Showing posts with label रायबरेली. Show all posts
Showing posts with label रायबरेली. Show all posts

Friday, May 3, 2024

रायबरेली से राहुल के उतरने का मतलब


अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस के प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद जो सवाल पूछे जाएंगे और उनके जो भी संभावित उत्तर हैं, उनसे कांग्रेस और उसके नेतृत्व की मनोदशा का अनुमान लगाया जा सकेगा। पहला सवाल है कि राहुल गांधी ने अमेठी को क्यों छोड़ा और रायबरेली क्यों गए? इन दोनों सवालों का एक जवाब यह भी हो सकता है कि उन्होंने रायबरेली की विरासत संभालने के काम को वरीयता दी है। पर समझने वाले यह भी मानेंगे कि वे अमेठी के परिणाम को लेकर आश्वस्त नहीं थे और उन्हें लगता था कि यदि वे पराजित हुए, तो उससे राजनीतिक नुकसान होगा। सबसे बड़ा नुकसान इस मामले को अंत समय तक लटकाए रखने के कारण होगा। यह कैसी पार्टी है, जिसमें इतने मामूली फैसलों पर असमंजस रहता है?

Tuesday, March 12, 2024

नेहरू-गांधी परिवार के ‘गढ़’ में दरार


 लोकसभा क्षेत्र: रायबरेली

1977 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था. एक शाम हमारे रायबरेली संवाददाता ने खबर दी कि आज एक चुनाव सभा में राजनारायण ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा को इंदिरा गांधी और संजय गांधी की निशानी बताया है. खबर बताने वाले ने राजनारायण के अंदाज़े बयां का पूरी नाटकीयता से विवरण दिया था. बावजूद इसके कि इमर्जेंसी उस समय तक हटी नहीं थी और पत्रकारों के मन का भय भी कायम था. बताने वाले को पता था कि जरूरी नहीं कि वह खबर छपे.

उस समय मीडिया भी क्या था, सिर्फ अखबार, जिनपर संयम की तलवार थी. सवाल था कि इस खबर को हम किस तरह से छापें. बहरहाल वह खबर बीबीसी रेडियो ने सुनाई, तो बड़ी तेजी से चर्चित हुई. मुझे याद नहीं कि अखबार में छपी या नहीं. वह दौर था, जब खबरें अफवाहें बनकर चर्चित होती थीं. मुख्यधारा के मीडिया में उनका प्रवेश मुश्किल होता था. चुनाव जरूर हो रहे थे, पर बहुत कम लोगों को भरोसा था कि कांग्रेस हारेगी.

इंदिरा गांधी का चुनाव

रायबरेली पर पूरे देश की निगाहें थीं. चुनाव परिणाम की रात लखनऊ के विधानसभा मार्ग पर स्थित पायनियर लिमिटेड के दफ्तर के गेट पर हजारों की भीड़ जमा थी. दफ्तर के बाहर बड़े से बोर्ड पर एक ताज़ा सूचनाएं लिखी जा रही थीं. गेट के भीतर उस ऐतिहासिक बिल्डिंग के दाएं छोर पर पहली मंजिल में हमारे संपादकीय विभाग में सुबह की शिफ्ट से आए लोग भी देर रात तक रुके हुए थे.

बाहर की भीड़ जानना चाहती थी कि रायबरेली में क्या हुआ. शुरू में खबरें आईं कि इंदिरा गांधी पिछड़ रही हैं, फिर लंबा सन्नाटा खिंच गया. कोई खबर नहीं. उस रात की कहानी बाद में पता लगी कि किस तरह से रायबरेली के तत्कालीन ज़िला मजिस्ट्रेट विनोद मल्होत्रा ने अपने ऊपर पड़ते दबाव को झटकते हुए इंदिरा गांधी की पराजय की घोषणा की. बहरहाल रायबरेली और वहाँ के डीएम का नाम इतिहास में दर्ज हो गया.

मोदी का निशाना

इंदिरा गांधी की उस ऐतिहासिक पराजय के 47 साल बाद सत्रहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदा की भांति परिवार-केंद्रित कांग्रेस पार्टी पर निशाना लगाते हुए कहा, एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है.