Sunday, October 26, 2014

कांग्रेस की गांधी-छत्रछाया


पी चिदंबरम के ताज़ा वक्तव्य से इस बात का आभास नहीं मिलता कि कांग्रेस के भीतर परिवार से बाहर निकलने की कसमसाहट है। बल्कि विनम्रता के साथ कहा गया है कि सोनिया गांधी और राहुल को ही पार्टी का भविष्य तय करना चाहिए। हाँ, सम्भव है भविष्य में नेहरू-गांधी परिवार से बाहर का कोई नेता पार्टी अध्यक्ष बन जाए। इस वक्त पार्टी का मनोबल बहुत गिरा हुआ है। इस तरफ तत्परता से ध्यान देने और पार्टी में आंतरिक परिवर्तन करने का अनुरोध उन्होंने ज़रूर किया। पर यह अनुरोध भी सोनिया और राहुल से है। साथ ही दोनों से यह अनुरोध भी किया कि वे जनता और मीडिया से ज्यादा से ज्यादा मुखातिब हों। इस मामले में उन्होंने भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा अंक दिए हैं।

Thursday, October 23, 2014

बदलते अंधेरे और बदलते चिराग़

इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, मेड इन इंडिया के साथ-साथ दुनिया से कहें मेक इन इंडिया. भारत की यात्रा पर आए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने कहा, चीन दुनिया का कारखाना है और भारत दुनिया का दफ्तर. उधर सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी पर अपने संदेश में कहा, हम अपने देवी और देवताओं की मूर्तियां व अन्य उत्पाद भी चीन से खरीद रहे हैं, जिस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. जाने-अनजाने दीपावली की रात आप अपने घर में एलईडी के जिन नन्हें बल्बों से रोशनी करने वाले हैं उनमें से ज्यादातर चीन में बने हैं. वैश्वीकरण की बेला में क्या हम इन बातों के निहितार्थ और अंतर्विरोधों को समझ रहे हैं?

Wednesday, October 22, 2014

और अब आर्थिक सुधारों की उड़ान

नरेंद्र मोदी की सरकार वोटर को संतुष्ट करने में कामयाब है या नहीं इसका संकेतक महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों को माना जाए तो कहा जा सकता है कि जनता फिलहाल सरकार के साथ खड़ी है। और अब लगता है कि सरकार आर्थिक नीतियों से जुड़े बड़े फैसले अपेक्षाकृत आसानी से करेगी। सरकार ने कोल सेक्टर और पेट्रोलियम को लेकर दो बड़े फैसले कर भी लिए हैं। मई में नई सरकार बनने के बाद के शुरूआती फैसलों में से एक पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से जुड़ा था। फिर प्याज, टमाटर और आलू की कीमतों को लेकर सरकार की किरकिरी हुई। मॉनसून भी अच्छा नहीं रहा। अंदेशा था कि दीपावली के मौके पर मतदाता मोदी सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी व्यक्त करेगा। पर ऐसा हुआ नहीं। जैसाकि हर साल होता है दीपावली के ठीक पहले सब्जी मंडियों में दाम गिरने लगे हैं। टमाटर और प्याज अब आसानी से खरीदे जा सकते हैं। फूल गोभी सस्ती होने लगी है। मूली 10 रुपए किलो पर बिक रही है और इसके भी नीचे जाएगी। नया आलू आने के बाद उसके दाम गिरेंगे। वित्तमंत्री को लगता है कि अर्थ-व्यवस्था की तीसरी और चौथी तिमाही काफी बेहतर होने वाली है।

Sunday, October 19, 2014

चुनावी रंगमंच पर ‘मोदी मैजिक’ की पुष्टि

चुनावी रंगमंच पर ‘मोदी मैजिक’ का भविष्य

  • 5 घंटे पहले
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत, भारतीय जनता पार्टी, भाजपा
महाराष्ट्र और हरियाणा के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मिली बढ़त भारतीय राजनीति में नए दौर की शुरुआत की तरह है.
लोकसभा चुनावों के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता की अग्निपरीक्षा के रूप में देखे जा रहे इन दोनों विधान सभा चुनावों ने भाजपा को सही मायनों में देश की प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया है.
इन राज्यों में मिली सफलता भाजपा को अन्य राज्यों में अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद करेगी.
लेकिन इस जीत से क्षेत्रीय दलों के भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुट होने की मांग भी ज़ोर पकड़ सकती है.

