हाथरस कांड ने एकसाथ हमारे कई दोषों का पर्दाफाश किया है। शासन-प्रशासन ने इस मामले की सुध तब ली, जब मामला काबू से बाहर हो चुका था। तत्काल कार्रवाई हुई होती, तो इतनी सनसनी पैदा नहीं होती। इस बात की जाँच होनी चाहिए कि पुलिस ने देरी क्यों की। राजनीतिक दलों को जब लगा कि आग अच्छी सुलग रही है, और रोटियाँ सेंकने का निमंत्रण मिल रहा है, तो उन्होंने भी तत्परता से अपना काम किया। उधर टीआरपी की ज्वाला से झुलस रहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आनन-फानन इसे प्रहसन बना दिया। रिपोर्टरों ने मदारियों की भूमिका निभाई।
कुल मिलाकर ऐसे समय में जब हम महामारी से जूझ रहे हैं सोशल डिस्टेंसिंग की जमकर छीछालेदर हुई। बलात्कारियों को फाँसी देने और देखते ही गोली मारने के समर्थकों से भी अब सवाल पूछने का समय है। बताएं कि दिल्ली कांड के दोषियों को फाँसी देने और हैदराबाद के बलात्कारियों को गोली मारने के बाद भी यह समस्या जस की तस क्यों है? इस समस्या का समाधान क्या है?