Showing posts with label बीबीसी. Show all posts
Showing posts with label बीबीसी. Show all posts

Wednesday, February 15, 2023

बीबीसी पर छापे के पीछे की कहानी क्या है?

दिल्ली के एचटी हाउस में स्थित बीबीसी का दफ्तर

मंगलवार को दुनिया के मीडिया प्लेटफॉर्मों पर यह खबर आग की तरह फैल गई कि ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों पर
आयकर विभाग के छापे चल रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया और अखबारों की सुर्खियाँ बनने के अलावा इस विषय पर टीका-टिप्पणियाँ हो रही हैं। कांग्रेस समेत देश के ज्यादातर विरोधी दलों ने इन छापों की निंदा की है। कांग्रेस ने इसे अघोषित आपातकाल बताया है, वहीं बीजेपी का कहना है कि सारी कार्रवाई नियमों के तहत हो रही है और अगर किसी ने कुछ गलत नहीं किया है तो उसे डरने की जरूरत नहीं है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि इनकम टैक्स विभाग समय-समय पर सर्वे करता है। विभाग आपको इस विषय पर आगे की जानकारी दे देगा। ब्रिटेन की सरकार ने कहा कि इस मामले पर वह नजर बनाए हुए है। मीडिया का एक हिस्सा और राजनेता इस छापे को हाल में जारी की गई बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री से जोड़कर दखे रहे हैं।

कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने आयकर विभाग की कार्रवाई पर कहा, "ये निराशा का धुआं है और ये दर्शाता है कि मोदी सरकार आलोचना से डरती है।" उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "हम डराने-धमकाने के इन हथकंडों की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। यह अलोकतांत्रिक और तानाशाही रवैया अब और नहीं चल सकता।" दूसरी तरफ बीजेपी प्रवक्ता गौरव भाटिया ने बीबीसी को दुनिया का भ्रष्ट, बकवास कॉरपोरेशन बताया। उन्होंने कहा, भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर संस्था को मौक़ा दिया जाता है। तब तक, जब तक आप ज़हर नहीं उगलेंगे। तलाशी क़ानून के दायरे में हैं और इसकी टाइमिंग का सरकार से कोई लेना देना नहीं है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने कहा कि हम इस तलाशी को लेकर "बहुत चिंतित" हैं। सरकार की नीतियों या सरकारी संस्थानों की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों को डराने और परेशान करने के लिए सरकारी एजेंसियों के इस्तेमाल के प्रचलन का ही यह क्रम है। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने भी बयान जारी करके इस कार्रवाई की आलोचना की है। प्रेस क्लब ने सरकार की कार्रवाई पर चिंता जताई है और कहा है कि इससे भारत की छवि को नुक़सान पहुँचेगा। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने अधिकारियों पर बीबीसी को डराने का आरोप लगाया।

अंतिम समाचार मिलने तक दूसरे दिन भी सर्वे चल रहा  है और माना जा रहा है कि यह काम दो-तीन दिन तक चलेगा। मंगलवार की सुबह करीब सवा 11 बजे इनकम टैक्स की टीम बीबीसी के दिल्ली दफ्तर में पहुंची और सर्वे का काम शुरू किया। इनकम टैक्स की टीम में 15 से 20 अधिकारी मौजूद हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार बीबीसी के खातों और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को चेक करने में लंबा वक्त लग सकता है। ऐसे में इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई लंबी चल सकती है। अधिकारियों ने बताया कि सर्वे अंतरराष्ट्रीय कराधान और बीबीसी की सहायक कंपनियों के ‘‘ट्रांसफर प्राइसिंग’’ से संबंधित मुद्दों की जांच के लिए किया गया है। अतीत में इस विषय पर बीबीसी को नोटिस दिया गया था, लेकिन उसने उस पर गौर नहीं किया और उसका पालन नहीं किया। उसने अपने मुनाफे के खास हिस्से को दूसरी जगह भेजा। उन्होंने कहा कि विभाग, बीबीसी के कारोबारी संचालन से जुड़े दस्तावेजों पर गौर कर रहा है।

