विजय माल्या के पलायन, देश-द्रोह और भक्ति से घिरे मीडिया की कवरेज में विज्ञान और तकनीक आज भी काफी पीछे हैं. जबकि इसे विज्ञान और तकनीक का दौर माना जाता है. इसकी वजह हमारी अतिशय भावुकता और अधूरी जानकारी है. विज्ञान और तकनीक रहस्य का पिटारा है, जिसे दूर से देखते हैं तो लगता है कि हमारे जैसे गरीब देश के लिए ये बातें विलासिता से भरी हैं. नवम्बर 2013 में जब हमारा मंगलयान अपनी यात्रा पर रवाना हुआ था तब कई तरह के सवाल किए गए थे. उस साल के आम बजट से आँकड़े निकालकर सवाल किया गया था कि माध्यमिक शिक्षा के लिए पूरा खर्च 3,983 करोड़ रुपए और अकेले मंगलयान पर 450 करोड़ रुपए क्यों? इस रकम से ढाई सौ नए स्कूल खोले जा सकते थे.
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Tuesday, March 15, 2016
Saturday, January 17, 2015
विज्ञान-दृष्टि विहीन वैज्ञानिक
पुष्प एम. भार्गव
भारत ने पिछले 85 सालों से विज्ञान में एक भी नोबेल पुरस्कार पैदा नहीं किया. इसकी बड़ी वजह देश में वैज्ञानिक आबोहवा की गैरमौजूदगी है.
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में 'साइंटिफिक टेम्पर' यानी वैज्ञानिक सोच (या विज्ञान दृष्टि) जुमला ईजाद किया था. यह पुस्तक 1946 में प्रकाशित हुई. वह एसोसिएशन ऑफ़ साइंटिफिक वर्कर्स ऑफ़ इंडिया (एएसडब्ल्यूआई) नाम की संस्था के अध्यक्ष भी थे. यह संस्था बतौर ट्रेड यूनियन पंजीकृत थी और 1940 दशक और 1950 के शुरूआती वर्षों में मैं भी इससे जुड़ा रहा. यह अपनी तरह का इकलौता उदाहरण होगा जब एक लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री किसी ट्रेड यूनियन का अध्यक्ष बना हो. संस्था के उद्देश्यों में एक था- वैज्ञानिक दृष्टि का प्रचार-प्रसार. शुरू में यह काफी सक्रिय रही लेकिन 1960 दशक आते-आते पूरी तरह बिखर गयी, क्योंकि देश के ज्यादातर वैज्ञानिक, जिनमें कई ऊंचे पदों पर आसीन थे, स्वयं वैज्ञानिक दृष्टि की उस अवधारणा के प्रति प्रतिबद्ध नहीं थे, जो तार्किकता व विवेक का पक्षपोषण तथा तमाम तरह की रूढ़ियों, अंधविश्वासों व झूठ से मुक्ति का आह्वान करती है.
Thursday, January 15, 2015
विज्ञान और वैज्ञानिकता से नाता जोड़िए
हाल में मुम्बई
में हुई 102वीं साइंस
कांग्रेस तथाकथित प्राचीन भारतीय विज्ञान से जुड़े कुछ विवादों के कारण खबर में
रही. अन्यथा मुख्यधारा के मीडिया ने हमेशा की तरह उसकी उपेक्षा की. आमतौर पर 3
जनवरी को शुरू होने वाली विज्ञान कांग्रेस हर साल नए साल की पहली बड़ी घटना होती
है. जिस उभरते भारत को देख रहे हैं उसका रास्ता साइंस की मदद से ही हम पार कर सकते
हैं. इस बार साइंस कांग्रेस का थीम थी 'मानव विकास के लिए विज्ञान और तकनीकी'. इसके उद्घाटन के बाद
पीएम मोदी ने कहा कि साइंस की मदद से ही गरीबी दूर हो सकती है और अमन-चैन कायम हो
सकता है. यह कोरा बयान नहीं है, बल्कि सच है. बशर्ते उसे समझा जाए.
