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Sunday, November 6, 2022

पाकिस्तान पर ‘सिविल वॉर’ की छाया

इमरान खान पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान में अराजकता फैल गई है। इमरान समर्थकों ने कई जगह हिंसक प्रदर्शन किए हैं। एइस हमले के पहले पिछले हफ्ते ही इमरान के एक वरिष्ठ सहयोगी ने दावा किया था कि देश में हिंसा की आंधी आने वाली है। तो क्या यह हमला योजनाबद्ध है? इस मामले ने देश की राजनीति के अंतर्विरोधों को उधेड़ना
शुरू कर दिया है। कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह कहाँ तक जाएगा। अलबत्ता इमरान खान इस परिस्थिति का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। अप्रेल के महीने में गद्दी छिन जाने के बाद से उन्होंने जिस तरीके से सरकार, सेना और अमेरिका पर हमले बोले हैं, उनसे हो सकता है कि वे एकबारगी कुर्सी वापस पाने में सफल हो जाएं, पर हालात और बिगड़ेंगे। फिलहाल देखना होगा कि इस हमले का राजनीतिक असर क्या होता है।

सेना पर आरोप

गुरुवार को हुए हमले के बाद शनिवार को कैमरे के सामने आकर इमरान ने सरकार, सेना और अमेरिका के खिलाफ अपने पुराने आरोपों को दोहराया है। उनका दावा है कि जनता उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है, लेकिन कुछ लोगों को ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने ही हत्या की यह कोशिश की है। उन्होंने इस हमले के लिए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, गृहमंत्री राना सनाउल्ला और आईएसआई के डायरेक्टर जनरल (काउंटर इंटेलिजेंस) मेजर जनरल फ़ैसल नसीर को ज़िम्मेदार बताया है। उन्हें हाल में ही बलोचिस्तान से तबादला करके यहाँ लाया गया है। फ़ैसल नसीर को सेनाध्यक्ष क़मर जावेद बाजवा का विश्वासपात्र माना जाता है। इस तरह से यह आरोप बाजवा पर भी है। इस आशय का बयान गुरुवार की रात ही जारी करा दिया था। यह भी साफ है कि यह बयान जारी करने का निर्देश इमरान ने ही दिया था।

हिंसा की धमकी

बेशक पाकिस्तानी सेना हत्याएं कराती रही है, पर क्या वह इतना कच्चा काम करती है? हमला पंजाब में हुआ है, जिस सूबे में पीटीआई की सरकार है। उन्होंने अपनी ही सरकार की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया है। हत्या के आरोप में जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह इमरान पर अपना गुस्सा निकाल रहा है। क्या वह हत्या करना चाहता था? उसने पैर पर गोलियाँ मारी हैं। हैरत की बात है कि इतने गंभीर मामले पर पुलिस पूछताछ का वीडियो फौरन सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पीटीआई के नेता फवाद चौधरी का कहना है कि यह साफ हत्या की कोशिश है। एक और नेता असद उमर ने कहा कि इमरान खान ने मांग की है कि इन लोगों को उनके पदों से हटाया जाए, नहीं तो देशभर में विरोध प्रदर्शन होंगे। माँग पूरी नहीं हुई तो जिस दिन इमरान खान बाहर आकर कहेंगे तो कार्यकर्ता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे।

सेना से नाराज़गी

2018 में इमरान को प्रधानमंत्री बनाने में सेना की हाथ था, पर पिछले डेढ़-दो साल में परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं। इस साल अप्रेल में जब इमरान सरकार के खिलाफ संसद का प्रस्ताव पास हो रहा था, तब से इमरान ने खुलकर कहना शुरू कर दिया कि सेना मेरे खिलाफ है। पाकिस्तान में सेना को बहुत पवित्र और आलोचना के परे माना जाता रहा है, पर अब इमरान ने ऐसा माहौल बना दिया है कि पहली बार सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही है। इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के कार्यकर्ताओं ने पेशावर कोर कमांडर सरदार हसन अज़हर हयात के घर को भी घेरा और नारेबाजी की। पाकिस्तानी-प्रतिष्ठान में सेना के बाद जो दूसरी ताकत सबसे महत्वपूर्ण रही है वह है अमेरिका। इमरान खान ने अमेरिका को भी निशाना बनाया और आरोप लगाया कि उनकी सरकार गिराने में अमेरिका का हाथ है। वे शहबाज़ शरीफ की वर्तमान सरकार को इंपोर्टेड बताते हैं।

Sunday, October 30, 2022

पीओके बनेगा बीजेपी का चुनावी-मुद्दा


रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर में हुए एक कार्यक्रम में कहा कि हमारी यात्रा उत्तर की दिशा में जारी है। हम पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को भूले नहीं हैं, बल्कि एक दिन उसे वापस हासिल करके रहेंगे। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद से भारत सरकार कश्मीर में स्थितियों को सामान्य बनाने की दिशा में मुस्तैदी से काम कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी हुई थी। रक्षामंत्री के इस बयान में लोकसभा के अगले चुनाव के एजेंडा को भी पढ़ा जा सकता है। राम मंदिर, नागरिकता कानून, ट्रिपल तलाक, हिजाब, सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर वगैरह के साथ कश्मीर और राष्ट्रीय सुरक्षा बड़े मुद्दे बनेंगे।  

परिवार पर निशाना

बीजेपी के कश्मीर-प्रसंग को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बरक्स भी देखा जा सकता है। जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर मसले को अपने तरीके से सुलझाने का प्रयास किया था, जिसके कारण यह मामला काफी पेचीदा हो गया। अब बीजेपी नेहरू की कश्मीर नीति की भी आलोचना कर रही है। गत 10 अक्तूबर को नरेंद्र मोदी ने आणंद की एक रैली में नाम न लेते हुए नेहरू पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद सरदार पटेल ने रियासतों के विलय के सभी मुद्दों को हल कर दिया था लेकिन कश्मीर का जिम्मा 'एक अन्य व्यक्ति' के पास था, इसीलिए वह अनसुलझा रह गया। मोदी ने कहा कि मैं कश्मीर का मुद्दा इसलिए हल कर पाया, क्योंकि मैं सरदार पटेल के नक्शे कदम पर चलता हूँ।