इस बीच बीबीसी ने कहा कि वह इनकम टैक्स अधिकारियों के साथ पूरा सहयोग कर रहा है। बीबीसी प्रेस ऑफिस की ओर से एक बयान में कहा गया है, ''हम अपने कर्मचारियों का मदद कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो जाएगी… हमारा आउटपुट और पत्रकारिता से जुड़ा काम सामान्य दिनों की तरह चलता रहेगा। हम अपने ऑडियंस को सेवा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।''

आयकर विभाग के अनुसार बीबीसी पर वित्तीय अनियमितता और टैक्स चोरी का आरोप है। ट्रांसफर प्राइसिंग नॉर्म्स और इंटरनेशनल टैक्सेशन के नियमों के उल्लंघन का भी आरोप है। विभाग ने बीबीसी से बैलेंस शीट और लेनदेन के ब्योरे की माँग की है। इस सिलसिले में बीबीसी के वित्त वर्ष 2012-13 के बाद किए गये सभी लेन-देन की जांच हो सकती है। मंगलवार को जब छापे की कार्रवाई शुरू हुई तो बीबीसी के कर्मचारियों को परिसर के अंदर एक विशेष स्थान पर अपने फोन रखने के लिए कहा गया था। कुछ कंप्यूटरों को जब्त कर लिया गया है वहीं कुछ कर्मचारियों के मोबाइल फोनों का क्लोन बनाया जा रहा है।

बीबीसी दफ्तर पर छापे की खबर फैलते ही मध्य दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित बीबीसी कार्यालय के बाहर भारी संख्या में राहगीरों और मीडिया कर्मियों की भीड़ जमा हो गई। मुंबई में बीबीसी का कार्यालय सांताक्रुज में है। सर्वे के नियमों के तहत, आयकर विभाग केवल कंपनी के व्यावसायिक परिसर की ही जांच करता है और इसके प्रवर्तकों या निदेशकों के आवासों और अन्य स्थानों पर छापा नहीं मारता।

बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री

बीबीसी ने हाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया था। टह डॉक्यूमेंट्री भारत में प्रसारण के लिए नहीं थी, पर देश में लोगों ने इसे इंटरनेट से डाउनलोड करके कई जगह इसका प्रदर्शन किया। यह डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर थी। उस समय भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। डॉक्यूमेंट्री में कई लोगों ने गुजरात दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाए थे।

केंद्र सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को प्रोपेगैंडा और औपनिवेशिक मानसिकता के साथ भारत-विरोधी बताते हुए भारत में इसे ऑनलाइन शेयर करने से ब्लॉक करने की कोशिश की थी। बीबीसी ने कहा था कि भारत सरकार को इस डॉक्यूमेंट्री पर अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिया गया था, लेकिन सरकार की ओर से इस पेशकश पर कोई जवाब नहीं मिला। बीबीसी का कहना है कि "इस डॉक्यूमेंट्री पर पूरी गंभीरता के साथ रिसर्च किया गया, कई आवाज़ों और गवाहों को शामिल किया गया और विशेषज्ञों की राय ली गई और हमने बीजेपी के लोगों समेत कई तरह के विचारों को भी शामिल किया।"

बीबीसी का सर्वे क्यों?

सरकारी अधिकारियों के अनुसार यह सर्वे यह पता करने के लिए किया जा रहा है कि बीबीसी ने अवैध तरीके से लाभ तो प्राप्त नहीं किए हैं, जिनमें टैक्स शामिल है। बीबीसी लगातार जानबूझकर ट्रांसफर प्राइसिंग नियमों का उल्लंघन करता रहा है। एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को वस्तु या सेवा की कीमत देकर उसके हस्तांतरण को, ट्रांसफर प्राइस कहा जाता है। किसी बहुराष्ट्रीय ग्रुप के अलग-अलग पक्षों के बीच व्यावसायिक हस्तांतरण पर वही नियम लागू नहीं होते, जो दो स्वतंत्र फर्मों के बीच हुए हस्तांतरण पर लागू होते हैं। आयकर विभाग के अनुसार ट्रांसफर प्राइसिंग सामान्यतः सहयोगी उपक्रमों के बीच हुए हस्तांतरण के मूल्य होते हैं, जो दो स्वतंत्र उपक्रमों के बीच के हुए हस्तांतरण से भिन्न शर्तों पर होते हैं।

