पाकिस्तान में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं। मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन जजों को बेंच ने 14 मई को पंजाब में चुनाव कराने का आदेश दिया है, जिसे मानने से सरकार ने इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल पंजाब में चुनाव कराने की तारीख दी है, खैबर पख्तूनख्वा के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया है, जबकि वहाँ भी चुनाव होने हैं। गुरुवार 6 अप्रेल को राष्ट्रीय असेंबली ने प्रस्ताव पास करके प्रधानमंत्री से कहा है कि इस फैसले को मानने की जरूरत नहीं है।
चुनाव आयोग ने हुकूमत के एतराज़ के बावजूद चुनाव
का कार्यक्रम जारी कर दिया है। उधर सुप्रीम कोर्ट के भीतर न्यायाधीशों की
असहमतियाँ भी खुलकर सामने आ रही हैं, जिनसे लगता है कि पाकिस्तान की न्यायपालिका
पर राजनीतिक रंग चढ़ता जा रहा है। हालांकि पाकिस्तान की न्यायपालिका की भूमिका
अतीत में बदलती रही है, पर ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उसके फैसले को सरकार ने
मानने से इनकार कर दिया है।
इसके पहले 4 अप्रेल को मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने
पंजाब में 14 मई को चुनाव कराने का निर्देश दिया था। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा दायर
याचिका पर फैसले की घोषणा करते हुए, शीर्ष अदालत ने
30 अप्रैल से 8 अक्टूबर तक पंजाब और केपी में चुनाव स्थगित करने के पाकिस्तान के
चुनाव आयोग (ईसीपी) के फैसले को अमान्य और शून्य घोषित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 22
मार्च, 2023 को ईसीपी के आदेश को असंवैधानिक घोषित
किया गया है। पाकिस्तान के उर्दू मीडिया के शब्दों में अदालत ने इलेक्शन कमीशन के
आठ अक्तूबर को इंतख़ाबात करवाने के 22 मार्च के हुक्मनामे को 'गैर-आईनी क़रार देते हुए कहा है कि इलेक्शन कमीशन ने अपने दायरा इख़्तियार
से तजावुज़ (सीमोल्लंघन) किया। चुनाव आयोग ने पंजाब में 8 अक्टूबर को चुनाव कराने
का ऐलान किया था। इस दौरान वर्तमान पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के
चीफ जस्टिस बंदियाल दोनों ही अपनी कुर्सी से हट जाएंगे। ये दोनों ही इमरान खान के
समर्थक माने जाते हैं।
संघीय कैबिनेट के सूत्रों ने कहा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला अल्पमत का फैसला है, इसलिए
कैबिनेट इसे खारिज करती है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) की वरिष्ठ
उपाध्यक्ष और मुख्य आयोजक मरियम नवाज ने ट्विटर पर लिखा कि आज का फैसला उस साजिश
का आखिरी झटका है, जो पीठ के चहेते इमरान खान को संविधान
को फिर से लिखकर और पंजाब सरकार को थाली में पेश करके शुरू किया गया था। अब देश
में मार्शल लॉ का खतरा फिर से मंडराने लगा है।
पाकिस्तानी मीडिया का कहना है कि सेना प्रमुख जनरल
असीम मुनीर अभी चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में अब कई विश्लेषक आशंका
जता रहे हैं कि देश में या तो आपातकाल लग सकता है या फिर मार्शल लॉ। सुप्रीम कोर्ट
का फैसला आने के एक दिन पहले विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा था कि देश में
मार्शल लॉ लग सकती है। सेना जल्द चुनाव के लिए तैयार नहीं है, तो चुनाव कराना
असंभव होगा। पाकिस्तानी अखबार डॉन के अनुसार जनरल मुनीर जल्दी या अलग-अलग चुनाव
कराने के पक्ष में नहीं हैं। वे चाहते हैं कि पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा के चुनाव शहबाज़
शरीफ सरकार का कार्यकाल खत्म होने के बाद एक साथ कराए जाएं।
चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के बावजूद अब तक यह
स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे में इंतख़ाबात मुकर्रर वक़्त पर हो
पाएँगे या नहीं। संघीय सरकार मानती है कि अदालत ने यह फैसला 10 सदस्यों की पूर्ण
पीठ के माध्यम से किया होता, तब उसे स्वीकार किया जा सकता था, पर जिस तरीके से
मुख्य न्यायाधीश ने इस मसले को स्वतः संज्ञान (अज़खु़द नोटिस) में लिया और बेंच में
रद्दोबदल किया, उससे न्यायालय पर से विश्वास उठ गया है। शासन मानता है कि देश में
सभी चुनाव एकसाथ होने चाहिए।
वस्तुतः पद से हटाए जाने के बाद से इमरान खान
की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। सरकार को डर है कि वे फिर से चुनाव जीतकर आ
जाएंगे। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि इमरान खान चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं। उनपर
गिरफ्तारी की छाया है। इतना ही नहीं पिछले साल अक्तूबर में चुनाव आयोग ने उन्हें
पाँच साल तक के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया था। इमरान ने इस फैसले के
खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। इमरान खान पर देश की सेना को बदनाम करने और
आर्थिक-संकट पैदा करने वगैरह के आरोप भी हैं।
सरकार की रणनीति है कि यदि सूबों के चुनाव चल
जाएं, तो फिर राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव टालना आसान हो जाएगा। इस साल जनवरी में
पंजाब विधानसभा भंग हो गई थी। संविधान के अनुसार इसके बाद 90 दिन के भीतर चुनाव
होने चाहिए, पर देश का चुनाव आयोग मानता था कि किन्हीं कारणों से चुनाव टालने
होंगे। इसपर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की बेंच ने 14 मई को चुनाव कराने का
आदेश दिया है। इस साल मध्य-अक्तूबर के पहले राष्ट्रीय असेंबली के चुनाव भी होने
हैं। पिछले साल अप्रेल में सरकार से बाहर हुए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फौरन
चुनाव कराने की माँग करते रहे हैं। पंजाब विधानसभा पर भी उनकी पार्टी पाकिस्तान
तहरीके इंसाफ (पीटीआई) का बहुमत था। केंद्र पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने पंजाब
विधानसभा को समय से पहले भंग करा दिया था। पंजाब के अलावा खैबर पख्तूनख्वा सूबे
में भी चुनाव होने हैं।
मंगलवार 4 अप्रेल को जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला
आया, संघीय सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हम इस फैसले को नहीं मानेंगे। यह इमरान खान
समर्थक जजों का फैसला है। यह केवल तीन जजों की बेंच थी। छह जज इसमें शामिल होने से
इनकार कर चुके थे।
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