Sunday, April 9, 2023

केवल मुग़लों पर क्यों ठिठकी शिक्षा की बहस?


केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम और पुस्तकों में हुए बदलाव अचानक फिर से चर्चा के विषय बने हैं। हालांकि इन बदलावों की घोषणा और सूचना पिछले साल अप्रेल के महीने में ही हो गई थी, पर चूंकि नया पाठ्यक्रम इस वर्ष लागू किया जा रहा है, शायद इसलिए यह चर्चा फिर से हो रही है। हालांकि पाठ्यक्रम का पुनर्संयोजन कक्षा 6 से 12 तक के अलग-अलग विषयों का हुआ है, पर सबसे ज्यादा चर्चा इतिहास के पाठ्यक्रम को लेकर है। 

भारत में इतिहास राजनीति का विषय है। भारतीय राजनीति इस समय सेक्युलरिज़्म और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की बहस से गुजर रही है, इसलिए छोटे से छोटे बदलाव को भी संदेह की निगाहों से देखा जाता है। शिक्षा को संकीर्ण नजरिए से देखना नहीं चाहिए, पर इतिहास, साहित्य, राजनीति-शास्त्र और संस्कृति ऐसे विषय हैं, जिन्हें लेकर वस्तुनिष्ठता आसान भी नहीं है। यह काम विशेषज्ञों की मदद से ही होगा। पर हम यह भी जानते हैं कि हमारे देश में विशेषज्ञ भी वस्तुनिष्ठ कम, वैचारिक प्रतिबद्ध ज्यादा हैं। 

बहस करने वालों में से ज्यादातर ने इनमें से कोई किताब एकबार भी उठाकर नहीं देखी होगी। हिंदी लेखक भी कक्षा 12 की इतिहास की जिस किताब का जिक्र कर रहे हैं, उसके हटाए गए विषय का नाम अंग्रेजी में ही लिख रहे हैं, क्योंकि पूरा मीडिया किसी एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के आधार पर बहस कर रहा है। किसी ने तो हिंदी की किताब देखी होती, तो उसका उल्लेख करता। हालांकि इससे फर्क कुछ नहीं पड़ता। मुझे केवल यह रेखांकित करना है कि सारी बातें किसी एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर है। 

बहरहाल इस विषय पर काफी बहस पिछले साल ही हो गई है, पर दो-एक बातें हाल की हैं। खासतौर से महात्मा गांधी की हत्या को लेकर पाठ्य पुस्तक से हटाई गई कुछ पंक्तियों का मसला सामने आया है, जिनका नोटिफिकेशन पिछले साल नहीं हुआ। एनसीईआरटी ने माना है कि उसकी अनदेखी हुई है।

बदलाव क्यों
2017 में जब इन किताबों का पुनरीक्षण किया गया, तब उसके पीछे ज्यादा बड़ी जरूरत उन्हें अपडेट करने की थी। उसके दस साल पहले किताबों में बदलाव हुआ था। बहुत सी किताबें उसके भी दस-पंद्रह साल पहले से हूबहू उसी रूप में छपती आ रही थीं, जैसी कि मूल रूप में लिखी गईं। सामाजिक विज्ञान की एक पुस्तक मे, जिसकी प्रस्तावना पर नवंबर 2007 की तारीख पड़ी थी, देश में आवास, विद्युत आपूर्ति और पाइप से पानी की सप्लाई के आँकड़े 1994 के थे। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उस साल 182 पाठ्य पुस्तकों में 1,334 बदलाव किए गए। औसतन हरेक किताब में सात बदलाव। इनमें जीएसटी टैक्स या ऐसी ही बातें शामिल की गईं। 

इसबार के बदलाव उससे भी ज्यादा हैं, क्योंकि ज्यादातर किताबों का आकार छोटा किया गया है। इस साल बदलाव के पीछे केवल अपडेट करने की इच्छा नहीं है, बल्कि कहा गया है कि कोविड-19 के दौरान महसूस किया गया कि बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बहुत ज्यादा है। उसे कम करना चाहिए। इस लिहाज से इसबार अपडेट के साथ-साथ पुस्तकों का आकार भी छोटा किया गया है।

बोझ कम करना
पिछले साल एनसीईआरटी ने पाठ्य पुस्तकों में पाठ्य सामग्री का पुनर्संयोजन करने की घोषणा करते हुए कहा था कि कोविड-19 महामारी को देखते हुए विद्यार्थियों के ऊपर से पाठ्य सामग्री का बोझ कम करना जरूरी समझा गया।  राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी विद्यार्थियों के लिए पाठ्य-सामग्री का बोझ कम करने और रचनात्मक नज़रिए से अनुभव करते हुए सीखने के अवसर प्रदान करने पर ज़ोर दिया गया है। इस पृष्ठभूमि में एनसीईआरटी ने सभी कक्षाओं की पुस्तकों का पुनर्संयोजन किया है। 