उदाहरण के लिए क कंपनी किसी वस्तु को 100 रुपये में खरीदती है और किसी अन्य देश में अपनी सहयोगी ख कंपनी को 200 रुपये में बेचा, जिसने उसे खुले बाजार में 400 रुपये में बेच दिया। यदि क ने उस वस्तु को सीधे बेचा होता, तो उसे 300 रुपये का लाभ होता, पर उसे ख के मार्फत बेचने पर उसे 100 का लाभ होगा और शेष लाभ ख को मिलेगा। इस प्रकार 200 रुपये का लाभ देश में मौजूद ख को मिला। वह वस्तु 200 रुपये की कीमत (ट्रांसफर प्राइस) पर बेची गई है न कि बाजार मूल्य (400 रुपये) पर।

ट्रांसफर प्राइसिंग से फर्क यह पड़ता है कि इस लेनदेन में पितृ कंपनी (या उसकी सहायक कंपनी) अपर्याप्त कर योग्य आय या अतिरिक्त हानि प्राप्त करती है। आयकर विभाग की वैबसाइट के अनुसार पितृ-कंपनी ऊँचे ट्रांसफर प्राइस की मदद से उन देशों में स्थित अपनी सहायक कंपनियों से ज्यादा लाभ हासिल कर सकती हैं, जहाँ टैक्स की दरें ऊँची हैं। और जिन देशों में टैक्स की दरें कम हैं वहाँ ट्रांसफर प्राइस कम रखकर सहायक कंपनी का लाभ बढ़ा सकती हैं।

इसी प्रकार जिन देशों में टैक्स की दरें ज्यादा हैं, वहाँ की पितृ-संस्था उस देश की सहायक कंपनी को जहाँ टैक्स बहुत कम है, कम मुनाफे पर माल बेच सकती है। इसके बाद सहायक कंपनी उस उत्पाद को आर्म्स लेंग्थ प्राइस पर बेच देती है। इसके बाद बढ़े हुए मुनाफे पर बहुत कम टैक्स पड़ेगा। इससे सरकार को राजस्व और विदेशी मुद्रा की हानि होगी। भारत के आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 92 एफ(2) में आर्म्स लेंग्थ प्राइस अनियंत्रित शर्तों वाली वह कीमत बताई गई है, जो ऐसे दो पक्षों के बीच हुए विनिमय में ली गई हो, जो आपस में सहयोगी नहीं है। आर्म्स लेंग्थ प्राइस कैसे तय होगा, इसकी व्याख्या धारा 92 सी(1) में की गई है। 

Sunday, June 28, 2015

भारत को बदनाम करने की पाक-हड़बड़ी

पाकिस्तानी मीडिया में छह पेज का एक दस्तावेज प्रकाशित हुआ है, जो दरअसल ब्रिटेन की पुलिस के सामने दिया गया एक बयान है। इसमें मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के वरिष्ठ नेता तारिक मीर ने स्वीकार किया है कि भारतीय खुफिया संगठन रॉ ने हमें पैसा दिया और हमारे कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। यह दस्तावेज आज के इंडियन एक्सप्रेस में भी छपा है। इस दस्तावेज को जारी करने वाले ने इसके काफी हिस्सों को छिपाकर केवल कुछ हिस्से ही जारी किए हैं। इतना समझ में आता है कि ये दस्तावेज़ पाकिस्तान सरकार के इशारे पर जारी हुए हैं। इसके दो-तीन दिन पहले बीबीसी टीवी और वैब पर एक खबर प्रसारित हुई थी, जिसमें इसी आशय की जानकारी थी। पाकिस्तानी मीडिया में इस दस्तावेज के अलावा बैंक एकाउंट वगैरह की जानकारी भी छपी है। जब तक इन बातों की पुष्टि नहीं होती, यह कहना मुश्किल है कि जानकारियाँ सही हैं या नहीं। अलबत्ता पाकिस्तान सरकार अपने देश में लोगों को यह समझाने में कामयाब हो रही है कि भारतीय खुफिया संगठन उनके यहाँ गड़बड़ी फैलाने के लिए सक्रिय है। इससे उसके दो काम हो रहे हैं। एक तो भारत बदनाम हो रहा है और दूसरे एमक्यूएम की साख गिर रही है। अभी तक पाकिस्तान के खुफिया अभियानों की जानकारी ज्यादातर मिलती थी। इस बार भारत के बारे में जानकारी सामने आई है। फिलहाल वह पुष्ट नहीं है, पर यह समझने की जरूरत है कि ये बातें इस वक्त क्यों सामने आईं और बीबीसी ने इसे क्यों उठाया, जबकि जानकारियाँ पाकिस्तान सरकार ने उपलब्ध कराईं। बाद में उन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई।

