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Sunday, October 16, 2022

यूक्रेन की लड़ाई से जुड़ी पेचीदगियाँ


यूक्रेन की लड़ाई अब ऐसे मोड़ पर आ गई है, जहाँ खतरा है कि कहीं यह एटमी लड़ाई में न बदल जाए। एक तरफ खबरें हैं कि रूस के फौजी-संसाधन बड़ी तेजी से खत्म हो रहे हैं। वहीं रूसी हमलों में तेजी आने की खबरें भी हैं। रूस को क्राइमिया से जोड़ने वाले पुल पर हुए विस्फोट के बाद 10 अक्टूबर को यूक्रेन पर सबसे बड़ा हवाई हमला किया गया। एक के बाद एक कई रूसी मिसाइलों का रुख यूक्रेन की तरफ मुड़ गया। उधर बेलारूस ने भी रूस के पक्ष में युद्ध में कूदने की घोषणा कर दी है। 10 अक्तूबर को बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने कहा, हमें पता लगा है कि बेलारूस पर यूक्रेन हमला करने वाला है। इसलिए हमने अपनी सेना को रूसी सेना के साथ तैनात करने का फैसला किया है। हम रूसी सेना को बेस कैंप बनाने और तैयारी के लिए अपनी जमीन देंगे। पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि सीधे भिड़ने के बजाय पुतिन बेलारूस के जरिए यूक्रेन पर परमाणु हमला कर सकते हैं। इससे रूस को सीधे हमले का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकेगा। जी-7 देशों को भी ऐसा ही अंदेशा है। इसीलिए जी-7 की इमरजेंसी बैठक के बाद रूस को धमकी दी गई कि यूक्रेन पर रासायनिक, जैविक या न्यूक्लियर हमला हुआ तो रूस को बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा।

नाटो का विस्तार

नाटो ने कहा है कि हम यूक्रेन को हथियारों की मदद जारी रखेंगे और जो कोई भी नाटो से भिड़ेगा उसे देख लिया जाएगा। नाटो के प्रमुख स्टोल्टेनबर्ग ने कहा है कि नाटो अगले हफ्ते न्यूक्लियर ड्रिल करेगा। बेलारूस की सीमा लात्विया, लिथुआनिया और पोलैंड से लगती है। तीनों नाटो के सदस्य हैं। इस बीच यूक्रेन ने यूरोपियन यूनियन और नाटो दोनों में शामिल होने के लिए अर्जी दे दी है। बारह सदस्य देशों के साथ शुरू हुए नाटो में शामिल होने के लिए फिनलैंड और स्वीडन की अर्जी मंजूर होने के बाद उनके 31वें और 32वें देश के रूप में शामिल होने की उम्मीदें हैं। अब बोस्निया और हर्ज़गोवीना, जॉर्जिया और यूक्रेन के भी इसमें शामिल होने के आसार हैं। उधर रूस ने यूक्रेन के चार इलाकों में जनमत संग्रह कराकर उन्हें अपने देश में शामिल करने की घोषणा कर दी है। इन बातों से तनाव घटने के बजाय बढ़ ही रही है। इतना स्पष्ट है कि लड़ाई उसके अनुमान से कहीं ज्यादा लंबी खिंच गई है। हाल में रूस ने जो लगातार बमबारी की है उससे यही लगता है कि रूस इस युद्ध को और बढ़ाना चाहता है। पर अंतहीन लड़ाई के लिए अंतहीन संसाधनों की जरूरत होगी। बेशक रूस ने मिसाइलों की बौछार करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है, पर ऐसा करके उसने अपने संसाधनों को बर्बाद भी किया है। सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि रूसी हथियारों की सप्लाई कम हो रही है। उसके संसाधनों की भी एक सीमा है। लड़ाई के लंबा खिंचने से जटिलताएं बढ़ रही हैं। रूस के भीतर भी असंतोष बढ़ रहा है।

