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Wednesday, May 31, 2023

‘राष्ट्रीय-अस्मिता’ ने एर्दोगान को फिर से राष्ट्रपति बनाया

तुर्की की सुप्रीम इलेक्शन कौंसिल ने इस बात की पुष्टि की है कि रजब तैयब एर्दोगान ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में कामयाबी हासिल कर ली है. वे एकबार फिर से तुर्की के सदर मुंतख़ब हो गए हैं. इस साल तुर्की अपने लोकतांत्रिक इतिहास की 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है. इनमें एर्दोगान के नेतृत्व के 21 साल शामिल हैं.

हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक परिणाम पूरी तरह आए नहीं हैं, पर उन्हें 52 फीसदी से ज्यादा वोट मिल चुके हैं और उनके प्रतिस्पर्धी कमाल किलिचदारोलू को 47 फ़ीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं.

करीब-करीब सभी बैलट बॉक्स खुल चुके हैं और अब परिणाम में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं बची है. बाकी सभी वोट भी यदि किलिचदारोलू के खाते में चले जाएं, तब भी परिणाम पर फर्क नहीं पड़ेगा.

चुनाव-परिणाम आने के बाद एर्दोगान ने कहा कि यह तुर्की की जीत है. वे अभी चुनाव की मुद्रा में ही हैं, क्योंकि अब वे आगामी मार्च में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी में जुट जाएंगे.

विरोधी परास्त

एर्दोगान की विजय के साथ पश्चिमी देशों में लगाई जा रही अटकलें ध्वस्त हो गई हैं कि तुर्की की व्यवस्था में बदलाव होगा, बल्कि एर्दोगान अब ज्यादा ताकत के साथ अगले पाँच या उससे भी ज्यादा वर्षों तक अपने एजेंडा को पूरा करने की स्थिति में होंगे.

एर्दोगान की पार्टी का नाम एकेपी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) है. उनके मुकाबले छह विरोधी दलों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया था और पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी (सीएचपी) के कमाल किलिचदारोलू को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिन्हें कुर्द-पार्टी एचडीपी का भी समर्थन हासिल था.

Thursday, May 18, 2023

तुर्की में एर्दोगान का रसूख बरकरार

पहले दौर के परिणाम आने के बाद अपनी पार्टी की बैठक में एर्दोगान

एक तरफ भारत के कर्नाटक राज्य के चुनाव परिणाम आ रहे थे, दूसरी तरफ तुर्की और थाईलैंड के परिणाम भी सामने आ रहे हैं, जिनका वैश्विक मंच पर महत्व है. तुर्की के राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुमान सही साबित नहीं हुए हैं. अब सबसे ज्यादा संभावना इस बात की है कि रजब तैयब एर्दोगान एकबार फिर से राष्ट्रपति बनेंगे और अगले पाँच साल उनके ब्रांड की राजनीति को पल्लवित-पुष्पित होने का मौका मिलेगा.

थाईलैंड के चुनाव परिणामों पर भारत के मीडिया ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया है, पर लोकतांत्रिक-प्रक्रिया की दृष्टि से वे महत्वपूर्ण परिणाम है. वहाँ सेना समर्थक मोर्चे की पराजय महत्वपूर्ण परिघटना है. खासतौर से यह देखते हुए कि थाईलैंड के पड़ोस में म्यांमार की जनता सैनिक शासन से लड़ रही है. पहले तुर्की के घटनाक्रम पर नज़र डालते हैं.

एर्दोगान की सफलता

तुर्की में हालांकि एर्दोगान को स्पष्ट विजय नहीं मिली है, पर पहले दौर में उनकी बढ़त बता रही है कि उनके खिलाफ माहौल इतना खराब नहीं है, जितना समझा जा रहा था. हालांकि 88 प्रतिशत के रिकॉर्ड मतदान से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि तुर्की के वोटर की दिलचस्पी अपनी राजनीति में बढ़ी है.

