अक्टूबर 2011 में बीबीसी हिन्दी की वैबसाइट
पर संवाददाता समरा फ़ातिमा की रपट में बताया गया था कि अलगाववादी आंदोलन और हिंसा के
दृश्यों के बीच कश्मीर में इन दिनों सुरीली आवाजें सुनाई दे रही हैं। उभरते युवा संगीतकार
चार से पाँच लोगों का एक बैंड बना कर ख़ुद अपने गाने लिखने और इनका संगीत बनाने लगे
हैं। चूंकि इनके गीतों में तकलीफों का बयान था, इसलिए पुलिस की निगाहें इनपर पड़ीं।
'एम
सी कैश' के
नाम से गाने बनाने वाले 20 वर्षीय 'रोशन
इलाही' ने
बताया कि 2010 के सितंबर में पुलिस ने उनके स्टूडियो में छापा मारा और उसे बंद कर दिया।
इन कश्मीरी बैंडों में अदनान मट्टू का ‘ब्लड
रॉक्ज़’
भी है, जिनकी प्रेरणा से तीन लड़कियों का बैंड ‘प्रगाश’
सामने आया।
‘प्रगाश’
के फेसबुक पेज पर जाएं तो आपको समझ में आएगा कि कट्टरपंथी उनका विरोध क्यों कर रहे
हैं। जैसे ही वे चर्चा में आईं उनके फ़ेस बुक अकाउंट पर नफरत भरे संदेशों का सिलसिला
शुरू हो गया। सबसे पहले उनका पेज खोजना मुश्किल है, क्योंकि इस नाम से कई पेज बने हैं।
असली पेज का पता इन लड़कियों के बैंड छोड़ने की घोषणा से लगता है। प्रगाश के माने हैं
अंधेरे से रोशनी की ओर। रोशनी की ओर जाना कट्टरपंथियों को पसंद नहीं है। पिछले रविवार
को कश्मीर के प्रधान मुफ़्ती ने उनके गाने को ‘ग़ैर इस्लामी’ करार
दिया, पर उसके दो दिन पहले मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि थोड़े से
पागल लोग इनकी आवाज़ को खामोश नहीं कर पाएंगे। पर तीनों लड़कियों को बैंड छोड़ने का
फैसला करना पड़ा। इससे पहले हुर्रियत कांफ़्रेंस ने भी इन उनकी यह कह कर आलोचना की
थी कि वह पश्चिमी मूल्यों का अनुसरण कर रही हैं। कश्मीर के ये बैंड सन 2004 के बाद
से सक्रिय हुए हैं। कश्मीर में ही नहीं पाकिस्तान में संगीत का खासा चलन है। हाल में
दिल्ली आया पाकिस्तानी
’लाल बैंड’ काफी
लोकप्रिय हुआ। लाल बैंड प्रगतिशील गीत गाता है। इन्होंने रॉक संगीत में फैज अहमद फैज
जैसे शायरों के बोल ढाले और उन्हें सूफी कलाम के नज़दीक पहुंचाया। पाकिस्तान और कश्मीर
में सूफी संगीत पहले से लोकप्रिय है। ऐसा क्यों हुआ कि जब लड़कियों ने बैंड बनाया तो
फतवा ज़ारी हुआ?