Thursday, March 17, 2022

लड़ाई लम्बी चली तो चक्रव्यूह में फँस जाएगा रूस

यूक्रेन की लड़ाई के पीछे दो पक्षों के सामरिक हित ही नहीं, वैश्विक-राजनीति के अनसुलझे प्रश्न भी हैं। संयुक्त राष्ट्र क्या उपयोगी संस्था रह गई है? वैश्वीकरण का क्या होगा, जो नब्बे के दशक में धूमधाम से शुरू हुआ था? रूस चाहता क्या है? किस शर्त पर यह लड़ाई खत्म होगी? रूस और पश्चिमी देशों से ज्यादा महत्वपूर्ण है यूक्रेन की जनता। व्लादिमीर पुतिन ने कई बार कहा है कि यूक्रेन हमारा है, पर यह गलतफहमी है। नागरिकों का एक वर्ग रूस के साथ है, पर ज्यादा बड़ा तबका स्वतंत्र यूक्रेनी राष्ट्रवाद का समर्थक है।

लड़ाई खत्म कैसे हो?

रूस को लड़ाई खत्म करने के लिए बहाने की जरूरत है। अमेरिका और नेटो क्या यूक्रेन को तटस्थ बनाने पर राजी हो जाएंगे? ऐसा संभव है, तो वे अभी तक माने क्यों नहीं हैं? पुतिन के मन को पढ़ना आसान नहीं, पर उनके गणित को पढ़ा जा सकता है। उन्हें लगता है कि अमेरिका ढलान पर है। नए राष्ट्रपति के चुनौतियाँ हैं। आंतरिक राजनीति-विभाजित है। अपनी कमजोरियों की वजह से वह अफगानिस्तान से भागा। सीरिया से सेना हटाई। नेटो भी विभाजित है। जर्मनी ने नाभिकीय ऊर्जा का परित्याग करके खुद को रूसी गैस पर निर्भर कर लिया है। फ्रांस अपने राष्ट्रपति के चुनाव में फँसा है और यूके कोविड-19, ब्रेक्जिट और बोरिस जॉनसन के अजब-गजब तौर-तरीकों का शिकार है।

रूस आंशिक रूप से भी सफल हुआ, तो मान लीजिएगा कि अमेरिका का सूर्यास्त शुरू हो गया है। पर लड़ाई जारी रखना रूस के लिए नुकसानदेह है। वह चक्रव्यूह में फँसता जाएगा। अमेरिका ने हाइब्रिड वॉर और शहरी छापामारी का इंतजाम किया है। ठेके पर सैनिक मुहैया करने वाली ब्लैकवॉटर जैसी संस्थाओं ने यूक्रेन में मोर्चे संभाल लिए हैं। रूस के वैग्नर ग्रुप के भाड़े के सैनिक भी यूक्रेन में सक्रिय हैं। संयुक्त राष्ट्र और दूसरे मंचों पर पश्चिमी देशों का दबाव है। वैश्विक-व्यवस्थाएं अभी पश्चिमी प्रभाव में हैं। खबरें हैं कि पश्चिमी देश रूसी तेल की खरीद पर रोक लगाने जा रहे हैं। इन बातों से निपटना आसान नहीं है।

चीन का सहारा

रूस ने इस लड़ाई के पहले अपने आप को आर्थिक-प्रतिबंधों के लिए भी तैयार कर लिया था। पिछले दिसंबर में उसका विदेशी मुद्राकोष 630 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। उसे विश्वास है कि चीन का राजनयिक-समर्थन उसके साथ है और जरूरत पड़ी, तो आर्थिक सहायता भी वहाँ से मिलेगी। पिछली 4 फरवरी को बीजिंग में शी चिनफिंग के साथ पुतिन की शिखर-वार्ता से यह भरोसा बढ़ा है। पर चीन किस हद तक रूस का सहायक होगा?  रूस से दोस्ती बढ़ाने का मतलब अमेरिका से रिश्तों को और ज्यादा बिगाड़ना है, जो पहले से ही बिगड़े हुए हैं।

