Sunday, January 12, 2014

कांग्रेस को जरूरत है एक जादुई चिराग की

आम आदमी पार्टी हालांकि सभी पार्टियों के लिए चुनौती के रूप में उभरी है, पर उसका पहला निशाना कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। पर आप की जीत के बाद राहुल गांधी ने कहा कि हमें जनता से जुड़ने की कला आप से सीखनी चाहिए। सवा सौ साल पुरानी पार्टी के नेता की इस बात के माने क्या हैं? राहुल की ईमानदारी या कांग्रेस का भटकाव? पार्टी को पता नहीं रहता कि जनता के मन में क्या है। राहुल गांधी ने इसके फौरन बाद लोकपाल विधेयक का मुद्दा उठाया और कोई कुछ सोच पाता उससे पहले ही वह कानून पास हो गया। लोकसभा चुनाव होने में तकरीबन तीन महीने का समय बाकी है। अब कांग्रेस को तीन सवालों के जवाब खोजने हैं। क्या राहुल गांधी के नाम की औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में की जाएगी? क्या सरकार कुछ और बड़े राजनीतिक फैसले करेगी? कांग्रेस कौन सी जादू की पुड़िया खोलेगी जिसके सहारे सफलता उसके चरण चूमे?

पिछले मंगलवार को राहुल गांधी के घर पर प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के बड़े नेताओं की बैठक करने के बाद इतना जाहिर कर दिया कि वे भी अब सक्रिय रूप से चुनाव में हिस्सा लेंगी। राहुल गांधी को अपने साथ विश्वसनीय सहयोगियों की जरूरत है। अगले कुछ दिनों में महत्वपूर्ण नेताओं को सरकारी पदों को छोड़कर संगठन के काम में लगने के लिए कहा जाएगा। इस बार एक-एक सीट के टिकट पर राहुल गांधी की मोहर लगेगी। महासचिवों के स्तर पर भारी बदलाव होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और अन्य हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस के पास प्रभावशाली चेहरों की कमी है। कांग्रेस ने खुद भी इन इलाकों को त्यागा है। इसके पहले प्रियंका गाँधी को मुख्यधारा की राजनीति में लाने की कोशिश नहीं की है। अमेठी और रायबरेली के सिवा वे देश के दूसरे इलाकों में प्रचार करने नहीं जातीं। उन्हें राहुल की पूरक बनाने का प्रयास अब किया जा रहा है। लगता है संगठन के काम अब वे देखेंगी। प्रचार के तौर-तरीकों में भी बुनियादी बदलाव के संकेत हैं। हिंदी इलाकों में अच्छे ढंग से हिंदी बोलने वाले प्रवक्ताओं को लगाने की योजना है। सोशल मीडिया में पार्टी की इमेज सुधारने के लिए बाहरी एजेंसियों की मदद ली जा सकती है।

जीएसएलवी :भारतीय विज्ञान-गाथा का एक पन्ना

दुनिया के किसी भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।

जीएसएलवी की चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़ से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए। पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।

Tuesday, January 7, 2014

'आप' का जादू क्या देश पर चलेगा?

 मंगलवार, 7 जनवरी, 2014 को 17:22 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी, केजरीवाल
आम आदमी पार्टी की दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा? इस जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है. वह अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
इसके लिए 10 जनवरी से देश भर में ‘मैं भी आम आदमी’ अभियान शुरू होगा. खबरों के मुताबिक पार्टी में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं लेकिन भीड़ बढ़ाने के पहले पार्टी को अपनी राजनीतिक धारणाओं को देश के सामने भी रखना होगा.
'आप' के कामकाज की शुरूआत मेट्रो पर सवार होकर शपथ लेने जाने, लालबत्ती संस्कृति को खत्म करने जैसी प्रतीकात्मक बातों से हुई.
जनता पर उसका अच्छा असर भी पड़ा लेकिन सरकार बनने के बाद उसके फैसलों और तौर-तरीकों को लेकर काफी लोगों की नाराज़गी भी उजागर हुई है.

फैसलों पर विवाद

विश्वास मत पर बहस के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने सरकार को बिजली-पानी के फैसलों के बाबत निशाना बनाया था. कहा गया कि पानी की कीमत कम होने का लाभ ग़रीबों को कम, पैसे वालों को ज़्यादा मिलेगा.

Sunday, January 5, 2014

कांग्रेस की ‘मोदी-रोको’ रणनीति

कांग्रेस पार्टी क्या नरेंद्र मोदी को लेकर घबराने लगी है? उसे क्या वास्तव में मोदी का सामना करने की कोई रणनीति समझ में नहीं आ रही है? या फिर उसे मोदी का तोड़ मिल गया है, जिसके तहत नई रणनीति बनाई जा रही है? इस वक्त प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन की जरूरत क्या थी? क्या यह उनके रिटायरमेंट की घोषणा थी और वे राहुल गांधी के आगमन की घोषणा कर रहे हैं? या वे अपने दस साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाना चाहते हैं? या कांग्रेस पार्टी की नई रणनीति के रूप में नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर लोकसभा चुनाव के कांग्रेस अभियान का श्रीगणेश कर रहे हैं? प्रधानमंत्री इसके पहले भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं, पर इस बार सन 2007 में सोनिया गांधी के 'मौत के सौदागर' बयान को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अहमदाबाद की गलियों में बेगुनाह लोगों के खून का ज़िक्र किया है।