जम्मू-कश्मीर की नियंत्रण रेखा से जो खबरें आ रहीं है वे
चिंता का विषय बनती जा रही हैं। शुक्र और शनिवार की आधी रात के बाद से अर्निया और
रघुवीर सिंह पुरा सेक्टर में जबर्दस्त गोलाबारी चल रही है। इसमें कम से कम दो
नागरिकों के मरने और छह लोगों के घायल होने की खबरें है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों
ने भारत की 22 सीमा चौकियों और 13 गाँवों पर जबर्दस्त गोलाबारी की है। पुंछ जिले
के हमीरपुर सब सेक्टर में भी गोलाबारी हुई है। उधर पाकिस्तानी मीडिया ने भी
सियालकोट क्षेत्र में भारतीय सेनाओं की और से की गई गोलाबारी का जिक्र किया है और
खबर दी है कि उनके दो नागरिक मारे गए हैं और छह घायल हुए हैं। मरने वालों में एक
महिला भी है।
सन 2003 का समझौता होने के पहले नियंत्रण रेखा पर भारी
तोपखाने से गोलाबारी होती रहती थी। इससे सीमा के दोनों और के गाँवों का जीवन नरक
बन गया था। क्या कोई ताकत उस नरक की वापसी चाहती है? चाहती है तो क्यों? बताया जाता है कि सन
2003 के बाद से यह सबसे जबर्दस्त गोलाबारी है। भारतीय सुरक्षा बलों ने इस इलाके की
बस्तियों से तकरीबन 3000 लोगों को हटाकर सुरक्षित स्थानों तक पहुँचा दिया है।
अगस्त के महीने में नियंत्रण रेखा के उल्लंघन की बीस से ज्यादा वारदात हो चुकी
हैं। अंदेशा इस बात का है कि यह गोलाबारी खतरनाक स्तर तक न पहुँच जाए।
सुरंग किसलिए?
भारतीय सुरक्षा बलों ने इस बीच एक सुरंग का पता लगाया है जो
सीमा के उस पार से इस पार आई है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान की और से घुसपैठ की
कोशिशें खत्म नहीं हुईं हैं। आमतौर पर सर्दियों के पहले घुसपैठ कराई जाती है।
बर्फबारी के बाद घुसपैठ कराना मुश्किल हो जता है। दो-एक मामले ऐसे भी होते हैं
जिनमें कोई नागरिक रास्ता भटक जाए या कोई जानवर सीमा पार कर जाए, पर उतने पर भारी
गोलाबारी नहीं होती। आमतौर पर फायरिंग कवर घुसपैठ करने वालों को दिया जाता है ताकि
उसकी आड़ में वे सीमा पार कर जाएं। अंदेशा इस बात का है कि पाकिस्तान के भीतर एक
तबका ऐसा है जो अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी का इंतज़ार कर रहा है।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में वहाबी ताकत पुनर्गठित हो रही है। कहीं
यह उसकी आहट तो नहीं?