अब 28 मई को दूसरे दौर का मतदान होगा. पहले दौर एर्दोगान और उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी कमाल किलिचदारोग्लू दोनों में से किसी एक को पचास फ़ीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं. एर्दोगान को 49.49 फ़ीसदी और किलिचदारोग्लू को 44.79 फ़ीसदी वोट मिले हैं. अगले दौर में शेष प्रत्याशी हट जाएंगे और मुकाबला इन दोनों के बीच ही होगा.

तीसरे प्रत्याशी राष्ट्रवादी सिनान ओगान को 5.2 फ़ीसदी के आसपास वोट मिले हैं. अब वे चुनाव से हट जाएंगे. देखना होगा कि वे दोनों में से किसका समर्थन करते हैं. हाल में उन्होंने कहा था कि वे सरकार में मंत्रियों के पदों को पाने में दिलचस्पी रखते हैं. वहाँ की संसद ही प्रधानमंत्री और सरकार का चयन करती है. संभव है कि एर्दोगान के साथ उनकी सौदेबाजी हो. 2018 के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे मुहर्रम इंचे ने मतदान के तीन दिन पहले ख़ुद को दौड़ से बाहर कर लिया था.

Wednesday, May 3, 2023

वैश्विक-राजनीति पर असर डालेंगे तुर्की के चुनाव-परिणाम


इस महीने 14 मई को तुर्की में होने वाले संसदीय और राष्ट्रपति पद के चुनाव पर दुनिया की निगाहें हैं. तुर्की की आंतरिक स्थिति और विदेश-नीति दोनों लिहाज से ये चुनाव महत्वपूर्ण होंगे. सबसे बड़ा सवाल राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान के भविष्य को लेकर है. चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों से लगता है कि वे हार भी सकते हैं. ऐसे में संभव है कि एर्दोगान सत्ता के हस्तांतरण में आनाकानी करें. 

एर्दोगान की हार या जीत से तुर्की की आंतरिक और विदेश-नीति दोनों प्रभावित होंगी. अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया के देशों, यहाँ तक कि भारत के साथ रिश्तों पर भी इनका असर होगा. सत्ता परिवर्तन हुआ, तो बदलाव भी होंगे, पर उनमें समय लगेगा. मसलन यदि देश संसदीय-प्रणाली की ओर वापस ले जाने का प्रयास किया जाएगा, तो उसे पूरा होने में समय लगेगा. इस लिहाज से केवल राष्ट्रपति पद के चुनाव का ही नहीं साथ में हो रहे संसदीय चुनावों का भी महत्व है.

एर्दोगान-विरोधी मोर्चा

देश के छह विरोधी दलों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया है और राष्ट्रपति पद के लिए एर्दोगान के खिलाफ पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी (सीएचपी) के कमाल किलिचदारोग्लू को अपना प्रत्याशी बनाया है. उन्हें कुर्द-पार्टी एचडीपी का भी समर्थन हासिल है. आरोप है कि एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की की व्यवस्था निरंकुश होती जा रही है. देश में जबर्दस्त वैचारिक ध्रुवीकरण है. इस प्रवृत्ति को विपक्ष रोकना चाहता है.

एर्दोगान विरोधी मोर्चे की घोषणा है कि यदि हम जीते तो यूरोपियन यूनियन की सदस्यता हासिल करने की कोशिश करेंगे और अमेरिका का जो भरोसा खोया है, उसे वापस लाएंगे. मुद्रास्फीति की दर अगले दो साल में दस फीसदी के अंदर लाने की कोशिश करेंगे और सीरिया से आए करीब 36 लाख शरणार्थियों को उनकी सहमति से वापस भेजेंगे. 

तुर्की नेटो का सदस्य है, पर यूक्रेन के युद्ध के कारण उसके अंतर्विरोध हाल में उभरे हैं. हाल में उसकी नीतियों में कुछ बदलाव भी आया है. उसने नेटो में फिनलैंड की सदस्यता को रोक रखा था, जिसकी स्वीकृति अब दे दी. नेटो में नई सदस्यता के लिए सर्वानुमति जरूरी होती है.