पढ़ें प्रमोद जोशी का विश्लेषण विस्तार से

हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों का रुख़ तीन बातों की ओर इशारा कर रहा है. भाजपा निर्विवाद रूप से देश की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है.
दूसरी ओर कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय दल बनने का ख़तरा है. और क्षेत्रीय दलों के पराभव का नया दौर शुरू हो गया है.

आत्मनिर्भर भाजपा की आहट

आज हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम वैसे ही रहे जैसे कि एक्ज़िट पोल बता रहे हैं तब भारतीय राजनीति में तीन नई प्रवृत्तियाँ सामने आएंगी। भाजपा निर्विवाद रूप से देश की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बनेगी। दूसरे कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय दल बनने का खतरा पैदा हो जाएगा। तीसरे क्षेत्रीय दलों के पराभव का नया दौर शुरू होगा। भाजपा को अब दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराने का फैसला लाभकारी लगेगा। मोदी लहर को खारिज करने वाले खारिज हो जाएंगे। और अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी के नए नेतृत्व को मान्यता मिल जाएगी। 

इन दोनों राज्यों में कांग्रेस को प्रतीकात्मक सफलता भी मिली तो ठीक। वरना पार्टी अंधे कुएं में जा गिरेगी। दूसरी ओर गठबंधन सहयोगियों के बगैर चुनाव में सफल हुई भाजपा के आत्मविश्वास में कई गुना वृद्धि होगी। अब सवाल है कि क्या पार्टी एनडीए को बनाए रखना चाहेगी? क्या क्षेत्रीय दलों के लिए यह खतरे की घंटी है? और क्या इसके कारण राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-विरोधी मोर्चे को बनाने की मुहिम जोर नहीं पकड़ेगी?

Saturday, October 18, 2014

संयुक्त राष्ट्र नहीं, महत्वपूर्ण है हमारी संसद का प्रस्ताव

जम्मू-कश्मीर के मामले में दो बातें समझ ली जानी चाहिए। पहली यह कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भारत लेकर गया था न कि पाकिस्तान। 1 जनवरी 1948 को भारत ने यह मामला उठाया और इसमें साफ तौर पर पाकिस्तान की ओर से कबायलियों और पाकिस्तानी सेना के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश की शिकायत की गई थी। यह मसला अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी फोरम पर कभी नहीं उठा। भारत की सदाशयता के कारण पारित सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के एक अंश को पाकिस्तान आज तक रह-रहकर उठाता रहा है, पर पूरी स्थिति को कभी नहीं बताता। 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव को लागू कराने को लेकर पाकिस्तान संज़ीदा था तो उसी समय पाकिस्तानी सेना जम्मू-कश्मीर छोड़कर क्यों नहीं चली गई और उसने कश्मीर में घुस आए कबायलियों को वापस पाकिस्तान ले जाने की कोशिश क्यों नहीं कीप्रस्ताव के अनुसार पहला काम उसे यही करना था।

Sunday, October 12, 2014

अशांति के दौर में शांति का पुरस्कार

इस साल का नोबेल शांति-पुरस्कार एक विसंगति की ओर इशारा कर रहा है। इस पुरस्कार की घोषणा जिस वक्त हुई है उस वक्त भारत और पाकिस्तान की सुरक्षा सेनाएं जम्मू-कश्मीर की नियंत्रण रेखा पर एक अघोषित युद्ध लड़ रहीं है। दोनों देश एटम बमों से लैस हैं, दोनों के पास दुनिया के बेहतरीन शस्त्रास्त्र हैं, दोनों बदलाव के एक महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं और दोनों के नागरिकों के सामने भोजन, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय की बुनियादी सुविधाओं का संकट है। नोबेल पुरस्कार समिति ने संयुक्त पुरस्कार क्या सोचकर दिया कहना मुश्किल है, पर दोनों देशों के नागरिकों को इस पुरस्कार के गहरे निहितार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। यह पुरस्कार मलाला और कैलाश सत्यार्थी से ज्यादा इन दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।