Monday, March 7, 2022

यूक्रेन की लड़ाई से पैदा हुई पेचीदगियाँ


यूक्रेन की लड़ाई ने दुनिया के सामने कुछ ऐसी पेचीदगियों को पैदा किया है, जिन्हें सुलझाना आसान नहीं होगा। नब्बे के दशक में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीतयुद्ध की समाप्ति हुई थी। उसके साथ ही वैश्वीकरण की शुरुआत भी हुई थी। दूसरे शब्दों में वैश्विक-अर्थव्यवस्था का एकीकरण। विश्व-व्यापार संगठन बना और वैश्विक-पूँजी के आवागमन के रास्ते खुले। राष्ट्रवाद की सीमित-संकल्पना के स्थान पर विश्व-बंधुत्व के दरवाजे खुले थे। यूक्रेन की लड़ाई ने इन दोनों परिघटनाओं को चुनौती दी है। इस लड़ाई के पीछे दो पक्षों के सामरिक हित ही नहीं हैं, बल्कि वैश्विक-राजनीति के कुछ अनसुलझे प्रश्न भी हैं। इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है संयुक्त राष्ट्र की भूमिका। क्या यह संस्था उपयोगी रह गई है?

चक्रव्यूह में रूस

रूस ने लड़ाई शुरू कर दी है, पर क्या वह इस लड़ाई को खत्म कर पाएगा? खत्म होगी, तो किस मोड़ पर होगी?  फिलहाल वह किसी निर्णायक मोड़ पर पहुँचती नजर नहीं आती है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि रूस ने किस इरादे से कार्रवाई शुरू की है। क्या वह पूरे यूक्रेन पर कब्जा चाहता है और राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को हटाकर अपने किसी समर्थक को बैठाना चाहता है? क्या यूक्रेनी जनता ऐसा होने देगी? क्या अमेरिका और नेटो अपने कदम वापस खींचकर यूक्रेन को तटस्थ देश बनाने पर राजी हो जाएंगे? ऐसा संभव है, तो वे अभी तक माने क्यों नहीं हैं?

रूस भी चक्रव्यूह में फँसता नजर आ रहा है। अमेरिका ने हाइब्रिड वॉर और शहरी छापामारी का काफी इंतजाम यूक्रेन में कर दिया है। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र और दूसरे मंचों पर पश्चिमी देशों ने रूस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। वैश्विक-व्यवस्थाएं अभी पश्चिमी प्रभाव में हैं। हाँ रूस यदि अपने इस अभियान में आंशिक रूप से भी सफल हुआ, तो मान लीजिए कि अमेरिका का सूर्यास्त शुरू हो चुका है। फिलहाल ऐसा संभव लगता नहीं, पर बदलाव के संकेतों को आप पढ़ सकते हैं।

एटमी खतरा

यूक्रेन के ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र में शुक्रवार तड़के रूसी हमले के कारण आग लग गई। अब यह बंद है और रूसी कब्जे में है। इस घटना के खतरनाक निहितार्थ हैं। हालांकि आग बुझा ली गई है, पर इससे संभावित खतरों पर रोशनी पड़ती है। यूक्रेन में 15 नाभिकीय संयंत्र हैं। यह दुनिया के उन देशों में शामिल हैं, जो आधी से ज्यादा बिजली के लिए नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भर हैं। जरा सी चूक से पूरे यूरोप पर रेडिएशन का खतरा मंडरा रहा है।

यूक्रेन जब सोवियत संघ का हिस्सा था, तब उसके पास नाभिकीय अस्त्र भी थे। सोवियत संघ के ज्यादातर नाभिकीय अस्त्र यूक्रेन में थे। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट के अनुसार उस समय यूक्रेन के पास 3000 टैक्टिकल यानी छोटे परमाणु हथियार मौजूद थे। इनके अलावा उसके पास 2000 स्ट्रैटेजिक यानी बड़े एटमी हथियार थे, जिनसे शहर ही नहीं, छोटे-मोटे देशों का सफाया हो सकता है।