राजनीतिक संदेश

प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और गृहमंत्री के बयानों को जोड़कर पढ़ें, तो मसले का राजनीतिक संदेश भी स्पष्ट हो जाता है। रक्षामंत्री ने ‘शौर्य दिवस’ कार्यक्रम में कहा कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सर्वांगीण विकास का लक्ष्य पीओके और गिलगित-बल्तिस्तान तक पहुंचने के बाद ही पूरा होगा। हमने जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विकास की अपनी यात्रा अभी शुरू की है। जब हम गिलगित और बल्तिस्तान तक पहुंच जाएंगे तो हमारा लक्ष्य पूरा हो जाएगा। भारतीय सेना 27 अक्तूबर 1947 को श्रीनगर पहुंचने की घटना की याद में हर साल ‘शौर्य दिवस’ मनाती है। पिछले दो साल से केंद्र सरकार ने 22 अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर में काला दिन मनाने की शुरुआत भी की है। 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था। पाकिस्तान सरकार हर साल 5 फरवरी को कश्मीर एकजुटता दिवस मनाती है। यह चलन 2004 से शुरू हुआ है। उस दिन देशभर में छुट्टी रहती है। इसका उद्देश्य जनता के मन में कश्मीर के सवाल को सुलगाए रखना है।

राष्ट्रीय संकल्प

भारत सरकार ने ‘काला दिन’ मनाने की घोषणा करके एक तरह से जवाबी कार्रवाई की थी। पाकिस्तानी लुटेरों ने कश्मीर में भारी लूटमार मचाई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। इस हमले से घबराकर कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिसके बाद भारत ने अपने सेना कश्मीर भेजी थी। तथाकथित आजाद कश्मीर सरकार, जो पाकिस्तान की प्रत्यक्ष सहायता तथा अपेक्षा से स्थापित हुई, आक्रामक के रूप में पश्चिमी तथा उत्तर पश्चिमी सीमावर्ती क्षेत्रों में कब्जा जमाए बैठी है। भारत ने यह मामला 1 जनवरी, 1948 को ही संरा चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत उठाया था। यह मसला वैश्विक राजनीति की भेंट चढ़ गया। संरा सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव लागू क्यों नहीं हुए, उसकी अलग कहानी है। जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की वैध संधि की पाकिस्तान अनदेखी करता है। भारत के नजरिए से केवल पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) ही नहीं, गिलगित-बल्तिस्तान भी जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। राजनाथ सिंह ने गिलगित-बल्तिस्तान तक क सवाल को उठाया है, जिसकी अनदेखी होती रही।  

370 की वापसी

तीन साल पहले 5 अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर पर अनुच्छेद 370 और 35 को निष्प्रभावी करके लम्बे समय से चले आ रहे एक अवरोध को समाप्त कर दिया था। राज्य का पुनर्गठन भी हुआ है और लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का मामला अब भी अधूरा है। कश्मीर हमारे देश का अटूट अंग है, तो हमें उस हिस्से को भी वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए, जो पाकिस्तान के कब्जे में है। क्या यह सम्भव है? कैसे हो सकता है यह काम? गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019 में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है। इसके पहले संसद में एक सवाल का जवाब देते हुए भी उन्होंने कहा था कि पीओके के लिए हम जान दे सकते हैं।

Sunday, October 23, 2022

कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र: उम्मीदें और अंदेशे


मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत को लेकर शायद ही किसी को संदेह रहा हो, पर असली सवाल है कि इस चुनाव से कांग्रेस की समस्याओं का समाधान होगा या नहीं? इस सिलसिले में दो तरह की तात्कालिक प्रतिक्रियाएं हैं। पहली यह कि खड़गे ने सिर पर काँटों का ताज पहन लिया है और उनके सामने समस्याओं के पहाड़ हैं, जिनका समाधान गांधी परिवार नहीं कर पाया, तो वे क्या करेंगे? दूसरी तरफ कुछ संजीदा राजनीति-शास्त्री मानते हैं कि यह चुनाव केवल कांग्रेस पार्टी के लिए ही युगांतरकारी साबित नहीं होगा, बल्कि इससे दूसरे दलों के आंतरिक लोकतंत्र की संभावनाएं बढ़ेंगी। फिलहाल कांग्रेस की सारी समस्याओं के समाधान नहीं निकलें, पर पार्टी के पुनरोदय के रास्ते खुलेंगे और एक नई शुरुआत होगी।

अंदेशे और सवाल

करीब 24 साल बाद कांग्रेस की कमान किसी गैर-गांधी के हाथ में आई है। पर जिस बदलाव की आशा पार्टी के भीतर और बाहर से की जा रही है, वह केवल इतनी ही नहीं है। इसे बदलाव का प्रस्थान-बिंदु माना जा सकता है, पर केवल इतना ही, क्योंकि सवाल कई हैं? इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है हाईकमान से आशीर्वाद प्राप्त प्रत्याशीका होना। उसके पीछे सबसे बड़ा सवाल है कि अब हाईकमान के मायने क्या होंगे? पिछले कुछ वर्षों के घटनाक्रम से यह बात रेखांकित हो रही है कि पार्टी में कोई धुरी नहीं है और है भी तो कमज़ोर है। अब नए अध्यक्ष की भूमिका क्या होगी, कितनी उसकी चलेगी और कितनी परिवार की, जिसे हाईकमान कहा जाता है?  और अध्यक्ष के रहते क्या कोई हाईकमान भी होगी? सबसे बड़ा सवाल है कि गैर-गांधी अध्यक्ष खुद कब तक चलेगा?  बात केवल अध्यक्ष के पदस्थापित होने तक है या पार्टी के भीतर वैचारिक और संगठनात्मक सुधारों की कोई योजना भी है?

चुनौतियों के पहाड़

मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने चुनौतियों के पहाड़ हैं और समय कम है। समय से आशय है 2024 का लोकसभा चुनाव। यह बदलाव मई 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफे के फौरन बाद हो गया होता, तब भी बात थी। नए अध्यक्ष को अपना काम करने का मौका मिल गया होता। पता नहीं उस स्थिति में भारत जोड़ो यात्रा होती या कुछ और होता। पंजाब में कांग्रेस हारती या नहीं हारती वगैरह-वगैरह। खड़गे के पास अब समय नहीं है। लोकसभा चुनाव के लिए डेढ़ साल का समय बचा है। उसके पहले 11 राज्यों के और उसके फौरन बाद को भी जोड़ लें, तो कुल 18 विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, जिनमें हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। हिमाचल और गुजरात के चुनाव तो सामने खड़े हैं और फिर 2023 में उनके गृह राज्य कर्नाटक के चुनाव हैं। अगले साल फरवरी-मार्च में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के चुनाव हैं, मई में कर्नाटक के और नवंबर-दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना के। राजस्थान में अशोक गहलोत प्रकरण अभी अनसुलझा है। भले ही खड़गे पार्टी अध्यक्ष हैं, पर कम से कम इस मामले में परिवार की सलाह काम करेगी।