Friday, June 26, 2015

बीबीसी की रपट पर भारतीय प्रतिक्रिया

बीबीसी की एमक्यूएम को भारतीय फंडिंग की 'धमाकेदार' रिपोर्ट पाकिस्तान के मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर छाई हुई है. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी सेना और सरकार ने भारत के खुफिया संगठन रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के आरोप लगाए हैं. वे आरोप पाकिस्तानी सरकार ने लगाए थे. बीबीसी की रिपोर्ट का नाम सुनने से लगता है कि यह बीबीसी की कोई स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट है, पर यह पाकिस्तानी सरकार के सूत्रों पर आधारित है. पाकिस्तान सरकार के आरोपों को बीबीसी की साख का सहारा जरूर मिला है. भारत सरकार ने इस ख़बर में किए गए दावों को 'पूरी तरह आधारहीन' करार दिया है. एमक्यूएम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी की ख़बर को 'टेबल रिपोर्ट' क़रार दिया.

बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.

पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.

बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-

Friday, May 10, 2013

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के कुछ ‘गैर-कांग्रेसी’ कारण


Photo: Shikari Rahul!
(Fake Encounter in Karnataka)

ऊपर सतीश आचार्य का कार्टून नीचे हिन्दू में केशव का कार्टून
प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार हैं राहुल गांधी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अनुसार कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के सूत्रधार हैं राहुल गांधी. राहुल गांधी से पूछें तो शायद वे मधुसूदन मिस्त्री को श्रेय देंगे. या कहेंगे कि पार्टी संगठन ने अद्भुत काम किया.

कांग्रेस संगठन जीता ज़रूर पर पार्टी अध्यक्ष परमेश्वरन खुद चुनाव हार गए. कमल नाथ के अनुसार यह कांग्रेस की नीतियों की जीत है.

कांग्रेस की इस शानदार जीत के लिए वास्तव में पार्टी संगठन, उसके नेतृत्व और नीतियों को श्रेय मिलना चाहिए.

पर उन बातों पर भी गौर करना चाहिए, जिनका वास्ता कांग्रेस पार्टी से नहीं किन्ही और ‘चीजों’ से हैं.

राज्यपाल की भूमिका
सन 1987 में जस्टिस आरएस सरकारिया आयोग ने राज्यपाल की नियुक्तियों को लेकर दो महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे. पहला, घनघोर राजनीतिक व्यक्ति को जो सक्रिय राजनीति में हो, उसे राज्यपाल नहीं बनाना चाहिए.

दूसरा यह कि केंद्र में जिस पार्टी की सरकार हो, उसके सदस्य की विपक्षी पार्टी के शासन वाले राज्य में राज्यपाल के रूप में नियुक्ति न हो.

30 मई 2008 को येदियुरप्पा सरकार बनी और उसके एक साल बाद 25 जून 2009 को हंसराज भारद्वाज कर्नाटक के राज्यपाल बने, जो संयोग से इन योग्यताओं से लैस थे.

विधि और न्याय मंत्रालय में भारद्वाज ने नौ वर्षों तक राज्यमंत्री के रूप में और पांच साल तक कैबिनेट मंत्री रहकर कार्य किया. वे देश के सबसे अनुभवी कानून मंत्रियों में से एक रहे हैं.

वे तभी खबरों में आए जब उन्होंने यूपीए-1 के दौर में कई संवेदनशील मुद्दों में हस्तक्षेप किया. प्रायः ये सभी मामले 10 जनपथ से जुड़े थे.

बीबीसी हिंदी डॉटकॉम में पूरा लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें