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Monday, August 18, 2014

मॉनसून सत्र तो ठीक गुज़रा, पर भावी टकराव का अंदेशा कायम है

 सोमवार, 18 अगस्त, 2014 को 12:43 IST तक के समाचार
सोलहवीं लोकसभा का पहला बजट सत्र पिछले चार साल का सबसे सकारात्मक सत्र रहा. लोकसभा ही नहीं, संसद के दोनों सदनों ने कम व्यवधान और ज्यादा काम का रिकॉर्ड बनाया.
पन्द्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में जितनी क्लिक करेंगहमा-गहमी और शोरगुल देखने को मिली थी, उसके मुकाबले इस बार का सत्र अपेक्षाकृत शांति और सद्भाव के माहौल में गुजरे हैं.
संसदीय कार्यवाही का बेहतर माहौल में चलना क्या संकेत दे रहा है? क्या इससे भविष्य की राजनीति को लेकर कोई संकेत दिख रहा है? क्या लंबे समय से लंबित विधेयकों को सरकार पास कराने की कोशिश करेगी?
इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने.

पढ़िए विस्तार से

संसद की बैठकें शुरू होने के पहले आशंका व्यक्त की जा रही थी कि बहुमत के चलते कहीं ऐसा न हो कि सरकार विमर्श के बगैर ही अपने फ़ैसले करके उन्हें पास कराने की औपचारिकता भर पूरी करे. फिलहाल ऐसा नहीं लगता. अच्छी बात यह है कि सदन में पहली बार आए सदस्यों में भारी उत्साह नज़र आया और प्रश्नोत्तर काल में भी सुधार हुआ.

हंगामों की विदाई

लोकसभा ने 27 बैठकों में 167 घंटे और राज्यसभा में 142 घंटे काम हुआ. व्यवधान में लोकसभा ने तकरीबन 14 घंटे गंवाए जिसकी भरपाई 28 घंटे से ज़्यादा समय अलग से बैठकर की गई.
क्लिक करेंराज्यसभा में हंगामे के कारण 34 घंटे काम काज नहीं हो सका, लेकिन उसने 38 घंटे अतिरिक्त काम करके उसकी भरपाई की. इसकी तुलना पन्द्रहवीं लोकसभा से करें तो सन 2010 का पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया था और 2013 के बजट सत्र के दौरान सिर्फ 19 घंटे 36 मिनट काम हुआ था.
इस सत्र में दोनों सदनों ने न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक और उससे जुड़े संविधान विधेयक को तकरीबन आम सहमति से पास किया, वहीं बीमा विधेयक को राज्यसभा ने प्रवर समिति को सौंप कर गहरी राजनीतिक असहमति का अहसास भी कराया है.
संसद के इस सत्र के शांति-सद्भाव और सहमति-असहमति से जुड़े कुछ सवाल भी उठे हैं, जिनके जवाबों मे भविष्य की राजनीति और प्रशासन की दिशा छिपी है. एक ओर संसदीय सद्भाव वापस हुआ है, वहीं राजनीति में टकराव के कुछ नए मोर्चे खुलते दिखाई पड़ रहे हैं.

आर्थिक उदारीकरण पर टकराव

इंश्योरेंस कानून में संशोधन को लेकर यूपीए और एनडीए के बीच टकराव व्यावहारिक राजनीति का है. सिद्धांततः दोनों पक्ष इंश्योरेंस में विदेशी निवेश को बढ़ाकर 49 फीसदी करना चाहते हैं. यह विधेयक यूपीए सरकार ने ही पेश किया था और पन्द्रहवीं लोकसभा ने इसे पास कर दिया था.
अभी श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर राजनीतिक विरोध होगा. यूपीए सरकार भी इन कानूनों को पास कराना चाहती थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा कि दुनिया के देशों से कहें ‘कम एंड मेक इन इंडिया.’
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में विदेशी निवेश के लिए देश के श्रम कानूनों में बदलाव की बड़ी शर्त है. इससे जुड़े बदलावों को लाने के पहले सरकार को अलोकप्रियता का सामना करने को तैयार होना होगा.
खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश के यूपीए सरकार के फ़ैसले को हालांकि मोदी सरकार ने वापस नहीं किया है, पर यह साफ कर दिया है कि इसे हम लागू नहीं करेंगे. डब्ल्यूटीओ में टीएफए करार पर हाथ खींचकर भी सरकार ने कमोबेश ऐसा ही काम किया है.