Sunday, October 16, 2022

यूक्रेन की लड़ाई से जुड़ी पेचीदगियाँ


यूक्रेन की लड़ाई अब ऐसे मोड़ पर आ गई है, जहाँ खतरा है कि कहीं यह एटमी लड़ाई में न बदल जाए। एक तरफ खबरें हैं कि रूस के फौजी-संसाधन बड़ी तेजी से खत्म हो रहे हैं। वहीं रूसी हमलों में तेजी आने की खबरें भी हैं। रूस को क्राइमिया से जोड़ने वाले पुल पर हुए विस्फोट के बाद 10 अक्टूबर को यूक्रेन पर सबसे बड़ा हवाई हमला किया गया। एक के बाद एक कई रूसी मिसाइलों का रुख यूक्रेन की तरफ मुड़ गया। उधर बेलारूस ने भी रूस के पक्ष में युद्ध में कूदने की घोषणा कर दी है। 10 अक्तूबर को बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने कहा, हमें पता लगा है कि बेलारूस पर यूक्रेन हमला करने वाला है। इसलिए हमने अपनी सेना को रूसी सेना के साथ तैनात करने का फैसला किया है। हम रूसी सेना को बेस कैंप बनाने और तैयारी के लिए अपनी जमीन देंगे। पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि सीधे भिड़ने के बजाय पुतिन बेलारूस के जरिए यूक्रेन पर परमाणु हमला कर सकते हैं। इससे रूस को सीधे हमले का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकेगा। जी-7 देशों को भी ऐसा ही अंदेशा है। इसीलिए जी-7 की इमरजेंसी बैठक के बाद रूस को धमकी दी गई कि यूक्रेन पर रासायनिक, जैविक या न्यूक्लियर हमला हुआ तो रूस को बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा।

नाटो का विस्तार

नाटो ने कहा है कि हम यूक्रेन को हथियारों की मदद जारी रखेंगे और जो कोई भी नाटो से भिड़ेगा उसे देख लिया जाएगा। नाटो के प्रमुख स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि नाटो अगले हफ्ते न्यूक्लियर ड्रिल करेगा। बेलारूस की सीमा लात्विया, लिथुआनिया और पोलैंड से लगती है। तीनों नाटो के सदस्य हैं। इस बीच यूक्रेन ने यूरोपियन यूनियन और नाटो दोनों में शामिल होने के लिए अर्जी दे दी है। बारह सदस्य देशों के साथ शुरू हुए नाटो में शामिल होने के लिए फिनलैंड और स्वीडन की अर्जी मंजूर होने के बाद उनके 31वें और 32वें देश के रूप में शामिल होने की उम्मीदें हैं। अब बोस्निया और हर्ज़गोवीना, जॉर्जिया और यूक्रेन के भी इसमें शामिल होने के आसार हैं। उधर रूस ने यूक्रेन के चार इलाकों में जनमत संग्रह कराकर उन्हें अपने देश में शामिल करने की घोषणा कर दी है। इन बातों से तनाव घटने के बजाय बढ़ ही रही है। इतना स्पष्ट है कि लड़ाई उसके अनुमान से कहीं ज्यादा लंबी खिंच गई है। हाल में रूस ने जो लगातार बमबारी की है उससे यही लगता है कि रूस इस युद्ध को और बढ़ाना चाहता है। पर अंतहीन लड़ाई के लिए अंतहीन संसाधनों की जरूरत होगी। बेशक रूस ने मिसाइलों की बौछार करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है, पर ऐसा करके उसने अपने संसाधनों को बर्बाद भी किया है। सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि रूसी हथियारों की सप्लाई कम हो रही है। उसके संसाधनों की भी एक सीमा है। लड़ाई के लंबा खिंचने से जटिलताएं बढ़ रही हैं। रूस के भीतर भी असंतोष बढ़ रहा है।

Sunday, October 9, 2022

वैश्विक मंदी की छाया में भारत


ब्रिटिश साप्ताहिक ‘इकोनॉमिस्ट’ ने कहा है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था करवट ले रही है। मुद्रास्फीति ने दुनियाभर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान खींचा है। वैश्विक मुद्रास्फीति 9.8 प्रतिशत हो गई है। अभी तक इसका आसान हल माना जाता है ब्याज दरों को बढ़ाना, पर यह कदम मंदी को बढ़ा रहा है। केंद्रीय बैंकों को मॉनिटर करने वाली एक संस्था ने पाया है कि जिन 38 बैंकों का उसने अध्ययन किया उनमें से 33 ने इस साल ब्याज दरें बढ़ाई हैं। आईएमएफ ने भी चेतावनी दी है कि देशों की सरकारें महंगाई को रोकने में नाकाम रहीं तो दुनियाभर में आर्थिक मंदी का खतरा है। दूसरी तरफ अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह नीति चलेगी नहीं। अमेरिकी फेडरल बैंक दरें बढ़ा रहा है, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है।

भारत पर असर

भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर पिछले दो हफ्तों की खबरें इस बात की पुष्टि कर रही हैं। रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया है, जिससे ब्याज की दरें बढ़ेंगी। ज्यादातर संस्थाओं ने भारतीय जीडीपी के अपने अनुमानों को घटाना शुरू कर दिया है। रुपये की कीमत गिर रही है और विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है। कोविड-19 का असर पहले से था, अब यूक्रेन की लड़ाई ने ‘कोढ़ में खाज’ पैदा कर दिया है। पेट्रोलियम की कीमतें गिरने लगी थीं, पर इस गिरावट को रोकने के लिए ओपेक और उसके सहयोगी संगठनों ने उत्पादन में कटौती का फैसला किया है। इसका असर अब आप देखेंगे। 

मुद्रास्फीति

इस महीने का डेटा अभी आया नहीं है, पर सितंबर के डेटा के अनुसार अगस्त में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7 फीसदी हो गई, जो जुलाई में 6.71 प्रतिशत और पिछले साल अगस्त में 5.3 प्रतिशत थी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने हाल में उम्मीद जाहिर की थी, यह दर गिरकर 6 फीसदी से नीची हो जाएगी, पर उनका अनुमान गलत साबित हुआ। जुलाई के महीने में देश का खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई-सी) 6.71 हो गया था, जो पिछले पाँच महीनों में सबसे कम था। अच्छी संवृद्धि और मुद्रास्फीति में क्रमशः आती गिरावट से उम्मीदें बढ़ी थीं, पर अब कहानी बदल रही है। लगता है कि रिजर्व बैंक को पहले महंगाई से लड़ना होगा।

