देर रात टीवी की बहस देख और सुनकर जो लोग सोए थे उन्हें सुबह के अखबारों में खबर मिली कि धोखा हो गया, सरबजीत नहीं सुरजीत की रिहाई का आदेश है। दिल्ली में इंडियन एक्सप्रेस या देर से छूटने वाले अखबारों में ही यह खबर थी, पर फेसबुकियों ने सुबह सबको इत्तला कर दी। बहरहाल आज इस बात पर बहस हो सकती है कि धोखा हुआ या नहीं? पाकिस्तान सरकार जो कह रही है वह सही है या नहीं? मीडिया ने जल्दबाज़ी में मामले को उछाल दिया क्या? हो सकता है कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दफ्तर के ही किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति से गलती हो गई हो।
आज के हिन्दी अखबारों का सवाल है कि राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी क्यों पलट गए? राजस्थान पत्रिका के जालंधर संस्करण का शीर्षक है पाकिस्तान का दगा। कहीं शीर्षक है आधी रात को धोखा। बहरहाल विदेश मंत्री एसएम कृष्णा सर्बजीत की रिहाई का स्वागत कर चुके हैं। आमतौर पर डिप्लोमेटिक जगत में बगैर पूर्व सूचना के ऐसा नहीं होता। पीटीआई के इस्लामाबाद संवाददाता रियाज उल लश्कर का भी कहना है कि राष्ट्रपति ने शायद फौज के दबाव में आकर पलटी मारी होगी।
पाकिस्तान में मंगलवार शाम से ही मीडिया में खबरें चलने लगीं कि राष्ट्रपति ने फैसला किया है कि सरबजीत सिंह रिहा होंगे। इसे लेकर वहां मीडिया पर बहस भी चलने लगी। भारतीय विदेश मंत्री ने जरदारी को बधाई तक दे दी। तभी रात करीब 12 बजे राष्ट्रपति की ओर से सफाई जारी हुई कि रिहाई सरबजीत की नहीं, सुरजीत की हो रही है।