इसमें ध्यान रखा गया है कि एक ही कक्षा में अलग-अलग विषयों में या उससे आगे या पीछे की कक्षाओं में पाठ्य सामग्री की दोहर नहीं हो। बाकी बातें कठिनाई और शिक्षकों की आसानी से भी जुड़ी हैं। विद्यार्थी बाहरी हस्तक्षेप के बगैर स्वयं पढ़ सकें। इन सबके अलावा सामग्री अप्रासंगिक नहीं हो। इन पंक्तियों के लेखक ने जब इन बदलावों को देखने का प्रयास किया, तब एक बात स्पष्ट हुई कि जिन प्रश्नों से मीडिया जूझ रहा है, वे महत्वपूर्ण भले ही हैं, पर समुद्र में बूँद जैसे हैं। उन्हें लेकर छिड़ी बहस इन विषयों के पीछे छिपी राजनीति को उछालने के लिए हैं।

राजनीतिक नज़रिया
किताबों के शैक्षिक-प्रश्नों पर चर्चा उतनी नहीं है, जितनी राजनीतिक-नज़रिए को लेकर है। कांग्रेस, बीजेपी, साम्यवादी, समाजवादी, द्रविड़ और आंबेडकरवादी पार्टियों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। सवाल है कि बच्चों को वस्तुनिष्ठ शिक्षा प्रदान करना क्या संभव नहीं है? ज्यादातर टकराव इतिहास, समाज-विज्ञान और साहित्य की शिक्षा में देखने को मिलेंगे। गणित, विज्ञान, भूगोल, कला और संगीत वगैरह में इसबात की संभावनाएं काफी कम हैं। जबकि सबसे ज्यादा बदलाव गणित और विज्ञान की पुस्तकों में ही करने की जरूरत होगी, क्योंकि उन्हें समय के साथ चलना होता है। 

भारतीय जनता पार्टी का दृष्टिकोण रहा है कि पाठ्य-सामग्री में भारत की मौलिकता भी झलकनी चाहिए। इससे असहमति नहीं होनी, पर ज्यादा बड़े सवाल सांप्रदायिक सद्भाव  और विद्वेष से जुड़े हैं। शिक्षा का काम वस्तुनिष्ठ तरीके से इतिहास की शिक्षा देना है। इन बातों के राजनीतिक निहितार्थ हैं, अब उनपर ध्यान दें। मसलन सामाजिक विज्ञान की पुस्तक से 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भ या भारतीय राजनीति के एक खंड में अटल बिहारी वाजपेयी की 'राजधर्म' टिप्पणी का हटना और  ‘हिंदू चरमपंथियों की गांधी के प्रति नफरत’, महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगे प्रतिबंध वगैरह। ये तथ्य राजनीतिक नज़रिए को बताते हैं। देखना यह भी होगा कि ये बातें इन किताबों में कब जोड़ी गईं, उस समय किसकी सरकार थी वगैरह। इन्हें जोड़े बगैर काम चलता था या नहीं? और जुड़ गए, तो हटाया क्यों गया?

मुग़लकाल का हटना

इस पूरी प्रक्रिया को शैक्षिक-गतिविधि के रूप में देखने की जरूरत है। ऐसा होता, तो गणित, विज्ञान और भूगोल जैसे विषयों के बदलाव पर भी बात होती। सारी बहस का इतिहास पर आकर गिरना बताता है कि हम अतीत की कटुताओं को वस्तुनिष्ठ तरीके से देखना नहीं चाहते। फेसबुक पर एक प्रगतिशील लेखक ने अपनी बात की शुरुआत इस वाक्य से की है, मुग़लकाल को एनसीईआरटी की इतिहास-पुस्तकों से बाहर कर दिया गया है।पूरे पाठ्यक्रम पर नज़र डालें, तो यह बात अर्धसत्य है। बेशक 12वें दर्जे की किताब में मुग़लकाल से जुड़ा एक पाठ हटा दिया गया है, पर ऐसा नहीं कि मुग़लकाल को एनसीईआरटी की किताबों से हटा दिया गया है या भारतीय इतिहास से मुग़लों का नाम हटा दिया गया है। 12वें दर्जे की पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय के तीन भाग हैं। इन तीनों किताबों में हड़प्पा-सभ्यता से लेकर भारतीय संविधान के बनने तक का विवरण है। कक्षा 12 की पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2 के विषय-9 को हटाया गया है, जिसका नाम है शासक और इतिवृत्त: मुगल दरबार (लगभग सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियाँ)। कक्षा 12 में इतिहास की तीन पुस्तकें हैं, जिनमें भारतीय इतिहास से जुड़े कुछ विषयों की जानकारी दी गई है। जिस पाठ को हटाया गया है, उससे ठीक पहले वाला पाठ भी मुग़लकाल पर ही है।