कांग्रेस का अंदरूनी संकट

कांग्रेस पार्टी अभी तक नेतृत्व के संकट से उबर नहीं पाई है. लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी सदन में पीठे की सीट पर बैठते हैं. इधर 6 अगस्त को अचानक सदन में उन्होंने आक्रामक रुख अपना लिया.
सांप्रदायिक हिंसा पर बहस की मांग को लेकर उन्होंने न सिर्फ अपना रोष प्रकट किया, बल्कि अन्य सांसदों के साथ अध्यक्ष के आसन के क़रीब तक पहुंच गए. उन्होंने अध्यक्ष पर पक्षपात के आरोप भी लगाए.
यह आक्रामकता केवल एक दिन तक सीमित थी. अगले दिन से वे फिर खामोश हो गए. ऐसा माना जा रहा है कि इंश्योरेंस कानून पर पार्टी के भीतर दो राय हैं. लोकसभा में पार्टी यों भी संख्या के लिहाज़ से कमज़ोर है. नेतृत्व का असमंजस उसे और कमज़ोर कर रहा है.

Saturday, August 2, 2014

मोदी समर्थकों का उत्साह क्या ठंडा पड़ रहा है?

 शनिवार, 2 अगस्त, 2014 को 12:57 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहले दो महीनों में अपने विरोधियों को जितने विस्मय में डाला है, उससे ज़्यादा भौचक्के उनके कुछ घनघोर समर्थक हैं. ख़ासतौर से वे लोग जिन्हें बड़े फ़ैसलों की उम्मीदें थीं.
सरकार बनने के बाद मोदी की रीति-नीति में काफ़ी बदलाव हुआ है. सबसे बड़ा बदलाव है मीडिया से बढ़ती दूरी.
मीडिया की मदद से सत्ता में आए क्लिक करेंमोदी शायद मीडिया के नकारात्मक असर से घबराते भी हैं.
फुलझड़ियों की तरह फूटते उनके बयान गुम हो गए हैं. पर सबसे रोचक है उन विशेषज्ञों को लगा सदमा जो भारी बदलावों की उम्मीद कर रहे थे.
कोई बात है कि कुछ महीने पहले तक बेहद उत्साही मोदी समर्थकों की भाषा और शैली में ठंडापन आ गया है.

पढ़िए पूरा आकलन

शुरुआत मोदी की कट्टर समर्थक मानी जाने वाली मधु किश्वर ने की थी. उन्होंने क्लिक करेंस्मृति ईरानी को मानव संसाधन मंत्री बनाए जाने का खुलकर विरोध किया.

Thursday, July 10, 2014

आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी है ऐसा बजट

 गुरुवार, 10 जुलाई, 2014 को 17:54 IST तक के समाचार
अरुण जेटली, वित्त मंत्री, भारत
भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार का पहला बजट कमोबेश सकारात्मक रहा.
हालांकि सरकार ने रक्षा और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 26 प्रतिशत से 49 प्रतिशत करने के सिवाय अन्य कोई बड़े नीतिगत फ़ैसले नहीं किए.
सरकार ने आम करदाताओं को थोड़ी राहत ज़रूर दी है. वहीं युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने पर भी सरकार का ज़ोर रहा.
चुनावी वादे के अनुरूप सरकार ने गंगा की सफ़ाई के लिए भी अच्छा ख़ासा बजट आबंटित किया है.

पढ़िए प्रमोद जोशी का विश्लेषण विस्तार से

मोदी सरकार ने अपने उस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है, जिसकी घोषणा संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने की थी.
लगातार दो साल से पाँच फीसदी के नीचे चली गई अर्थव्यवस्था को इस साल पाँच फीसदी के ऊपर जाने का मौका मिलने जा रहा है.
वित्त मंत्री का यह बजट भाषण सामान्य भाषणों से ज्यादा लंबा था और इसमें सपनों की बातें हैं.
सरकार को अभी यह बताना होगा कि वह राजस्व प्राप्तियों के लक्ष्यों को किस प्रकार हासिल करेगी.
उससे बड़ी चुनौती है कि वह जीडीपी की तुलना में राजकोषीय घाटे को 4.1 प्रतिशत के भीतर कैसे रखेगी, जिसे वह खुद मुश्किल काम मानती है.