जीडीपी संवृद्धि

गुरुवार 6 अक्तूबर को विश्व बैंक ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय जीडीपी की संवृद्धि के 7.5 फीसदी के अपने अनुमान में एक फीसदी की कटौती करते हुए उसे 6.5 प्रतिशत कर दिया है। रिज़र्व बैंक ने 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया है। सबसे कम अनुमान अंकटाड का 5.7 फीसदी है। दूसरी तरफ मूडीज़ ने हाल में 7.7 फीसदी अनुमान लगाया था, जो इन सबसे ज्यादा है। विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि शेष दुनिया से भारत की स्थिति बेहतर रहेगी। भारत में अधिक बफर हैं, विशेष रूप से केंद्रीय बैंक में बड़े भंडार हैं। बैंक के दक्षिण एशिया से संबद्ध मुख्य अर्थशास्त्री हैंस टिमर के मुताबिक, भारत पर कोई बड़ा विदेशी कर्ज नहीं है। उसकी मौद्रिक नीति विवेकपूर्ण रही है। इसके बावजूद हमने अनुमान को घटाया है, क्योंकि वैश्विक माहौल बिगड़ रहा है। उधर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन मानते हैं कि हम अब भी 7 फ़ीसदी की रेस में शामिल है। ऐसे दौर में जब दुनिया के तमाम देशों की जीडीपी ग्रोथ निगेटिव होने की आशंका है ऐसे में भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए 7 फ़ीसदी ग्रोथ रेट शानदार प्रदर्शन होगा।

Sunday, September 25, 2022

भिंडी-बाजार क्यों बने टीवी स्टूडियो?


सुप्रीम कोर्ट ने इस हफ्ते एक ऐसे मसले को उठाया है, जिसपर बातें तो लगातार हो रही हैं, पर व्यवहार में कुछ हो नहीं रहा है। अदालत ने हेट-स्पीच से भरे टॉक शो और रिपोर्टों को लेकर टीवी चैनलों को फटकार लगाई है। गत 21 सितंबर को जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस हृषीकेश रॉय की बेंच ने हेट-स्पीच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह एंकर की जिम्मेदारी है कि वह किसी को नफरत भरी भाषा बोलने से रोके। बेंच ने पूछा कि इस मामले में सरकार मूक-दर्शक क्यों बनी हुई है, क्या यह एक मामूली बात है? यही प्रश्न दर्शक के रूप में हमें अपने आप से भी पूछना चाहिए। यदि यह महत्वपूर्ण मसला है, तो टीवी चैनल चल क्यों रहे हैं? हम क्यों उन्हें बर्दाश्त कर रहे हैं? मूक-दर्शकतो हम और आप हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सामान्य नागरिकों के भीतर चेतना का वह स्तर नहीं है, जो विकसित लोकतंत्र में होना चाहिए।

मीडिया की आँधी

चौराहों, नुक्कड़ों और भिंडी-बाजार के स्वर और शब्दावली विद्वानों की संगोष्ठी जैसी शिष्ट-सौम्य नहीं होती। पर खुले गाली-गलौज को तो मछली बाजार भी नहीं सुनता। वह भाषा सोशल मीडिया में पहले प्रवेश कर गई थी, अब मुख्यधारा के मीडिया में भी सुनाई पड़ रही है। मीडिया की आँधी ने सूचना-प्रसारण के दरवाजे भड़ाक से  खोल दिए हैं। बेशक इसके साथ ही तमाम ऐसी बातें सामने आ रहीं हैं, जो हमें पता नहीं थीं। कई प्रकार के सामाजिक अत्याचारों के खिलाफ जनता की पहलकदमी इसके कारण बढ़ी है, पर सकारात्मक भूमिका के मुकाबले उसकी नकारात्मक भूमिका चर्चा में है। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हामी हैं, पर नहीं जानते कि इससे जुड़ी मर्यादाएं भी हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बंदिश लगाने के जोखिम भी हैं।

अभिव्यक्ति की आज़ादी

अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन टीवी पर अभद्र भाषा बोलने की आजादी नहीं दी जा सकती है। संविधान के अनुच्छेद 19(1) ए के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं है। उसपर विवेकशील पाबंदियाँ हैं। सिनेमाटोग्राफिक कानूनों के तहत सेंसरशिप की व्यवस्था भी है। पर समाचार मीडिया को लाइव प्रसारण की जो छूट मिली है, उसने अति कर दी है। टीवी मीडिया और सोशल मीडिया बिना रेग्युलेशन के काम कर रहे हैं। उनका नियमन होना चाहिए। इन याचिकाओं पर अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी। कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह स्पष्ट करे कि क्या वह हेट-स्पीच पर अंकुश लगाने के लिए विधि आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का इरादा रखती है।

परिभाषा नहीं

देश में हेट-स्पीच से निपटने के लिए कई तरह के कानूनों का इस्तेमाल होता है, पर किसी में हेट-स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है। केंद्र सरकार अब पहले इसे परिभाषित करने जा रही है। विधि आयोग की सलाह है कि जरूरी नहीं कि सिर्फ हिंसा फैलाने वाली स्पीच को हेट-स्पीच माना जाए। इंटरनेट पर पहचान छिपाकर झूठ और आक्रामक विचार आसानी से फैलाए जा रहे हैं। ऐसे में भेदभाव बढ़ाने वाली भाषा को भी हेट-स्पीच के दायरे में रखा जाना चाहिए। सबसे ज्यादा भ्रामक जानकारियां फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप जैसे प्लेटफॉर्मों के जरिए फैलती हैं। इनके खिलाफ सख्त कानून बनने से कानूनी कार्रवाई का रास्ता खुलेगा, पर फ्री-स्पीच के समर्थक मानते हैं कि एंटी-हेट-स्पीच कानून का इस्तेमाल विरोधियों की आवाज दबाने के लिए किया जा सकता है।

Sunday, September 18, 2022

समरकंद में बढ़ा भारत का रसूख


वैश्विक राजनीति और भारतीय विदेश-नीति की दिशा को समझने के लिए समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के संवाद पर ध्यान देना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन की आमने-सामने की बैठक ने दुनिया के मीडिया ने ध्यान खींचा है। मोदी ने प्रकारांतर से पुतिन से कह दिया कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यूक्रेन की लड़ाई बंद होनी चाहिए। पुतिन ने जवाब दिया कि मैं भारत की चिंता को समझता हूँ और लड़ाई जल्द से जल्द खत्म करने का प्रयास करूँगा। इन दो वाक्यों में छिपे महत्वपूर्ण संदेश को पढ़ें। भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति को रूस, चीन और अमेरिका की स्वीकृति और असाधारण सम्मान मिला है। इस साल फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए संघर्ष के बाद दोनों नेताओं के बीच पहली मुलाकात थी। दोनों के बीच कई बार फ़ोन पर बातचीत हुई है।

