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Wednesday, September 19, 2012

ममता की वापसी के बाद


ममता बनर्जी को यह साबित भी करना था कि वे सिर्फ धमकी नहीं देती, कुछ कर भी सकती हैं। इस फैसले से उन्हें लोकप्रियता भी मिलेगी। लोकलुभावन बातों को जनता पसंद करती है। ममता की छवि गरीबों के बीच अच्छी है, पर बंगाल के शहरों में उनकी लोकप्रियता घट रही है। पर कांग्रेस के लिए बंगाल गले में लटके पत्थर की तरह है। ममता को मनाने की कला भी कांग्रेस को आती है। कहते हैं कि ममता बनर्जी को सोनिया की बात समझ में आती है। यों उन्होंने मंत्रियों के इस्तीफे का समय कुछ दूर रखा है। यानी सुलह-सफाई के लिए समय है। उन्होंने अभी घोषणा की है राष्ट्रपति को पत्र नहीं लिखा है। औपचारिक रूप से समर्थन वापसी के बाद बीजेपी सरकार से विश्वासमत हासिल करने की माँग कर सकती है। उसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना होगा।

Monday, June 18, 2012

समय से सबक सीखो ममता दी

पिछले बुधवार सोनिया गांधी के साथ मुलाकात करने के बाद ममता बनर्जी जितनी ताकतवर नज़र आ रहीं थीं, उतनी ही कमज़ोर आज लग रहीं हैं। राजनीति में इस किस्म के उतार-चढ़ाव अक्सर आते हैं, पर पिछले एक अरसे से ममता बनर्जी का जो ग्राफ क्रमशः ऊपर जा रहा था, वह ठहर गया है। एक झटके में उनकी सीमाएं भी सामने आ गईं। अभी तक कांग्रेस मुलायम सिंह के मुकाबले ममता को ज्यादा महत्व दे रही थी, क्योंकि उसे पता है कि मुलायम सिंह अपनी कीमत वसूलना जानते हैं। ममता बनर्जी ने जो बाज़ी चली वह कमजोर थी। जिन एपीजे अब्दुल कलाम को वे प्रत्याशी बनाना चाहती थीं उनकी रज़ामंदी उनके पास नहीं थी। बहरहाल वे अब अकेली और मुख्यधारा की राजनीति से कटी नज़र आती हैं। बेशक उनके पास विकल्प खुले हैं। पर एक साल के मुख्यमंत्री पद और पिछले छह महीने में राष्ट्रीय राजनीति से प्राप्त अनुभवों का लाभ उन्हें उठाना चाहिए। वे देश की उन कुछ नेताओं में से एक हैं जो सिर्फ अपने दम पर राजनीति की राह बदल सकते हैं। देखना यह है कि बदलते वक्त से वे कोई सबक सीखती हैं या नहीं।