Tuesday, June 10, 2014

भारत के भव्य विकास का मोदी-स्वप्न

 सोमवार, 9 जून, 2014 को 21:11 IST तक के समाचार
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का आत्मविश्वास बोलता है. पिछली सरकार के भाषणों के मुकाबले इस सरकार के भाषण में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सच्चाई के रूप में सामने आती है, मजबूरी के रूप में नहीं. उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा है.
‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’ के मंत्र जैसी शब्दावली से भरे इस भाषण पर नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत मुहर साफ़ दिखाई पड़ती है. ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड-इंडिया को कायम करने की मनोकामना इसके पहले नरेंद्र मोदी किसी न किसी रूप में व्यक्त करते रहे हैं.
भाषण में कई जगह महात्मा गांधी का उल्लेख है- 1915 में भारत के महानतम प्रवासी भारतीय महात्मा गांधी भारत लौटे थे और उन्होंने भारत की नियति को ही बदल डाला. अगले वर्ष हम गांधी के भारत लौटने की शतवार्षिकी मनाएंगे और साथ ही ऐसे कदम भी उठाएंगे जिनसे प्रत्येक प्रवासी भारतीय का भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ हो और वे भारत के विकास में भागीदार बने.

सुनने में अच्छे लगते हैं

नरेंद्र मोदी का नारा है, 'पहले शौचालय, फिर देवालय'. राष्ट्रपति ने इसी तर्ज पर कहा, देश भर मे ‘स्वच्छ भारत मिशन’ चलाया जाएगा और ऐसा करना महात्मा गांधी को उनकी 150वीं जयंती पर हमारी श्रद्धांजलि होगी जो वर्ष 2019 में मनाई जाएगी.
भविष्य में सॉफ़्टवेयर के अलावा भारत को रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में एक विश्वव्यापी प्लेटफॉर्म के रूप में उभारने की सम्भावना को भी इस भाषण में रेखांकित किया है. भारत अभी तक रक्षा सामग्री के निर्यात से बचता रहा है.

Tuesday, January 7, 2014

'आप' का जादू क्या देश पर चलेगा?

 मंगलवार, 7 जनवरी, 2014 को 17:22 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी, केजरीवाल
आम आदमी पार्टी की दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा? इस जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है. वह अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
इसके लिए 10 जनवरी से देश भर में ‘मैं भी आम आदमी’ अभियान शुरू होगा. खबरों के मुताबिक पार्टी में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं लेकिन भीड़ बढ़ाने के पहले पार्टी को अपनी राजनीतिक धारणाओं को देश के सामने भी रखना होगा.
'आप' के कामकाज की शुरूआत मेट्रो पर सवार होकर शपथ लेने जाने, लालबत्ती संस्कृति को खत्म करने जैसी प्रतीकात्मक बातों से हुई.
जनता पर उसका अच्छा असर भी पड़ा लेकिन सरकार बनने के बाद उसके फैसलों और तौर-तरीकों को लेकर काफी लोगों की नाराज़गी भी उजागर हुई है.

फैसलों पर विवाद

विश्वास मत पर बहस के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने सरकार को बिजली-पानी के फैसलों के बाबत निशाना बनाया था. कहा गया कि पानी की कीमत कम होने का लाभ ग़रीबों को कम, पैसे वालों को ज़्यादा मिलेगा.

Saturday, January 4, 2014

कांग्रेस के पास राहुल के अलावा कोई विकल्प नहीं

 शनिवार, 4 जनवरी, 2014 को 09:40 IST तक के समाचार
राहुल गाँधी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ़ कर दिया है कि वे यूपीए के प्रधानमंत्री पद के अगले उम्मीदवार नहीं होंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला करने के लिए फिर कांग्रेस के पास कौन है?
अगर यह मान भी लें कि यूपीए सरकार आगे आने वाली है या संभावित है तो सबसे पहले राहुल गाँधी का नाम आएगा. 17 जनवरी को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में संभवतः राहुल गाँधी के नाम की घोषणा भी हो जाए.
अगर राहुल गाँधी का नाम घोषित नहीं हुआ, तो किसका नाम सामने आएगा? यह सवाल बहुत सहज इसलिए भी है क्योंकि राहुल गाँधी ने अभी तक कभी भी नहीं कहा है कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं.
इससे पहले राहुल गाँधी से जब भी सरकार में आने का आग्रह किया गया, उन्होंने मना ही किया है. ऐसे में संभवतः अंतिम क्षण में राहुल गाँधी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए मना भी कर दें.
ऐसे में कांग्रेस के नेताओं में से एक या दो के नाम ज़ेहन में आते हैं. सबसे पहला नाम है वित्त मंत्री पी चिदंबरम और दूसरा नाम है एके एंटनी. दोनों ही नेता दक्षिण भारत से हैं. एक तमिलनाडु के हैं, तो दूसरे केरल के. हाल ही में चिदंबरम ने ज़ोर देकर कहा था कि कांग्रेस को अब पीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा करनी चाहिए. हालाँकि वे यह भी कहते रहे हैं कि मुझे अपनी सीमाएं मालूम हैं.

