भारत और पाकिस्तान को आसमान से देखें तो ऊँचे पहाड़, गहरी वादियाँ, समतल मैदान और गरजती नदियाँ दिखाई देंगी। दोनों के रिश्ते भी ऐसे ही हैं। उठते-गिरते और बनते-बिगड़ते। सन 1988 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले न करने का समझौता किया और 1989 में कश्मीर में पाकिस्तान-परस्त आतंकवादी हिंसा शुरू हो गई। 1998 में दोनों देशों ने एटमी धमाके किए और उस साल के अंत में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ का संवाद शुरू हो गया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा के रूप में हुई। लाहौर के नागरिकों से अटल जी ने अपने टीवी संबोधन में कहा था, ‘यह बस लोहे और इस्पात की नहीं है, जज्बात की है। बहुत हो गया, अब हमें खून बहाना बंद करना चाहिए।‘ भारत और पाकिस्तान के बीच जज्बात और खून का रिश्ता है। कभी बहता है तो कभी गले से लिपट जाता है।
Tuesday, March 29, 2011
Monday, March 28, 2011
कॉरपोरेट दलाली और इस दलाली में क्या फर्क है?
चूंकि बड़ी संख्या में पत्रकारों को कॉरपोरेट या राजनैतिक दलाली में कुछ गलत नहीं लगता, इसलिए जीवन के बाकी क्षेत्रों में भी दलाली सम्मानजनक कर्म का रूप ले ले तो आश्चर्य नहीं। अमेरिका के एक पुरस्कृत खेल पत्रकार ने वेश्यावृत्ति की दलाली का काम इसलिए शुरू किया कि उसके संस्थान ने उसका वेतन कम कर दिया था। अखबारों की गिरती आमदनी के कारण उसका वेतन कम किया गया था।
अमेरिका के मैनचेस्टर, न्यू हैम्पशर के केविन प्रोवेंचर को सेलम, मैसाच्यूसेट्स की एक अदालत ने ढाई साल की कैद की सजा दी है। ये सज्जन न्यू हैम्पशर और मैसाच्यूसेट्स में वेश्यावृत्ति का कारोबार चलाते थे। इन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा, डाउनटर्न के कारण अखबार ने मेरा वेतन कम कर दिया था। उसकी भरपाई के लिए यह काम कर रहा था। इस पत्रकार को न्यू हैम्पशर के सर्वश्रेष्ठ स्पोर्ट्स राइटर का पुरस्कार चार बार मिल चुका है।
Friday, March 25, 2011
नाच सही या आँगन टेढ़ा
सन 1957 के आम चुनाव राष्ट्रीय-पुनर्गठन के बाद हुए थे। केरल का जन्म भी उसी दौरान हुआ था। उस प्रदेश की विधानसभा का वह पहला चुनाव था। प्रदेश की 126 सीटों में से कम्युनिस्ट पार्टी 60 में जीती। कांग्रेस को 43, प्रजा समाजवादी पार्टी को 9 और निर्दलीय उम्मीदवारों को 15 सीटें मिलीं। पाँच निर्दलीय उम्मीदवारों की मदद से ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में दुनिया की पहली लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार सामने आई। कांग्रेस पार्टी इस अपमान को सहन नहीं कर पाई और बहुत जल्द इस सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। सरकार रही न रही, पर उसका बनना एक महत्वपूर्ण घटना थी। देश के आकाश पर लाल झंडा इसके बाद कई बार लहराया। खासतौर से बंगाल में 34 साल तक सरकार चलाकर वामपंथियों ने दूसरे किस्म का रिकॉर्ड बनाया, जो भारतीय राजनीति में ही नहीं दुनिया की राजनीति में अतुलनीय है।
Sunday, March 20, 2011
प्रकृति बगैर कैसी प्रगति?
उन्नीसवीं सदी के शुरू में यह आशंका पैदा हुई कि दुनिया की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है, उसके अनुरूप अन्न का उत्पादन नहीं होता। अंदेशा था कि कहीं भुखमरी की नौबत न आ जाए। ऐसा नहीं हुआ। दुनिया में एक के बाद एक कई हरित क्रांतियां हुईं। भुखमरी का अंदेशा आज भी है। पर यह खतरा गरीबों के लिए है। और उनके लिए यह अंदेशा हमेशा रहा। औद्योगिक क्रांति की बुनियाद में थी भाप की ताकत। धरती के गर्भ में मौजूद पेट्रोलियम और कोयले ने उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में दुनिया को कहां से कहाँ पहुँचा दिया। दोनों फॉसिल फ्यूल अब खत्म हो रहे हैं। पर इनका खत्म होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है। खौफनाक है इनका खतरनाक हो जाना। जबर्दस्त कार्बन उत्सर्जन के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। कार्बन उत्सर्जन इंसान के विकास की देन है। विकास भी ऐसा जिसमें करोड़ों लोग आज भी भूखे सोते हैं।
Wednesday, March 16, 2011
भारतीय भाषाओं के मीडिया की ताकत और बढ़ेगी
पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में खबर थी कि आम बजट के रोज हर चैनल किसी न किसी वजह से नम्बर वन रहा। टैम के निष्कर्षों को सारे चैनल अपने-अपने ढंग से पेश करते हैं। कुछ ऐसा ही प्रिंट मीडिया के सर्वे के साथ होता है। औसत पाठक को एआईआर और टोटल रीडरशिप का फर्क मालूम नहीं होता। अखवार चूंकि सर्वेक्षण के नतीजों का इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए करते हैं, इसलिए जो पहलू उनके लिए आरामदेह होता है वे उसे उठाते हैं। मसलन आयु वर्ग या आय वर्ग। किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में या किसी खास शहर में।
पाठक सर्वेक्षणों के बारे में चर्चा करने के पहले यह समझ लिया जाना चाहिए कि ये अनुमान हैं, वास्तविक संख्या नहीं। इनकी निश्चित संख्या से यह नहीं मान लेना चाहिए कि पाठक संख्या यही है। अखबारों के प्रिट ऑर्डर के एबीसी ऑडिट के आधार पर निष्कर्ष अलग तरह के होते हैं। भारत में एनआरएस और फिर आईआरएस के पीछे मूल विचार विज्ञापन उद्योग के सामने मीडिया के प्रसार और प्रभाव की तस्वीर पेश करना है। इस प्रक्रिया को पाठक के सामने रखने का उद्देश्य सिर्फ यह बताना हो सकता है कि कौन सा अखबार लोकप्रिय है। यों भी पाठक अपनी मर्जी का अखबार पढ़ता है। वह यह देखकर अखबार नहीं लेता कि उसे कितने पाठक और पढ़ रहे हैं।
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