उसे वह महत्व नहीं मिला जो इस किस्म की खबर को मिल सकता है। अमेरिकी मीडिया ने भी कुछ देर से इस तरफ ध्यान दिया है। पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन ब्रिज पर आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच भिड़ंत भी हुई और करीब 700 प्रदर्शनकारी पकड़े गए।

Tuesday, October 4, 2011

अंतर्विरोधों से घिरा पाकिस्तान



अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ाई भारत यात्रा पर आ रहे हैं। एक अर्से से पाकिस्तान की कोशिश थी कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका न रहे। जो भी हो पाकिस्तान के नज़रिए से हो। ऐसा तभी होगा, जब वहाँ पाक-परस्त निज़ाम होगा। शुरू में अमेरिका भी पाकिस्तान की इस नीति का पक्षधर था। पर हाल के घटनाक्रम में अमेरिका की राय बदली है। इसका असर देखने को मिल रहा है। पाकिस्तान ने अमेरिका के सामने चीन-कार्ड फेंका है। तुम नहीं तो कोई दूसरा। पर चीन के भी पाकिस्तान में हित जुडें हैं। वह पाकिस्तान का फायदा उठाना चाहता है। वह उसकी उस हद तक मदद भी नहीं कर सकता जिस हद तक अमेरिका ने की है। अफगानिस्तान की सरकार भी पाकिस्तान समर्थक नहीं है। जन संदेश टाइम्स में प्रकाशित मेरा लेख


भारत-पाकिस्तान रिश्तों के लिहाज से पिछले दो हफ्ते की घटनाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है। अमेरिका-पाकिस्तान, चीन-भारत और अफगानिस्तान इस घटनाक्रम के केन्द्र में हैं। अगले कुछ दिनों में एक ओर भारत-अफगानिस्तान रक्षा सहयोग के समझौते की उम्मीद है वहीं पाकिस्तान और चीन के बीच एक फौजी गठबंधन की खबरें हवा में हैं। दोनों देशों के रिश्तों में चीन एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभर रहा है। जिस तरह भारत ने वियतनाम, सिंगापुर, मलेशिया और जापान के साथ रिश्ते सुधारे हैं उसके जवाब में पाकिस्तान ने भी अपनी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ घोषित की है।

Friday, September 30, 2011

फिर प्रधानमंत्री की भूमिका क्या है?

हिन्दू में केशव का कार्टून
पिछले हफ्ते की दो खबरों को एक साथ पढ़ने का मौका मिला। एक थी प्रणब मुखर्जी और पी चिदम्बरम के बीच की खींचतान और दूसरी पूर्वी उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की वसूली का विरोध करने वाले एक ड्राइवर की हत्या। दोनों खबरों में कोई रिश्ता नहीं, पर दोनों बातें हताश करती हैं। दोनों बातें बताती हैं कि सुपर पावर बनने को आतुर देश की व्यवस्था अकुशल, बचकानी और घटिया है। ये अवगुण पिछले दो दशक में विकसित हुए हैं। तिकड़म, दलाली और धंधेबाजी को जो खुलेआम सम्मान हाल के वर्षों में मिला है वह पहले नहीं था। तथ्यों को बजाय उजागर करने के उनपर पर्दा डालने की प्रवृत्ति व्यवस्था को अविश्सनीय बना रही है।

Monday, September 26, 2011

दिल्ली प्रहसन ...ब्रेक के बाद

कल्पना कीजिए यूपीए-प्रथम के कार्यकाल में नागरिकों को जानकारी पाने का अधिकार न मिला होता तो आज यूपीए-द्वितीय के सामने खड़ी अनेक परेशानियों का अस्तित्व ही नहीं होता। वही अर्जुन और वही बाण हैं। पर गोपियों को लुटने से बचा नहीं पा रहे हैं। इन बातों से आजिज आकर कॉरपोरेट मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा है कि आरटीआई पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए, क्योंकि यह कानून स्वतंत्र सरकारी काम-काज में दखलंदाजी को बढ़ावा दे रहा है। यूपीए-द्वितीय की परेशानियाँ इस कानून के कारण बढ़ी हैं या ‘स्वतंत्र सरकारी काम-काज‘ की परिभाषा में कोई दोष है? जिस वक्त यह कानून पास हो रहा था, तबसे अब तक फाइलों की नोटिंग-ड्राफ्टिंग और आधिकारिक पत्रों को आरटीआई के दायरे में रखने को लेकर सरकारी प्रतिरोध में कभी कमी नहीं हुई। सरकारों को स्वतंत्र और निर्भय होकर काम करना चाहिए, इस बात का विरोध किसी ने नहीं किया। पर टीप का बंद यह है कि काम पारदर्शी तरीके से होना चाहिए।