Thursday, July 4, 2013
विज्ञान-मुखी नहीं है भारतीय समाज
भारत ने अपने नेवीगेशन सैटेलाइट का प्रक्षेपण करके विज्ञान और
तकनीक के मामले में जितना लम्बा कदम रखा है उतना हमने महसूस नहीं किया। इस नेटवर्क
को पूरा करने के लिए अभी छह और सैटेलाइट भेजे जाएंगे। यह काम 2015 तक पूरा होगा। हम
स्पेस साइंस की ‘बिग लीग’ में शामिल हो
चुके हैं। अमेरिका, रूस, यूरोपीय यूनियन और चीन के साथ। जापान का क्वाज़ी ज़ेनिट सिस्टम
भी इस साल पूरी तरह स्थापित हो जाएगा। ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम का इस्तेमाल हवाई और
समुद्री यात्राओं के अलावा सुदूर इलाकों से सम्पर्क रखने में होता है। काफी ज़रूरत
सेना को होती है। खासतौर से मिसाइल प्रणालियों के वास्ते।
इस साल बजट अभिभाषण में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा था
कि भारत इस साल अपना उपग्रह मंगल की ओर भेजेगा। केवल मंगलयान ही नहीं, चन्द्रयान-2 कार्यक्रम तैयार है। सन 2016 में पहली बार दो भारतीय
अंतरिक्ष यात्री स्वदेशी यान में बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे। सन 2015 या 16 में हमारा आदित्य-1 प्रोब सूर्य की ओर रवाना होगा। सन 2020 तक हम चन्द्रमा पर
अपना यात्री भेजना चाहते हैं। किसी चीनी यात्री के चन्द्रमा पहुँचने के पाँच साल पहले।
इस बीच हमें अपने क्रायोजेनिक इंजन की सफलता का इंतजार है, जिसकी वजह से जीएसएलवी कार्यक्रम
ठहरा हुआ है। देश का हाइपरसोनिक स्पेसक्राफ्ट किसी भी समय सामने आ सकता है। अगले दशक
के लिए न्यूक्लियर इनर्जी का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार है।
Tuesday, March 5, 2013
हम भी छू सकते हैं सूरज और चाँद बशर्ते...
बजट सत्र
की शुरूआत करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घोषणा की कि भारत इस साल अपना उपग्रह
मंगल ग्रह की ओर भेजेगा। केवल मंगलयान ही नहीं। हमारा चन्द्रयान-2 कार्यक्रम तैयार
है। सन 2016 में पहली बार दो भारतीय अंतरिक्ष यात्री स्वदेशी यान में बैठकर पृथ्वी
की परिक्रमा करेंगे। सन 2015 या 16 में हमारा आदित्य-1 प्रोब सूर्य की ओर रवाना होगा।
और सन 2020 तक हम चन्द्रमा पर अपना यात्री भेजना चाहते हैं। किसी चीनी यात्री के चन्द्रमा
पहुँचने के पाँच साल पहले। देश का हाइपरसोनिक स्पेसक्राफ्ट अब किसी भी समय सामने आ
सकता है। अगले दशक के लिए न्यूक्लियर इनर्जी का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार है।
एटमी शक्ति से चलने वाली भारतीय पनडुब्बी ‘अरिहंत’ नौसेना के बेड़े में शामिल
हो चुकी है। हमारा अपना बनाया ‘तेजस’ विमान
तैयार है। युद्धक टैंक अर्जुन-2 दुनिया के सबसे अच्छे टैंकों से भी बेहतर बताया जा
रहा है। भारत के डिज़ाइन से तैयार हो रहा है अपना विमानवाहक पोत। हम रूस के साथ मिलकर
पाँचवी पीढ़ी का युद्धक विमान विकसित कर रहे हैं। रूस के साथ मिलकर ही बहुउद्देश्यीय
माल-वाहक विमान भी हम डिज़ाइन करने जा रहे हैं।
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