समरकंद का संदेश

भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण के लिए रूस की आलोचना नहीं की है, पर यह संदेश महत्वपूर्ण है। युद्ध के मोर्चे पर रूस थक रहा है। चीन भी रूस से दूरी बना रहा है। मोदी-पुतिन वार्ता से पहले शी चिनफिंग ने भी पुतिन से कहा कि हम युद्ध को लेकर चिंतित हैं। इस साल जनवरी-फरवरी में रूस-चीन रिश्ते आसमान पर थे, तो वे अब ज़मीन पर आते दिखाई पड़ रहे हैं। अलबत्ता चीन का प्रभाव मध्य एशिया के देशों पर है। उसके वन बेल्ट, वन रोड कार्यक्रम का भारत को छोड़ सभी देश समर्थन करते हैं। संयुक्त घोषणापत्र में इसका उल्लेख है। भारत के साथ ये देश कारोबार चाहते हैं, पर पाकिस्तान जमीनी रास्ता देने को तैयार नहीं हैं। मोदी ने अपने वक्तव्य में पारगमन सुविधा का जिक्र किया है।  

भारत की भूमिका

इस संगठन में चीन और रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है, जिसका कद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रहा है। एससीओ भी धीरे-धीरे दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बनता जा रहा है। भारत की दिलचस्पी अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के अलावा आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई में है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में इस साल 7.5 फीसदी की वृद्धि की उम्मीद है जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी। उन्होंने मिलेट्स यानी बाजरे का भी ज़िक्र किया और कहा, दुनिया की खाद्य-समस्या का एक समाधान यह भी है। इसकी खेती में लागत कम होती है। इसे एससीओ देशों के अलावा दूसरे देशों में हज़ारों साल से उगाया जाता रहा है। एससीओ देशों के बीच आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक औषधियों का सहयोग बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए भारत पारंपरिक दवाओं पर एक नया एससीओ वर्किंग ग्रुप बनाने की पहल करेगा।

अगला अध्यक्ष

भारत को एससीओ के अगले अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया गया है। अगला शिखर सम्मेलन अब 2023 में भारत में होगा। एससीओ में नौ देश पूर्ण सदस्य हैं-भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, क़ज़ाक़िस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और ईरान। ईरान की सदस्यता अगले साल अप्रेल से मानी जाएगी। तीन देश पर्यवेक्षक हैं-अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया। छह डायलॉग पार्टनर हैं-अजरबैजान, आर्मीनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की, श्रीलंका। नए डायलॉग पार्टनर हैं-सऊदी अरब, मिस्र, क़तर, बहरीन, मालदीव, यूएई, म्यांमार। शिखर सम्मेलन में इनके अलावा आसियान, संयुक्त राष्ट्र और सीआईएस के प्रतिनिधियों को भी बुलाया जाता है। मूलतः यह राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग का संगठन है, जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी। अप्रैल 1996 में शंघाई में हुई एक बैठक में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान जातीय और धार्मिक तनावों को दूर करने के इरादे से आपसी सहयोग पर राज़ी हुए थे। इसे शंघाई फाइव कहा गया था। इसमें उज्बेकिस्तान के शामिल हो जाने के बाद जून 2001 में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना हुई। पश्चिमी मीडिया मानता है कि एससीओ का मुख्य उद्देश्य नेटो के बराबर खड़े होना है। भारत इसमें सबसे बड़ी संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर कर आ रहा है।

चीनी तेवर ढीले

चीन के तेवर ढीले पड़े हैं। एससीओ का प्रवर्तन चीन ने किया है। वह अपने राजनयिक-प्रभाव का विस्तार करने के लिए इस संगठन का इस्तेमाल करना चाहता है। साथ ही यह भी लगता है कि पश्चिमी देशों का दबाव उसपर बहुत ज्यादा है। उसकी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे मंदी की ओर बढ़ रही है। समरकंद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ भी मौजूद थे, लेकिन सम्मेलन में औपचारिक भेंट के अलावा इन दोनों से पीएम मोदी की अलग से मुलाक़ात नहीं हुई। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाकात जरूर हुई। पर्यवेक्षकों का अनुमान था कि पूर्वी लद्दाख के कुछ इलाकों में हाल में हुई सेनाओं की वापसी के बाद शायद शी चिनफिंग और शहबाज़ शरीफ से उनकी सीधी बात हो। चीन और पाकिस्तान के प्रति अपने रुख को नरम करने के लिए भारत तैयार नहीं है। भारत-चीन सीमा पर तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों में कोर कमांडर स्तर पर बातचीत के 16 दौर हो चुके हैं, लेकिन तनाव पूरी तरह कम नहीं हो सका है।

पाकिस्तान से रिश्ते

पाकिस्तान के साथ भी भारत के रिश्ते बीते कई साल से बिगड़ते गए हैं। 2019 में पुलवामा-बालाकोट हमलों और अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद दोनों देशों के राजनयिकों को वापस बुला लिया गया और सभी व्यापार संबंधों को रद्द कर दिया गया। करतारपुर कॉरिडोर के ज़रिए संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। पिछले साल फरवरी में नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी बंद करने का समझौता हुआ था, जिसके बाद उम्मीदें बढ़ी थीं कि दोनों के कारोबारी रिश्ते फिर से शुरू होंगे, पर पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति के कारण वह भी संभव नहीं हुआ। इमरान ख़ान के बाद शहबाज़ शरीफ़ जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के संकेत दिए थे। वे समरकंद में मौजूद थे, पर वहाँ से किसी नई पहल की खबर नहीं मिली है।

स्वतंत्र विदेश-नीति

इस दौरान भारतीय विदेश-नीति की दृढ़ता और स्वतंत्र-राह स्थापित हो रही है। हाल में चीनी मीडिया के हवाले से खबर थी कि चीनी जनता मानती है कि भारत अमेरिका की पिट्ठू नहीं है, जैसाकि वहाँ की सरकार दावा करती है। पिछले दो-तीन वर्षों में भारत ने रूस के सामने भी इस बात को दृढ़ता से रखा है कि हमारी दिलचस्पी राष्ट्रीय-हितों में है। हम किसी के पिछलग्गू नहीं हैं और दब्बू भी नहीं हैं। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को अपने यहाँ स्थापित कर लिया है। दूसरी तरफ अमेरिका को भी आश्वस्त किया है कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों से आबद्ध हैं और चीनी आक्रामकता से दबने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका ने हाल में पाकिस्तान को एफ-16 विमानों के कल-पुर्जे सप्लाई करने का फैसला किया है, जिसका भारत ने पुरज़ोर विरोध किया है।  

