ब्रेक्जिट के बवंडर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड केमरन को अपना पद
छोड़ने की घोषणा करनी पड़ी. दुनिया भर के शेयर बाजार इस फैसले से स्तब्ध हैं.
विशेषज्ञ समझने की कोशिश कर रहे हैं इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा. बेशक यह जनता
का सीधा फैसला है. पर क्या इस प्रकार के जनमत संग्रह को उचित ठहराया जा सकता है? क्या जनता इतने बड़े
फैसले सीधे कर सकती है? क्या ऐसे फैसलों में व्यावहारिकता के ऊपर भावनाएं हावी होने का खतरा नहीं है? क्या दुनिया ‘डायरेक्ट डेमोक्रेसी’ के द्वार पर खड़ी है? पश्चिमी देशों की जनता
अपेक्षाकृत प्रबुद्ध है. उसके पास सूचनाओं को जाँचने-परखने के बेहतर उपकरण मौजूद
हैं. फिर भी ऐसा लगता है कि संकीर्ण राष्ट्रवाद सिर उठा रहा है. ब्रेक्जिट के बाद
यूरोप में विषाद की छाया है. कुछ लोग खुश हैं तो पश्चाताप भी कम नहीं है.