दिसंबर 1994 में बुडापेस्ट, हंगरी में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे, जिनके तहत यूक्रेन, बेलारूस और कजाकिस्तान ने अपने नाभिकीय हथियारों को इस भरोसे पर त्यागा था कि जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा की जाएगी। यह आश्वासन, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन ने दिया था। फ्रांस और चीन ने एक अलग दस्तावेज के मार्फत इसका समर्थन किया था।

आज यदि यूक्रेन के पास नाभिकीय-अस्त्र होते तो क्या रूस उसपर इतना बड़ा हमला कर सकता था? यूक्रेन पर हुए हमले ने नाभिकीय-युद्ध को रोकने की वैश्विक-नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं। जो देश नाभिकीय-अस्त्र हासिल करने की परिधि पर हैं या हासिल कर चुके हैं और उसे घोषित किया नहीं है, उनके पास अब यूक्रेन का उदाहरण है। दुनिया ईरान को समझा रही थी, पर क्या उसे समझाना आसान होगा?

Sunday, March 6, 2022

दुनिया चुकाएगी युद्ध की भारी कीमत


यूक्रेन के ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र में शुक्रवार तड़के रूसी हमले के कारण आग लग गई। अब यह बंद है और रूसी कब्जे में है। हालांकि आग बुझा ली गई है, पर इससे संभावित खतरों पर रोशनी पड़ती है। यूक्रेन दुनिया के उन देशों में शामिल हैं, जो आधी से ज्यादा बिजली के लिए नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भर हैं। जरा सी चूक से पूरे यूरोप पर रेडिएशन का खतरा मंडरा रहा है। रूस गारंटी चाहता है कि यूक्रेन, नाटो के पाले में नहीं जाएगा। वस्तुतः उसकी यह लड़ाई यूक्रेन के साथ नहीं, सीधे अमेरिका के साथ है। पर उसके सामने इस लड़ाई की फौजी और डिप्लोमैटिक दोनों तरह की कीमत चुकाने के जोखिम भी हैं। इस हमले से केवल विश्व-शांति को ठेस ही नहीं लगी है, बल्कि दूसरे सवाल भी खड़े हुए हैं, जिनके दूरगामी असर होंगे। पहला असर आर्थिक है। पेट्रोलियम की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई हैं। अंदेशा है कि भारत में पेट्रोल की कीमतें 12 से 15 रुपये की बीच बढ़ेंगी। दूसरी उपभोक्ता सामग्री की कीमतें भी बढ़ेंगी। रूस पर आर्थिक-बंदिशों का असर भी हमपर पड़ेगा। दुनिया के शक्ति-संतुलन में बुनियादी बदलाव होंगे, जिनसे हम भी प्रभावित होंगे।

भारत पर दबाव

आर्थिक परेशानियों के अलावा भारत के सामने विदेश-नीति को स्वतंत्र और दबाव-मुक्त बनाए रखने और यूक्रेन में फँसे भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने की चुनौतियाँ हैं। काफी छात्रों को निकाला जा चुका है और बाकी को अगले कुछ दिन में निकाल लिया जाएगा। यह मसला विदेश-नीति से ज्यादा स्थानीय राजनीति का विषय है। यह समस्या तब खड़ी हुई है, जब उत्तर प्रदेश के चुनाव अंतिम चरण में थे। ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिनसे सरकार की अक्षमता उजागर हो। भारत ने संरा में हुए मतदानों से अलग रहकर तटस्थ बने रहने की कोशिश जरूर की है, पर इसे ज्यादा समय तक चलाने में दिक्कत होगी। इसका पहला संकेत गुरुवार को हुई क्वॉड देशों की वर्चुअल बैठक में मिला। इसमें जो बाइडन ने यूरोप में सुरक्षा और यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठाया। बैठक के बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया गया, लेकिन भारत के पीएमओ ने अलग से भी एक बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि क्वाड को अपने उद्देश्यों पर ही केंद्रित रहना चाहिए।