राष्ट्रहित सर्वोपरि

अपनी रक्षा-व्यवस्था को लेकर हम किसी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में हम क्वॉड में शामिल हैं। सुदूर पूर्व में जापान के साथ हमारी दोस्ती भी बहुत मजबूत है। समरकंद सम्मेलन के एक हफ्ते पहले भारत और जापान के बीच टू प्लस टू वार्ता हुई है, जिसमें कारोबारी रिश्तों के साथ-साथ सहयोग पर भी विचार किया गया। बंगाल की खाड़ी में 11 सितंबर से शुरू हुआ जिमेक्स (जापान-इंडिया मैरीटाइम एक्सरसाइज़) नौसैनिक युद्धाभ्यास चल रहा है, जो 22 सितंबर तक चलेगा। हर साल होने वाले मालाबार-युद्धाभ्यास में अब भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं। दूसरी तरफ भारत ने रूसी युद्धाभ्यास वोस्तोक-2022 में भी भाग लिया, जो 30 अगस्त से 5 सितंबर तक चला। इसमें चीन भी शामिल था। इस अभ्यास में तीनों तरह के बलों का इस्तेमाल करते हुए उसे आतंकवाद-विरोधी अभ्यास बताया गया। यह अभ्यास रूस के सुदूर पूर्व और जापान सागर में दक्षिणी कुरील द्वीप समूह (जिस पर जापान और रूस दोनों अपना दावा करते हैं) के निकटवर्ती क्षेत्र में हुआ था। भारत ने इस युद्धाभ्यास में गोरखा रेजिमेंट की थलसेना की एक टुकड़ी को भेजा, पर जापान की संवेदनशीलता को देखते हुए नौसैनिक अभ्यास से खुद को अलग रखा और अपने पोत नहीं भेजे। यह बात राजनयिक सूझ-बूझ और स्वतंत्र विदेश-नीति को रेखांकित करती है। रूसी-चीनी गरमाहट के बावजूद हमने रूस से किनाराकशी नहीं की।

रूस-चीन ठंडापन

दूसरी तरफ रूस और चीन के रिश्ते कुछ महीने पहले जितने सरगर्म लग रहे थे, उतने इस समय नज़र नहीं आ रहे हैं। इस साल क शुरु में रूस और चीन के नेताओं ने कहा था कि हमारी दोस्ती की कोई सीमा नहीं है, पर समरकंद में रिश्ते ठंडे पड़ते दिखाई पड़े। इस सम्मेलन में शी जिनपिंग ने यूक्रेन युद्ध का ज़िक्र भी नहीं किया। पिछले कुछ महीनों का अनुभव है कि आर्थिक प्रतिबंधों की मार झेल रहे रूस की चीन ने किसी किस्म की आर्थिक सहायता नहीं की। उसने रूस की सीधे तौर पर मदद करने से खुद को रोका, ताकि अपनी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के असर से बचा सके। पश्चिमी देशों के साथ चीन अपने रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहता, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पश्चिम से जुड़ी है।

हरिभूमि में प्रकाशित

Sunday, September 11, 2022

‘मिशन 24’ की राजनीतिक यात्राएं


राष्ट्रीय-राजनीति का चुनाव-विमर्श अचानक तेज हो गया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिस दिन शुरू हो रही थी, उसके एक दिन पहले नीतीश कुमार दिल्ली में 2024 के चुनाव की संभावनाओं को लेकर मुलाकातें कर रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी और राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अलावा शरद पवार, एचडी कुमारस्वामी, ओम प्रकाश चौटाला, सीताराम येचुरी और दूसरे कुछ नेताओं से भी मुलाकात की। पार्टी उन्हें पीएम-उम्मीदवार के तौर पर पेश कर रही है, वहीं नीतीश कुमार ने दिल्ली में कहा कि मैं दावेदार नहीं बनना चाहता। सिर्फ विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहा हूँ। 4 सितंबर को रामलीला मैदान में हुई रैली में राहुल गांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी का मुकाबला सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। यानी कि बीजेपी को हराना है तो उन्हें कांग्रेस के नेतृत्व में ही आना होगा। पर विरोधी-खिचड़ियाँ अलग-अलग बर्तनों में पक रही हैं। विपक्ष बिखरा हुआ है, लेकिन एकजुटता की कोशिशें जारी है। इस एकता का एक प्रदर्शन 25 सितंबर को हरियाणा में हिसार के नजदीक विपक्ष की रैली में देखने को मिलेगा।

एकता के प्रयास

विरोधी राजनीति के नजरिए से बिहार में हुए राजनीतिक बदलाव के बाद संभावनाएं बेहतर हुई हैं। इसका संकेत ममता बनर्जी के ताजा बयान से मिलता है। उन्होंने कहा, नीतीश जी, अखिलेश, हेमंत और मेरा वादा है कि ये चार मिलकर बीजेपी को 2024 लोकसभा चुनाव में 100 सीटों पर रोक देंगे। इनमें से पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40, उत्तर प्रदेश में 80 और झारखंड में 14 लोकसभा सीटे हैं। भाजपा कहती है कि उनके पास 300 सीटें हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि राजीव गांधी के पास 400 सीटें थीं लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस हार गई। बीजेपी भी हारेगी। इन राज्यों में उसे 100 सीटों का नुकसान होगा। देश के अन्य हिस्सों की पार्टियां भी जल्द ही हमारे साथ आएंगी। क्या बीजेपी को 100 सीटों पर रोका जा सकता है?

कांग्रेस से परहेज

ध्यान देने वाली बात है कि ममता बनर्जी ने राहुल गांधी, केजरीवाल, शरद पवार और चंद्रशेखर राव के नामों का उल्लेख नहीं किया है। क्या इस बयान को भविष्य के राजनीतिक गठजोड़ का संकेत मानें? या सिर्फ बयान मानें, जो माहौल बनाने के लिए है? सवाल तीन हैं। नंबर एक, क्या राष्ट्रीय स्तर पर विरोधी एकता है? दो, क्या इस एकता में कांग्रेस भी शामिल है? और तीन, बीजेपी के पास इसकी काट की रणनीति क्या है? इन सवालों के आगे-पीछे अनेक किंतु-परंतु हैं। इंडियन नेशनल लोकदल अपने संस्थापक देवीलाल की जयंती पर 25 सितंबर को रैली का आयोजन कर रहा है। इसमें कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी दलों के कई नेताओं को निमंत्रण भेजा गया है। दूसरी तरफ हालांकि ममता बनर्जी विरोधी-एकता की समर्थक हैं, पर उनकी पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के योग्य उम्मीदवार माना है। कोलकाता में आयोजित पार्टी की बैठक के दौरान उन्होंने जिन दलों के नाम लिए उनमें कांग्रेस का नाम गायब था। यह भी साफ है कि बीजेपी को हराने के लिए लेफ्ट के साथ भी उनका गठबंधन नहीं होने वाला है।

