आज़ादी के फौरन बाद के वर्षों की बात है। साहित्यकार सआदत हसन मंटो ने एक छोटी सी कथा लिखी, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के शुरूआती दिनों से ही खड़े हो गए भाषा-विवाद पर टिप्पणी थी। हिंदी बनाम उर्दू बहस मंटो को अजीब लगी। उन्होंने इस बहस को लेमन-सोडा और लेमन-वॉटर की तुलना से समझाया।
‘हिंदी और उर्दू’ शीर्षक इस लेख में हिंदू-मुस्लिम
अलगाव के बेतुके तर्कों पर रोशनी पड़ती है। गंगा-जमुनी संस्कृति पर इसे व्यंग्य के
रूप में भी पढ़ा जा सकता है। मंटो ने लिखा, ‘मेरी समझ से ये अभी तक बालातर है। कोशिश के बावजूद
इस का मतलब मेरे ज़ेहन में नहीं आया। हिंदी के हक़ में हिंदू क्यों अपना वक़्त ज़ाया
करते हैं। मुसलमान, उर्दू के
तहफ़्फ़ुज़ के लिए क्यों बेक़रार हैं...? ज़बान बनाई नहीं जाती, ख़ुद
बनती है और ना इनसानी कोशिशें किसी ज़बान को फ़ना कर सकती हैं।’ भारत के जीवन, समाज और राजनीति में पैदा हुए विभाजन पर मैं एक किताब लिखना
चाहता हूँ। विभाजन जिसने भाषा की शक्ल में जन्म लिया। उसी सिलसिले में इस लेख को रेख्ता
से लिया है। आप इसे पढ़ें और
अपने निष्कर्ष निकालें।
हिंदी और उर्दू
सआदत हसन मंटो
हिंदी और उर्दू का
झगड़ा एक ज़माने से जारी है। मौलवी अब्दुल-हक़ साहब, डाक्टर तारा चंद जी और महात्मा गांधी इस झगड़े को
समझते हैं लेकिन मेरी समझ से ये अभी तक बालातर है। कोशिश के बावजूद इस का मतलब
मेरे ज़ेहन में नहीं आया। हिंदी के हक़ में हिंदू क्यों अपना वक़्त ज़ाया करते हैं।
मुसलमान, उर्दू के तहफ़्फ़ुज़
के लिए क्यों बेक़रार हैं...? ज़बान
बनाई नहीं जाती, ख़ुद बनती है
और ना इनसानी कोशिशें किसी ज़बान को फ़ना कर सकती हैं। मैंने इस ताज़ा और गर्मा-गर्म
मौज़ू पर कुछ लिखना चाहा तो ज़ैल का मुकालमा तैयार हो गया।''
मुंशी निरावन
प्रसाद-इक़बाल साहब ये सोडा आप पिएँगे?
मिर्ज़ा मुहम्मद
इक़बाल जी। हाँ मैं पियूँगा।
मुंशी-आप लेमन
क्यों नहीं पीते?
इक़बाल-यूं ही,
मुझे सोडा अच्छा मालूम होता है। हमारे
घर में सब सोडा ही पीते हैं।
मुंशी-तो गोया
आपको लेमन से नफ़रत है।
इक़बाल-नहीं तो... नफ़रत क्यों होने लगी
मुंशी निरावन प्रसाद... घर में चूँकि सब यही पीते हैं। इसलिए आदत सी पड़ गई है। कोई
ख़ास बात नहीं बल्कि मैं तो समझता हूँ कि लेमन सोडे के मुक़ाबले में ज़्यादा मज़ेदार
होता है।
मुंशी-इसीलिए तो मुझे हैरत होती है कि मीठी
चीज़ छोड़कर आप खारी चीज़ क्यों पसंद करते हैं। लेमन में ना सिर्फ ये कि मिठास घुली
होती है बल्कि ख़ुशबू भी होती है। आपका क्या ख़्याल है।
इक़बाल-आप बिलकुल बजा फ़रमाते हैं... पर।