Saturday, October 11, 2014

ई-रिटेल का खेल, अभी तो यह शुरुआत है

फ्लिपकार्ट की बिग-बैंग सेल के बाद भारत के ई-रिटेल को लेकर कई बातें रोशनी में आईं हैं। इसकी अच्छाइयों और बुराइयों के किस्से सामने हैं, कई पेचीदगियों ने सिर उठाया है और सम्भावनाओं का नया आसमान खुला है। इस नए बाज़ार ने व्यापार कानूनों के छिद्रों की ओर भी इशारा किया है। यह बाज़ार इंटरनेट के सहारे है जिसकी पहली पायदान पर ही हम खड़े हैं। ‘बिग बिलियन डे’ की सेल ने नए मायावी संसार की झलक भारतवासियों को दिखाई साथ ही फ्लिपकार्ट की प्रबंध क्षमता और तकनीकी प्रबंध पर सवाल भी उठाए। इसके लिए उसके सह-संस्थापकों सचिन बंसल और बिनी बंसल ने फौरन अपने ग्राहकों से माफी माँगी। उनकी असली परीक्षा अब अगले कुछ दिनों में होगी।

Thursday, October 9, 2014

अब खुल रहा है ई-बाज़ार...

पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों को देखते हुए शायद दिनकर की पंक्तियों को कुछ संशोधित करके इस तरह कहने की घड़ी आ रही है, सेनानी करो प्रयाण अभय, सायबर आकाश तुम्हारा है. चीन की ई-कॉमर्स वेबसाइट अलीबाबा न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो गयी. उसके संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष जैक मा 21 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक बन गए. नौजवानों को स्टीव जॉब्स, जुकेनबर्ग और बिल गेट्स जैसा एक और रोल मॉडल मिल गया है. उधर भारत में सबसे बड़े ई-रिटेल ग्रुप फ्लिपकार्ट ने अपनी बंपर सेल के 'बिग बिलियन डे' को बिगबैंग के अंदाज़ में मनाया. यह अलग बात है कि कुछ नासमझी, कुछ अनुभवहीनता और कुछ तकनीकी सीमाओं ने फ्लिपकार्ट को फ्लॉपकार्ट बनाने में देर नहीं की और सोशल मीडिया ने उसका जमकर मज़ाक उड़ाया. 

Monday, October 6, 2014

खेलों में हम फिसड्डी ही साबित क्यों होते हैं?

इंचियॉन के एशिया खेलों में जब भारत की टीम जा रही थी तब उम्मीद ज़ाहिर की गई थी कि सन 2010 के ग्वांगझो एशियाड के मुकाबले इस बार हमारे खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करेंगे। ग्वांगझो में हमें कुल 65 मेडल मिले थे। एशिया खेलों में वह हमारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इसके पहले सन 1982 के दिल्ली एशियाड में हमें 57 मेडल मिले थे। पहले एशिया खेल सन 1951 में दिल्ली में हुए थे। तब पदक तालिका में हम 51 मेडलों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, जबकि 60 मेडलों के साथ जापान पहले स्थान पर रहा। 1982 में कुल 57 मेडलों के साथ हम पाँचवें पर, 2010 में छठे पर और इस बार 57 मेडलों के साथ हम आठवें स्थान पर रहे। 342 मेडलों के साथ चीन का पहला नम्बर रहा।

Sunday, October 5, 2014

सामूहिक इच्छा होगी तो सब साफ हो जाएगा

महात्मा गांधी के चरखा यज्ञ की सामाजिक भूमिका पर कम लोगों ने ध्यान दिया होगा। देशभर के लाखों लोग जब चरखा चलाते थे, तब कपड़ा बनाने के लिए सूत तैयार होता था साथ ही करोड़ों लोगों की ऊर्जा एकाकार होकर राष्ट्रीय ऊर्जा में तबदील होती थी। प्रतीकात्मक कार्यक्रमों का कुशलता से इस्तेमाल व्यावहारिक रूप से बड़े परिणाम भी देता है। जैसे लाल बहादुर शास्त्री के जय जवान, जय किसान के नारे ने संकट के मौके पर देश को एक कर दिया। यह एकता केवल संकटों का सामना करने के लिए ही नहीं चाहिए, बल्कि राष्ट्रीय निर्माण के लिए भी इसकी जरूरत है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना-आंदोलन या निर्भया मामले में जनता के रोष के पीछे भी यह राष्ट्रीय एकता खड़ी थी। इस एकता या सर्वानुमति की अक्सर जरूरत होगी, क्योंकि हमारी व्यवस्था इतनी प्रभावशाली नहीं है कि सारे काम हल करके दे दे। उसे प्रभावशाली बनाने के लिए भी जनांदोलनों की जरूरत है।