पंजाब ड्रग्स के कारोबार की गिरफ्त में है. और इस कारोबार में राजनेता भी
शामिल हैं. यह बात मीडिया में चर्चित थी, पर ‘उड़ता पंजाब’ ने इसे राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया. गोकि बहस अब
भी फिल्म तक सीमित है. केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को बोलचाल में सेंसर बोर्ड
कहते हैं. पर प्रमाण पत्र देने और सेंसर करने में फर्क है. फिल्म सेंसर को लेकर
लम्बे अरसे से बहस है. इसमें सरकार की भूमिका क्या है? बोर्ड सरकार का हिस्सा है या स्वायत्त संस्था? जुलाई 2002 में विजय
आनन्द ने बोर्ड का अध्यक्ष पद छोड़ते हुए कहा था कि सेंसर बोर्ड की कोई जरूरत नहीं.
तकरीबन यही बात श्याम बेनेगल ने दूसरे
तरीके से अब कही है.