इतिहास की किताबें

इसी तरह 11वें दर्जे की पुस्तकों में विश्व इतिहास के कुछ विषयों की जानकारी दी गई है। छात्रों को केवल भारत के इतिहास की ही नहीं विश्व इतिहास की जानकारी क्रमबद्ध तरीके से दी गई है। उच्चतर कक्षाओं में वे इतिहास का और विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं। यों भी इतिहास केवल स्कूली पाठ्य पुस्तकों तक सीमित नहीं होता। एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों में कक्षा 6 से 8 तक बच्चों को भारतीय इतिहास के प्रारंभिक काल से लेकर आधुनिक युग तक की जानकारी दी जाती है। हर वर्ष एक विशेष ऐतिहासिक काल के बारे में जानकारी दी जाती है। कक्षा 9 और 10 की किताबों में परीक्षण का दायरा बदलता है। प्राथमिक कक्षाओं के विपरीत यहाँ एक छोटा सा काल चुनकर भारत और समकालीन विश्व का अध्ययन किया जाता है।

वृहत्तर इतिहास

भारतीय इतिहास वृहत्तर विश्व-इतिहास का भी हिस्सा है। शायद इसीलिए कक्षा 11 में विश्व इतिहास के कुछ विषयों को शामिल किया गया है। इस दौरान पृथ्वी पर इनसानों के जीवन की शुरुआत से आज तक के लंबे अंतराल के बीच अपनी कालानुक्रमिक दृष्टि को विस्तार दिया गया। एक नज़र कक्षा 11 की पुस्तक विश्व इतिहास के कुछ विषय पर डालें। इसमें कुल 11 विषय थे, जिनमें से चार को हटा दिया गया है। जो विषय हटे हैं वे इस प्रकार हैं: 1.समय की शुरुआत, 2.इस्लाम का उदय और विस्तार, 3.संस्कृतियों में टकराव और 4.औद्योगिक क्रांति। आप चाहें, तो इन सभी को महत्वपूर्ण मानें या चाहें तो नहीं मानें। पर किताबों को छोटा करने के बाद अब इन किताबों को नए सिरे से लिखने की जरूरत पैदा हो गई है। ताकि जो हटा है उसके कारण किसी प्रकार का शून्य पैदा नहीं हो। इसी तरह साहित्य, सामाजिक विज्ञान वगैरह के जो पाठ हटाए गए हैं और जो बचे हैं, उनपर फिर से दृष्टि डाली जाए। हम केवल इस बात पर जोर क्यों दे रहे हैं कि निराला, फिराक गोरखपुरी, ब्रजमोहन व्यास, विष्णु खरे या रामविलास शर्मा की फलाँ-फलाँ रचना क्यों हटा दी? आप यह भी देखें कि बाकी क्या बचा है। संस्कृत की किताबों के भी अध्याय कटे हैं।

राष्ट्रीय पाठ्यक्रम

अब कुछ बुनियादी बातों पर विचार करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य भारत में स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा सहित पूरी शिक्षा-प्रणाली को बदलना है। स्कूली शिक्षा के संदर्भ में, राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में 10+2 प्रणाली को बदलकर 5+3+3+4 करने की सिफारिश की गई है। पाठ्यक्रम में संस्कृति की अच्छी नींव, निष्पक्षता और समावेशन, बहुभाषावाद, अनुभवात्मक शिक्षा, विषय वस्‍तु के बोझ को कम करने, कला और खेल के एकीकरण आदि पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया है। पिछले हफ्ते एनईपी-2020 में आगे कार्य करते हुए, चार राष्ट्रीय पाठ्यक्रमों (एनसीएफ) की रूपरेखाओं का प्रारूप पेश किया गया है। अर्थात स्कूली शिक्षा, बचपन की देखभाल और शिक्षा, अध्यापक की शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा के लिए की पहल की गई है। डॉ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में शिक्षा मंत्रालय ने एनसीएफ को शुरू करने और मार्गदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया। यह विचार करने का समय है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि नीति बन जाने के बाद हम माथापच्ची करें।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

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