भारत जोड़ो यात्रा

राहुल गांधी की यात्रा का उद्देश्य क्या है? कन्याकुमारी से यात्रा शुरू करते हुए राहुल गांधी ने दो तरह की बातें कहीं, यह मार्च राष्ट्रीय ध्वज के मूल्यों के तले सभी भारतीयों को एकजुट करने की कोशिश है, जिसका मूल सिद्धांत विविधता है। साथ ही यह भी कहा कि हिंदुत्व की विचारधारा के साए में ये मूल्य अब खतरे में हैं। ज़ाहिर है कि यह कांग्रेस को बचाने की कोशिश है और 2024 के चुनाव के पहले की राजनीतिक गतिविधि। यह यात्रा पार्टी के झंडे के पीछे नहीं चल रही है, बल्कि तिरंगे के पीछे है, पर संदेश राजनीतिक है और कांग्रेस के नेतृत्व में बनी योजना भी राजनीतिक है। अब इसे विरोधी एकता के लिए किए जा रहे प्रयासों के साथ जोड़कर देखें।

धुरी या परिधि?

विरोधी दलों की एकता में कांग्रेस कहाँ है? धुरी में या परिधि में? कांग्रेस साबित करना चाहती है कि यह एकता उसके नेतृत्व में ही संभव है, जबकि क्षेत्रीय स्तर पर दूसरे नेताओं को लगता है कि कांग्रेस अब नेतृत्व के लायक नहीं रही। डीएमके, राकांपा और शिवसेना जैसे दल कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विरोधी एकता संभव नहीं है, पर जल्द ही होने वाले बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में राकांपा और शिवसेना मिलकर लड़ेंगे। कांग्रेस उसमें शामिल नहीं होगी। महाराष्ट्र में सरकार गिरने के बाद महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की पहली बैठक में तीनों सहयोगी पार्टियों ने फैसला किया कि शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनाव एक साथ लड़ेंगी, जबकि स्थानीय निकाय चुनावों को साथ लड़ने पर कोई सहमति नहीं बनी।

यात्रा की राजनीति

राहुल गांधी खुद को हिंदुत्व का सबसे मुखर आलोचक, संघवाद और उदारवाद का प्रवर्तक मानते हैं। पर चुनाव परिणामों को देखें, तो लगता है कि वे पर्याप्त जन समर्थन जुटाने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस ने हिंदू-जनाधार को खो दिया है, जबकि बीजेपी ने गहरी जड़ें जमा ली हैं। राहुल गांधी अब यात्रा के फॉर्मूले का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अतीत में महात्मा गांधी, चंद्रशेखर, मुरली मनोहर जोशी से लेकर लालकृष्ण आडवाणी तक ने इसका लाभ लिया है। क्या राहुल गांधी को इसका लाभ मिलेगा? आंशिक-परिणाम सामने आने में कुछ महीने लगेंगे और अंतिम-परिणाम 2024 के चुनाव के बाद आएंगे।  

Sunday, September 4, 2022

अर्थव्यवस्था का मंथर-प्रवाह


भारत की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.5 फीसदी बढ़ी है। सामान्य-दृष्टि से इस संख्या को बहुत उत्साहवर्धक माना जाएगा, पर वस्तुतः यह उम्मीद से कम है। विशेषज्ञों का  पूर्वानुमान 15 से 16 प्रतिशत का था, जबकि रिज़र्व बैंक को 16.7 प्रतिशत की उम्मीद थी।  अब इस वित्त वर्ष के लिए ग्रोथ के अनुमान को विशेषज्ञ 7.2 और 7.5 प्रतिशत से घटाकर 6.8 से 7.00 प्रतिशत मानकर चल रहे हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से 31 अगस्त को जारी आँकड़ों के अनुसार जीडीपी की इस वृद्ध में सेवा गतिविधियों में सुधार की भूमिका है, बावजूद इसके व्यापार, होटल और परिवहन क्षेत्र की वृद्धि दर अब भी महामारी के पूर्व स्तर (वित्त वर्ष 2020 की जून तिमाही) से कम है। हालांकि हॉस्पिटैलिटी से जुड़ी गतिविधियों में तेजी आई है। जीडीपी में करीब 60 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले, उपभोग ने जून की तिमाही में 29 फीसदी की मजबूत वृद्धि दर्ज की।

नागरिक का भरोसा

उपभोक्ताओं ने पिछले कुछ समय में जिस जरूरत को टाला था, उसकी वापसी से निजी व्यय में इजाफा हुआ है। इससे इशारा मिलता है कि खर्च को लेकर उपभोक्ताओं का भरोसा बढ़ा है। ‘पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई), क्षमता का उपयोग, टैक्स उगाही, वाहनों की बिक्री के आँकड़े जैसे सूचकांक बताते हैं कि इस वित्त वर्ष के पहले कुछ महीनों में वृद्धि की गति तेज रही। अगस्त में मैन्युफैक्चरिंग की पीएमआई 56.2 थी, जो जुलाई में 56.4 थी। यह मामूली वृद्धि है, पर मांग में तेजी और महंगाई की चिंता घटने के कारण वृद्धि को मजबूती मिली है। खाद्य सामग्री से इतर चीजों के लिए बैंक क्रेडिट में मजबूत वृद्धि भी मांग में सुधार का संकेत देती है। दूसरी तरफ सरकारी खर्च महज 1.3 फीसदी बढ़ा है। सरकार राजकोषीय घाटे को काबू करने पर ध्यान दे रही है।

बेहतरी की ओर

जीडीपी के ये आँकड़े अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर को पेश नहीं करते हैं, पर इनके सहारे काफी बातें स्पष्ट हो रही हैं। पहला निष्कर्ष है कि कोविड और उसके पहले से चली आ रही मंदी की प्रवृत्ति को हमारी अर्थव्यवस्था पीछे छोड़कर बेहतरी की ओर बढ़ रही है। पर उसकी गति उतनी तेज नहीं है, जितना रिजर्व बैंक जैसी संस्थाओं को उम्मीद थी। इसकी वजह वैश्विक-गतिविधियाँ भी हैं। घरेलू आर्थिक गतिविधियों में व्यापक सुधार अभी नहीं आया है। आने वाले समय में ऊँची महंगाई, कॉरपोरेट लाभ में कमी, मांग को घटाने वाली मौद्रिक नीतियों और वैश्विक वृद्धि की मंद पड़ती संभावनाओं के रूप में वैश्विक चुनौतियों का अंदेशा बना हुआ है। मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ने से अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी आई है, जिससे पूँजी निवेश कम हुआ है। नए उद्योगों और कारोबारों के शुरू नहीं होने से रोजगार-सृजन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। इससे उपभोक्ता सामग्री की माँग कम होगी। सरकारी खर्च बढ़ने से इस कमी को कुछ देर के लिए ठीक किया जा सकता है, पर सरकार पर कर्ज बढ़ेगा, जिसका ब्याज चुकाने की वजह से भविष्य के सरकारी खर्चों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और विकास-योजनाएं ठप पड़ेंगी। इस वात्याचक्र को समझने और उसे दुरुस्त करने की एक व्यवस्था है। भारत सही रास्ते पर है, पर वैश्विक-परिस्थितियाँ आड़े आ रही हैं। अच्छी खबर यह है कि पेट्रोलियम की कीमतें गिरने लगी हैं।

