Monday, March 14, 2011

आपदाओं से निपटना जापान से सीखें


भूकम्प और सुनामी से तबाह हुए इलाके में किसी बालक को मिले पुरस्कार
 प्रमाणपत्र के चिथड़े को पढता एक बालक।

मैने यह लेख जब लिखा था तब न्यूक्लियर रिएक्टरों वाली बात उभरी नहीं थी। रेडिएशन के खतरे ने जापानी त्रासदी को इंसानियत के सामने सबसे बड़े खतरों की सूची में दर्ज कर दिया है। शायद अब यह सोचना होगा कि जिन इलाकों में भूकम्प इतने ज्यादा आते हों वहाँ नाभिकीय ऊर्जा का विकल्प खारिज करना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि आपदाओं से जूझने के मामले में हमें जापान से सीखना चाहिए। 

सुनामी से जूझते जापान पर नज़र डालें तो आपको उससे सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। दुनिया का अकेला देश जिसने एटम बमों का वार झेला। तबाही का सामना करते हुए इस देश के बहादुर और कर्मठ नागरिकों ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद सिर्फ दो दशक में जापान को आर्थिक महाशक्ति बना दिया। तबाहियों से खेलना इनकी आदत है। सुनामी शब्द जापान ने दिया है। यह देश हर साल कम से कम एक हजार भूकम्पों का सामना करता है। सैकड़ों सुनामी हर साल जापानी तटों से टकरातीं हैं। पर इस बार उनके इतिहास का सबसे जबर्दस्त भूकम्प आया है।

Sunday, March 13, 2011

राष्ट्रीय धुलाई की बेला



पिछले महीने 16 फरवरी को टीवी सम्पादकों के साथ बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, मैं इस बात को खारिज नहीं कर रहा हूँ कि हमें गवर्नेंस में सुधार की ज़रूरत है। उसके पहले गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, बेशक कुछ मामलों में गवर्नेंस में चूक है, बल्कि मर्यादाओं का अभाव है। अभी 3 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने हसन अली के मामले में सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, ऐसे उदाहरण हैं जब धारा 144 तक के मामूली उल्लंघन में व्यक्ति को गोली मार दी गई, वहीं कानून के साथ इतने बड़े खिलवाड़ के बावजूद आप आँखें मूँदे बैठे हैं। उसी रोज़ मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने चीफ विजिलेंस कमिश्नर के पद पर पीजे थॉमस की नियुक्ति को रद्द करते हुए कि यह राष्ट्रीय निष्ठा की संस्था है। इसके साथ घटिया खेल मत खेलिए। 

Wednesday, March 9, 2011

बदली स्ट्रैपलाइन

टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के अखबार ईटी ने पत्रकारीय मर्यादा तय की है साथ ही टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने डेल्ही टाइम्स, बॉम्बे टाइम्स और बेंग्लोर टाइम्स के मास्टहैड के नीचे की लाइन बदल दी है। नई लाइन है  Advertorial, Entertainment Promotional Feature. इसके पहले यह लाइन थी Entertainment & Advertising Feature.





अरुणा शानबाग


गिरिजेश कुमार का यह आलेख अरुणा शानबाग के ताज़ा प्रकरण पर है। इस सिलसिले में मैं केवल यह कहना चाहूँगा कि सुप्रीम कोर्ट ने दया मृत्यु को अस्वीकार करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह बताया कि मुम्बई के केईएम अस्पताल की नर्से और अन्य कर्मचारी उसे मरने देना नहीं चाहते। इन नर्सों ने पिछले 37 साल से अरुणा की पूरी जिम्मेदारी ले रखी है। इन नर्सों के जीवन में अरुणा का एक मतलब हो गया है। अरुणा उनकी एकता की एक कड़ी है। अदालत ने इन कर्मचारियों का उल्लेख करते हुए कहा है कि हर भारतीय को ऐसे कर्मचारियों पर फख्र होना चाहिए। 

अरुणा शानबाग: समाज ने जिसे जिंदा लाश बना दिया

इसे विडंबना कहे या संयोग कि जहाँ एक तरफ़ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सौ साल पूरे होने पर महिलाओं की भागीदारी और हासिल की गई उपलब्धियों तथा पिछड़ेपन के कारणों पर चर्चा हो रही है वहीँ दूसरी तरफ़ एक महिला अरुणा शानबाग की दयामृत्यु याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी| हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला कई नैतिक, मानवीय, सामाजिक और क़ानूनी पहलुओं को ध्यान में रखकर किया है लेकिन फिर भी यह सवाल तो उठता ही है कि अरुणा की जिंदगी को जिंदा लाश में तब्दील कर देने का जो कलंक  कुछ पुरुषवादी मानसिकता वाले लोगों ने समाज के ऊपर लगाया  है, वह उसे ‘जीने का हक है’ कह देने भर से धुल जाएगा? 

Tuesday, March 8, 2011

पत्रकारीय मर्यादा की स्वर्णिम शपथ

देश के सबसे बड़े बिजनेस अखबार इकोनॉमिक टाइम्स या ईटी ने अपने 7 मार्च के अंक के पहले सफे पर अपने लिए पत्रकारीय मर्यादाओं की आचार संहिता घोषित की है। इसके पहले देश के एक दूसरे बिजनेस डेली मिंट ने भी अपनी आचार संहिता घोषित कर रखी है। कुछ अन्य अखबारों की आचार संहिताएं भी होंगी।
हिन्दी के अखबारों में से किसी ने अपनी आचार संहिता बनाई है इसकी जानकारी मुझे नहीं है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आचार संहिता का पता मुझे नहीं है। अलबत्ता उनके एक संगठन एनबीए ने कुछ मर्यादा रेखाएं तय कर रखीं हैं।