चीन-फैक्टर

भारत ने रूसी हमले की निंदा नहीं की है, पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति के बयान को ध्यान से पढ़ें। उन्होंने कहा है कि संरा चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और राष्ट्रीय सम्प्रभुता का सम्मान होना चाहिए। ये तीनों बातें रूसी कार्रवाई की ओर इशारा कर रही हैं। रूस और चीन का साझा यदि दीर्घकालीन है, तो भारतीय दृष्टिकोण बदलेगा। भारत और चीन दीर्घकालीन प्रतिस्पर्धी हैं। बदलते वैश्विक-परिप्रेक्ष्य में निर्भर यह भी करेगा कि रूस अपने उद्देश्यों में किस हद तक सफल होता है। हाल में अमेरिका के साथ भारत के जो सामरिक रिश्ते बने हैं, वे टूट नहीं जाएंगे। इन सब बातों को हमें दूरगामी पहलुओं से सोचना चाहिए। एक संभावना यह भी व्यक्त की जा रही है कि यूरोप में तनाव को देखते हुए अमेरिका शायद चीन के प्रति अपने रुख को नरम करे। शायद इसी वजह से अमेरिका क्वॉड को यूक्रेन से जोड़ना चाहता है। इन शायद और किन्तु-परन्तुओं का जवाब कुछ देर से मिलेगा।  

रूसी-कूच की गति धीमी

यूक्रेन की स्थिति का अनुमान लगाना आसान भी नहीं है। पश्चिमी और रूसी मीडिया की सूचनाएं एक-दूसरे की विरोधी हैं। अलबत्ता लगता है कि रूसी सेना का कूच धीमा पड़ा है। पूर्वोत्तर से सैनिक ट्रकों का करीब 64 किलोमीटर लम्बा काफिला राजधानी कीव की तरफ बढ़ता देखा गया है, पर छह दिन में वह गंतव्य पर पहुँच नहीं पाया है। इस क़ाफ़िले की सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें 28 फ़रवरी को सामने आई थीं। इसके धीमे पड़ने की वजह यह है कि रूसी सेना ने इन ट्रकों-टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों के लिए ईंधन, रसद, स्पेयर पार्ट्स और भोजन-पानी की जो व्यवस्था की है, वह चरमरा रही है। ब्रेकडाउन समस्या बन रहा है। यूक्रेन के नागरिकों ने भी हथियार हासिल कर लिए हैं, जो प्रतिरोध कर रहे हैं। पश्चिमी देशों के भाड़े या ठेके के सैनिकों ने भी मोर्चा संभाल रखा है। अमेरिका को पता था कि रूस किसी दिन हमला करेगा। अफगानिस्तान के अनुभव के बाद अमेरिका ने यूक्रेन में इस काउंटर-रणनीति को इस्तेमाल किया है। अमेरिका के रिटायर्ड फौजी अधिकारियों की कम्पनी ब्लैकवॉटर या एकेडमी नाम से काम करती है। खबरें है कि ब्लैकवॉटर के सैनिक यूक्रेन के नागरिकों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। अमेरिका ने बड़ी संख्या में स्टिंगर, जैवलिन और दूसरे किस्म मिसाइलें और छोटे रॉकेट इन्हें उपलब्ध कराए हैं, जिनसे विमानों और टैंकों को निशाना बनाया जा सकता है। शहरी इमारतों से आगे बढ़ते टैंकों को निशाना बनाया जा रहा है।

Thursday, March 3, 2022

यूक्रेन में इतने बड़े जोखिम से क्या मिलेगा रूस को?