Sunday, August 28, 2022

आज़ाद ने खोले कांग्रेसी अंतर्विरोध


गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे की चिट्ठी हाल के वर्षों में कांग्रेस के अंतर्विरोधों का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसलिए महत्वपूर्ण यह देखना है कि इस पत्र पर कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया क्या है। उस प्रतिक्रिया से ही पता लगेगा कि पत्र में जो लिखा गया है, वह किस हद तक सही है और किस हद तक एक दिलजले की भड़ास। यह पत्र सोनिया गांधी को लिखा गया है और इसमें राहुल गांधी को निशाना बनाया गया है। उन्होंने लिखा है, ‘पार्टी के सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को किनारे कर दिया गया है, अब अनुभवहीन चाटुकारों की मंडली पार्टी चला रही है।’ दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि गुलाम नबी को कांग्रेस ने हीरो बनाया। संगठन-सरकार में कई पदों से नवाजा। दो बार लोकसभा सांसद बनाया, जम्मू-कश्मीर का सीएम बनाया। चुनाव की हार से बचाकर पाँच बार राज्यसभा सांसद बनाया। उन्होंने मलाई काटी, आज दगाबाजी कर रहे हैं। पार्टी नेतृत्व को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इतना सीनियर नेता पार्टी क्यों छोड़ रहा है। क्या इसलिए कि उसे राज्यसभा की सीट नहीं मिली और दिल्ली में रहने के लिए उसे बंगला चाहिए? राज्यसभा की सीट तो अब की बात है, गुलाम नबी कम से कम तीन साल से तो अपनी बात कह ही रहे हैं। यह बात उन्होंने पार्टी के फोरम पर ही की है। वे अपने विचार पार्टी अध्यक्ष को लिखे पत्रों में व्यक्त करते रहे हैं। उनकी बात सुनने के बजाय उनपर आरोपों की बौछार क्यों लगी?

परिवार खामोश

सोनिया, राहुल और प्रियंका की कोई प्रतिक्रिया इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं आई है। बाकी सीनियर नेताओं के स्वर वैसे ही हैं, जैसे 1969 में इंदिरा कांग्रेस बनने के बाद से रहे हैं। शुक्रवार को दिन में पार्टी ने अजय माकन की एक प्रेस कांफ्रेंस रखी थी, पर उसका एजेंडा दिल्ली की आम आदमी पार्टी को निशाना बनाने का था। गुलाब नबी के इस्तीफे की खबर आने के बाद वह प्रेस कांफ्रेंस रद्द कर दी गई, क्योंकि स्वाभाविक रूप से सवाल इस इस्तीफे को लेकर ही होते। आज 28 अगस्त को कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई है। इस बैठक का विषय पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के कार्यक्रम को तय करना है। क्या उसमें कांग्रेस के आंतरिक प्रश्नों पर खुलकर विचार-विमर्श होगा? इस बैठक के विमर्श से भी आपको पार्टी की सोच-समझ का अंदाज लगेगा।

संकट या नया दौर?

कांग्रेस के लिए यह संकट की घड़ी है या नहीं है, यह अलग-अलग दृष्टिकोणों पर निर्भर करता है। पिछले नौ वर्षों में, यानी मोदी के आने के बाद, काफी लोग पार्टी छोड़कर गए हैं। हरबार कहा जाता है कि अच्छा हुआ, गंध गई। यानी कि अब ताजगी का नया दौर शुरू होगा। इस नजरिए से कहा जा सकता है कि गुलाम नबी का जाना, अच्छा ही हुआ। अब पार्टी का नया दौर शुरू होगा। पार्टी को अगले तीन हफ्तों में अपने अध्यक्ष का चुनाव करना है। साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने वले हैं। 

अगले साल कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं। दूसरे कई राज्यों में भी चुनाव हैं, पर पाँच में पहले चार राज्यों में कांग्रेस के महत्वपूर्ण हित जुड़े हुए हैं। राजनीति की निगाहें इससे आगे हैं, वह 2024 और 2029 के चुनावों तक देख रही है। गुलाम नबी के रहने या जाने से कांग्रेस की सेहत पर भले ही बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं हो, फिर भी उनके इस्तीफे से धक्का जरूर लगेगा। ऐसी परिघटनाओं से कार्यकर्ता का मनोबल गिरता है। उनके इस्तीफे के पहले पार्टी-प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने इस्तीफा दिया है। दोनों ने बदहाली के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार माना है। इसके पहले भी जो लोग पार्टी छोड़कर गए हैं, सबका निशाने पर राहुल गांधी रहे हैं।

वरिष्ठों की उपेक्षा

पाँच पेज के पत्र में गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी की तारीफ़ की है और कहा है कि उन्होंने यूपीए-1 और यूपीए-2 को शानदार तरीके से चलाया जिसकी वजह थी कि तब वरिष्ठ और अनुभवी लोगों की सलाह मानी जाती थी। उनके अनुसार पार्टी के शीर्ष पर एक ऐसा आदमी थोपा गया जो गंभीर नहीं है। राहुल गांधी का रवैया 2014 में कांग्रेस पार्टी की पराजय का कारण बना। अब पार्टी के अहम फ़ैसले राहुल गांधी की चाटुकार मंडली कर रही है और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया है। फ़ैसले राहुल गांधी के सिक्योरिटी गार्ड और पीए कर रहे हैं। इसी चाटुकार मंडली के इशारे पर जम्मू में मेरा जनाज़ा निकाला गया। जिन्होंने यह हरकत की उनकी तारीफ़ पार्टी के महासचिवों और राहुल गांधी ने की। इसी मंडली ने कपिल सिब्बल पर भी हमला किया, जबकि आपको और आपके परिवार को बचाने के लिए वे क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। उन्होंने राहुल गांधी के अध्यादेश फाड़ने के कृत्य को बचकाना बताया। पार्टी अब इस हाल में पहुँच गई है कि वहाँ से वापस नहीं लौट सकती।