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Wednesday, June 16, 2010

क्या खेल सामाजिक बदलाव भी कर सकते हैं?

खेल हमारी ऊर्जा, हमारे विचार और सामूहिक अभियान का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक स्वस्थ समाज खेल में भी स्वस्थ होना चाहिए। खेलों को सिर्फ मनोरंजन नहीं मानना चाहिए। वे मनोरंजन भी देते हैं। मनोरंजन की भी हमारे विकास में भूमिका है। मूलतः खेल हमें अनुशासित, आत्म विश्वासी और स्वाभिमानी बनाते हैं। समाज के पिछड़े वर्गों को भागीदारी देकर हम उन्हें खेल के मार्फत अपनी सामर्थ्य दिखाने का मौका दे सकते हैं। लड़कियों को आगे लाने मे खेल की जबर्दस्त भूमिका। आज के हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख इसी विषय पर केन्द्रित है।




लेख पढ़ने के लिए कतरन पर या यहाँ क्लिक करें


यू ट्यूब पर देखिए यह फिल्म जो इस धारणा को पुष्ट करती है।

Saturday, June 12, 2010

वुवुझेला ?



दक्षिण अफ्रीका में हो रहे विश्व कप का टीवी प्रसारण देखने पर एक खास तरह का शोर सुनाई पड़ता है। लगता है मधुमक्खियाँ भिनभिना रहीं हैं। यह वुवुज़ेला बज रहा है। वुवुज़ेला करीब आधे से एक मीटर तक लम्बा भोंपू है, जिसे दर्शक मौज-मस्ती में बजा रहे हैं। एक वुवुज़ेला पूरी शिद्दत से बजाया जाए तो 131 डैसिबल की आवाज़ करता है। और हजारों एक साथ बजें तो? प्रतियोगिता के पहले रोज़ 90,000 दर्शकों में से 10 प्रतिशत ने भी इसे बजाया होगा तो करीब 10,000 वुवुजेलाओं को तो आपने झेला ही होगा। 


विकिपीडिया से पता लगा वुवुजेला की ईज़ाद मैक्सिको में हुई। वहीं जहाँ मैक्सिकन वेव की ईज़ाद हुई। वहाँ यह टीन का बनता था। इसे ब्राज़ील में भी बजाया जाता है। बाद में यह अल्युमिनियम का बनने लगा। दक्षिण अफ्रीका में इन दिनों प्लास्टिक के वुवुज़ेला बज रहे हैं। वुवुज़ेला से कान को नुकसान होता है। इसकी आवाज़ दरअसल हाथी के चिंघाड़ने जैसी होती है। इससे बहरापन पैदा हो सकता है। कारोबारियों के पास इसका भी इलाज़ है। जितने लोग वुवुज़ेला खरीद रहे हैं, उतने ही ईयर प्लग भी खरीद रहे हैं। बेचने वालों को दक्षिण अफ्रीकी दर्शकों के शौक का पता था, सो उन्होंने पहले से इंतज़ाम करके रखा है। 25 रैंड में एक जोड़ी। तुम्हीं ने दर्द दिया.....