यूक्रेन में लड़ाई को एक हफ्ते से ज्यादा समय हो गया है। रूसी सेनाएं राजधानी कीव और खारकीव जैसे शहरों तक पहुँच चुकी हैं। पूर्व के डोनबास इलाके पर उनका पहले से कब्जा है। बावजूद इसके उसकी सफलता को लेकर कुछ सवाल खड़े हुए हैं। रूसी सेना का कूच धीमा पड़ रहा है। इन सवालों के साथ मीडिया की भूमिका भी उजागर हो रही है। पश्चिम और रूस समर्थक मीडिया की सूचनाएं एक-दूसरे से मेल नहीं खा रही हैं।

2015 में जब रूस ने सीरिया के युद्ध में प्रवेश किया, तब तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि रूस अब यहाँ दलदल में फँस कर रह जाएगा। पर ऐसा हुआ नहीं, बल्कि रूस ने राष्ट्रपति बशर अल-असद को बचा लिया। इससे रूस का रसूख बढ़ा। क्या इसबार यूक्रेन में भी वह वही करके दिखाएगा? पर्यवेक्षक मानते हैं कि रूस यदि सफल हुआ, तो यूरोप में ही नहीं दुनिया में राजनीति का एक नया दौर शुरू होगा।

अमेरिकी जाल

इस लड़ाई में रूस बड़े जोखिम उठा रहा है और अमेरिका उसे जाल में फँसाने की कोशिश कर रहा है। यूक्रेन के भीतर आकर बाहर निकलने का रास्ता उसे नहीं मिलेगा। लड़ाई की परिणति रूसी सफलता में होगी या विफलता में यह बात लड़ाई खत्म करने के लिए होने वाले समझौते से पता लगेगी। रूस यदि अपनी बात मनवाने में सफल रहा, तो आने वाला समय उसके प्रभाव-क्षेत्र के विस्तार का होगा।

सफलता या विफलता के पैमाने भी स्पष्ट नहीं हैं। अलबत्ता कुछ सवालों के जवाबों से बात साफ हो सकती है। पहला सवाल है कि रूस चाहता क्या है? किस लक्ष्य को लेकर उसने सेना भेजी है? पहले लगता था कि उसका इरादा यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को हटाकर उनकी जगह अपने किसी आदमी को बैठाना है। ऐसा होता तो वह ज़ेलेंस्की की सरकार से बेलारूस में बातचीत क्यों करता? आज भी वहाँ बात हो रही है। जिस सरकार को हटाना ही है, उससे बातचीत क्यों?

Tuesday, February 22, 2022

यूक्रेन के आकाश पर अदृश्य-युद्ध के बादल

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के दो पृथकतावादी क्षेत्रों को मान्यता दे दी है। इनपर रूस समर्थित अलगाववादियों का नियंत्रण है। पुतिन ने जिस शासनादेश पर दस्तख़त किए हैं उसके मुताबिक़ रूसी सेनाएं लुहान्स्क और दोनेत्स्क में शांति कायम करने का काम करेंगी। आशंका है कि सेनाएं जल्दी ही सीमा पार कर लेंगी। कुछ दिन पहले यूक्रेन के माहौल को देखते हुए लगता था कि लड़ाई अब शुरू हुई कि तब। मीडिया में तारीख घोषित हो गई थी कि 16 फरवरी को हमला होगा। 16 तारीख निकल गई, बल्कि उसी दिन रूस ने कहा कि हम फौजी अभ्यास खत्म करके कुछ सैनिकों को वापस बुला रहे हैं। इस घोषणा से फौरी तौर पर तनाव कुछ कम जरूर हुआ था, पर अब अमेरिका का कहना है कि यह घोषणा फर्जी साबित हुई है। रूस पीछे नहीं हटा, बल्कि सात सैनिक हजार और भेज दिए हैं। बहरहाल यूक्रेन तीन तरफ से घिरा हुआ है। जबर्दस्त अविश्वास का माहौल है।

रूस ने युद्धाभ्यास रोकने की घोषणा की है और बातचीत जारी रखने का इरादा जताया है। यूक्रेन चाहता है कि यूरोपियन सुरक्षा और सहयोग से जुड़े संगठन ओएससीई की बैठक हो, जिसमें रूस से सवाल पूछे जाएं। जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स यूक्रेन गए हैं और इन पंक्तियों के प्रकाशित होते समय वे मॉस्को में होंगे। हालांकि अमेरिका मुतमइन नहीं है, फिर भी लम्बी फ़ोन-वार्ता के बाद बाइडेन और बोरिस जॉनसन ने कहा कि समझौता अभी संभव है।

