Showing posts with label ट्रंप का टैरिफ. Show all posts
Showing posts with label ट्रंप का टैरिफ. Show all posts

Friday, August 8, 2025

ट्रंप की सनक या बदलती दुनिया की प्राथमिकताएँ?


ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विदेश-नीति के सामने अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर जो पेचीदगियाँ पैदा हुई हैं, उन्हें समझने के लिए हमें कई तरफ देखना होगा.

उनके पीछे अमेरिका की अपनी आंतरिक राजनीति, उनकी विदेश-नीति की नई प्राथमिकताएँ, ट्रंप के निजी तौर-तरीकों, खासतौर से पाकिस्तान के बरक्स, भारत की आंतरिक, आर्थिक और विदेश-नीति तथा पाकिस्तान के साथ रिश्तों की भूमिका भी है.

डॉनल्ड ट्रंप ने इस साल जनवरी में जबसे अपना नया कार्यकाल शुरू किया है, वे निरंतर विवाद के घेरे में हैं. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनकी आर्थिक-नीतियों की है. उन्होंने अप्रेल के महीने से जिस नई पारस्परिक टैरिफ नीति को लागू करने की घोषणा की, उसकी पेचीदगियों से वे खुद भी घिरे हैं.

इसके के तहत दुनिया के तमाम देशों से होने वाले आयात पर भारी टैक्स लगाने का दावा किया गया. ट्रंप ने उसे ‘मुक्ति दिवस’ बताया, पर उनका वह कार्यक्रम उस वक्त लागू नहीं हो पाया. इसके बाद उन्होंने इसके लिए 8 जुलाई की तारीख तय की, फिर उसे 1 अगस्त किया और अब 7 अगस्त से कुछ देशों पर नई दरें लागू करने का दावा किया है.

भारत की चिंता

यह योजना कितनी सफल या विफल होगी, यह वक्त बताएगा. हमारी निगाहों में भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. इसके दो अलग-अलग आयाम हैं. एक है, भारत-अमेरिका व्यापार संबंध और दूसरा है दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिका की नीति. इस समय दोनों गड्ड-मड्ड होती नज़र आ रही हैं. पर उससे ज्यादा डॉनल्ड ट्रंप के बयान ध्यान खींच रहे हैं.

ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि मैंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया. यह बात समझ में नहीं आ रही है कि अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति बार-बार इस बात को क्यों कह रहा है.

Thursday, April 3, 2025

टैरिफ-संग्राम के साथ शुरू हुआ, वैश्विक-चुनौतियों का एक नया दौर


अमेरिका का टैरिफ-युद्ध इस हफ्ते पूरी तरह शुरू हो गया, उसका असर अब चीन, कनाडा और मैक्सिको से आगे निकलकर विश्वव्यापी होगा, जिसमें भारत भी शामिल है. वैश्विक-अर्थव्यवस्था के लिए यह एक नया संधिकाल है. 

भारत के मामले में, 5 अप्रैल को सार्वभौमिक 10 प्रतिशत टैरिफ के पहले चरण के प्रभावी होने के बाद, 9 अप्रैल के बाद 17 प्रतिशत टैरिफ लागू होगा, जिससे कुल शुल्क 27 प्रतिशत हो जाएगा.

भारत पर 27 प्रतिशत की यह दर चीन पर लगाए गए 34 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत, बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत और थाईलैंड पर 36 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है, ये सभी भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धी हैं, जबकि वे किसी न किसी कमोडिटी सेगमेंट में अमेरिकी बाजार तक पहुँचते हैं.

भारत पर टैरिफ अन्य एशियाई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भी कम है, जिसमें थाईलैंड पर प्रस्तावित 36 प्रतिशत और इंडोनेशिया पर 32 प्रतिशत शामिल हैं.

मामला केवल आर्थिक-रिश्तों तक सीमित नहीं है. सामरिक, पर्यावरणीय और अंतरराष्ट्रीय-प्रशासन से जुड़े मसले भी इससे जुड़े हैं. अमेरिका की नीतियों को बदलते वैश्विक-संबंधों के लिहाज से देखने की ज़रूरत है, खासतौर से हमें भारत-अमेरिका रिश्तों के नज़रिए से इसे देखना होगा. 

केवल 2 अप्रैल की घोषणाओं से ही नहीं, बल्कि उससे पैदा होने वाली अनुगूँज से भी बहुत कुछ बदलेगा. ट्रंप-प्रशासन ने इसे ‘लिबरेशन डे’ कहा है. रेसिप्रोकल यानी पारस्परिक टैरिफ का मतलब यह कि दूसरे देशों से अमेरिका आने वाले माल पर वही शुल्क वसूला जाएगा, जो वे देश अमेरिकी वस्तुओं पर लगाते हैं. 

अमेरिकी पराभव 

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में सोवियत संघ पर अमेरिकी विजय के पीछे केवल भौतिक-शक्ति ही जिम्मेदार नहीं थी. अमेरिकी संस्कृति की कई आकर्षक विशेषताओं ने उसे सफलता दिलाई थी. 

इसमें सबसे भूमिका थी अमेरिकी समाज के राजनीतिक खुलेपन की. नोम चॉम्स्की जैसे अमेरिका के सबसे बड़े आलोचक भी वहीं रहते हैं, और आदर पाते हैं. अब लगता है कि अमेरिका की उस सॉफ्ट पावर का भी क्षरण हो रहा है.