Friday, January 3, 2014

‘अच्छी छवि’ के दौर में खराब छवि के शिकार मनमोहन

 शुक्रवार, 3 जनवरी, 2014 को 15:07 IST तक के समाचार
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संवाददाता सम्मेलन में किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं थी. सिवाय इसके कि उनके इस्तीफ़े को लेकर क़्यास थे, जिन्हें उन्होंने दूर कर दिया. यह भी साफ़ कर दिया कि वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक नहीं हैं.
उनका संवाददाता सम्मेलन एक माने में जनता को संबोधित करने का तीसरा मौक़ा था. सन 2011 के फ़रवरी और 2012 में टेलिविज़न पर दो बार वे चुनिंदा मीडियाकर्मियों से रूबरू हुए थे. हाल के चुनावों में कांग्रेस की हार और पार्टी नेतृत्व को लेकर पैदा हो रहे असमंजस को दूर करना शायद इस संवाददाता सम्मेलन का उद्देश्य था.
एक और उद्देश्य नरेंद्र मोदी के ख़तरे की ओर जनता का ध्यान खींचना था. पिछले डेढ़ साल से नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह को सीधा निशाना बना रखा है. इस बार मनमोहन सिंह ने उन्हें निशाना बनाया. शायद यह पार्टी की लोकसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है.
प्रधानमंत्री ने अपने दस साल के पूरे कार्यकाल की उपलब्धियों का ज़िक्र भी इस मौक़े पर किया, पर होता हमेशा यही है कि सारी बहस उनके नेतृत्व पर उठे सवालों तक सिमट जाती है. सच यह है कि उन्होंने यूपीए-2 की विफलताओं के जो कारण गिनाए उनसे सामान्य व्यक्ति की सहमति नहीं है. वे मानते हैं कि हम महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पाए और पर्याप्त संख्या में रोज़गार पैदा नहीं कर पाए. पर केवल इसी वजह से यूपीए सरकार को लेकर जनता के मन में रोष नहीं है.

Thursday, January 2, 2014

प्रतीकों से बाहर अब काम पर आना होगा 'आप' को

 गुरुवार, 2 जनवरी, 2014 को 17:05 IST तक के समाचार
इस बात को लेकर संशय नहीं कि दिल्ली की सरकार अपना बहुमत आसानी से साबित करेगी. मेट्रो यात्रा, लालबत्ती का तिरस्कार, मुफ़्त पानी और सस्ती बिजली, मीटरों और खातों की जाँच और विश्वासमत के आगे अब क्या?
कांग्रेस, ‘आप’ और भाजपा के ‘प्रेम-घृणा और ईर्ष्या की इस त्रिकोण कथा’ का पहला अध्याय प्रतीकों को समर्पित रहा. इस दौरान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ‘आप’ के उदय को क्रांतिकारी घटना के रूप में देखा. अब उसका उस अग्निपरीक्षा से सामना है, जिसे उसने खुद चुना है.
‘आप’ की ओर से बार-बार कहा गया कि हम सरकार बनाने के इच्छुक नहीं हैं. हमने किसी से समर्थन नहीं माँगा. जनता ने सरकार बनाने का आदेश दिया. हम अपना काम कर रहे हैं.

मुरव्वत का दौर खत्म

तीनों पार्टियाँ अब अपने कदम तौल रही हैं. भारतीय जनता पार्टी ने ‘आप’ और कांग्रेस पर एक साथ हमला बोला है और दोनों के बीच साठ-गांठ साबित करने की कोशिश की है.