धमकियाँ-चेतावनियाँ

पहली नजर में लगता है कि बातों, मुलाकातों का दौर खत्म हो चुका है, पर ऐसा नहीं है। पृष्ठभूमि-विमर्श जारी है। गत 11 फरवरी को जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने अमेरिकी नागरिकों से कहा कि वे 48 घंटे के भीतर यूक्रेन से बाहर निकल जाएं। अमेरिकी दूतावास भी बंद किया जा रहा है। लड़ाई की शुरूआत हवाई बमबारी या मिसाइलों के हमले के रूप में होगी। साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा कि व्लादिमीर पुतिन ने अभी आखिरी फैसला नहीं किया है।

Thursday, June 17, 2021

बाइडेन ने पुतिन को मनाने की कोशिश की

 


अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच जिनीवा में शिखर-वार्ता बुधवार को हुई। यह मुलाकात ऐसे मौके पर हुई है जब दोनों देशों के रिश्ते बदतर स्थिति में हैं और दुनिया पर एक नए शीतयुद्ध का खतरा मंडरा रहा है, जिसमें रूस और चीन मिलकर अमेरिका और उसके मित्र देशों का प्रतिरोध कर रहे हैं। हालांकि बातचीत काफी अच्छे माहौल में हुई, पर बाइडेन ने साइबर हमलों, रूसी विरोधी नेता अलेक्सी नवेलनी की गिरफ्तारी और मानवाधिकार के सवालों को उठाकर अपने मंतव्य को भी स्पष्ट कर दिया। पर इतना लगता है कि अमेरिका की कोशिश है कि रूस पूरी तरह से चीन के खेमे में जाने के बजाय अमेरिका के साथ भी जुड़ा रहे। रूस के लिए महान शक्ति विशेषण का इस्तेमाल करके उन्होंने रूस को खुश करने की कोशिश भी की है।

जिनीवा में बातचीत के बाद जो बाइडेन ने कहा कि दो महान शक्तियों ने उम्मीद से काफी पहले यह वार्ता संपन्न की है। इस रूबरू बातचीत का परिणाम है कि दोनों देशों ने तनाव दूर करने के लिए अपने-अपने देशों के राजदूतों को फिर से काम पर वापस भेजने का फैसला किया है।

दोनों के बीच यह बातचीत विला ला ग्रेंज में हुई। बातचीत को दो दौर में होना था और दोनों के बीच मध्यांतर की योजना थी, पर वार्ता लगातार चलती रही और एक ही दौर में पूरी हो गई। दोनों पक्षों को लगता था कि कुल मिलाकर चार से पाँच घंटे तक बातचीत चलेगी, पर वह तीन घंटे से कम समय में ही पूरी हो गई।

वार्ता खत्म होने के बाद रूसी राष्ट्रपति ने सबसे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, बातचीत 'बेहद रचनात्मक' रही और मुझे नहीं लगता है कि हमारे बीच कोई 'दुश्मनी' है। पुतिन ने अमेरिकी राष्ट्रपति की तारीफ़ की और उन्हें एक 'अनुभवी राजनेता' बताया। उन्होंने कहा कि बाइडेन "पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से काफी अलग हैं।" उन्होंने कहा कि हमने विस्तार से दो घंटे में बातचीत की जो कि आप बहुत से राजनेताओं के साथ नहीं कर सकते हैं।

पुतिन के एक घंटे तक चले वक्तव्य के बाद जो बाइडेन ने कहा कि दोनों के बीच बैठक सकारात्मक रही। उन्होंने कहा, "मैंने राष्ट्रपति पुतिन से कहा कि मेरा एजेंडा रूस या किसी और ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि यह अमेरिका और अमेरिकी लोगों के हक में हैं।"