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Wednesday, November 21, 2018

सरकार और बैंक की सकारात्मक सहमतियाँ


सरकार, रिजर्व बैंक, उद्योग जगत की महत्वपूर्ण हस्तियों और बैंकिंग विशेषज्ञों की आमराय से देश की पूँजी और मौद्रिक-व्यवस्था न केवल पटरी पर वापस आ रही है, बल्कि भविष्य के लिए नए सिद्धांतों को भी तय कर रही है. इस लिहाज से हाल में खड़े हुए विवादों को सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए. ये फैसले और यह विमर्श रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 7 की रोशनी में ही हुआ है. सोमवार को रिजर्व बैंक बोर्ड की बैठक अपने किस्म की पहली थी. इतनी लम्बी बैठक शायद ही पहले कभी हुई होगी. करीब नौ घंटे चली बैठक के बाद सरकार और बैंक के बीच तनातनी न केवल ठंडी पड़ी, बल्कि भविष्य का रास्ता भी निकला है. 

यों अब भी कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि टकराव अवश्यंभावी है, फिलहाल बैंक ने टकराव मोल नहीं लिया है और सरकार की काफी बातें मान ली हैं. इन विशेषज्ञों को बैंक के बोर्ड में शामिल प्राइवेट विशेषज्ञों को लेकर आपत्ति है, जिन्हें सरकार मनोनीत करती है. इसका एक मतलब है कि भविष्य में कभी टकराव इस हद तक बढ़े कि दोनों पक्ष अपने कदम वापस खींचने को तैयार नहीं हों, तो ये सदस्य सरकार के पक्ष में पलड़े को झुका देंगे. पर ऐसा माना ही क्यों जाए कि टकराव होना ही चाहिए. क्या दोनों पक्षों को एक-दूसरे की बात समझनी नहीं चाहिए, जैसा इसबार हुआ है?

बैठक के पहले कयास था कि बैंक पर सरकार द्वारा मनोनीत प्राइवेट निदेशक अपने संख्याबल के आधार पर हावी हो जाएंगे. ऐसा कुछ नहीं हुआ. जो जानकारी बाहर आई है उसके अनुसार किसी भी प्रस्ताव पर मतदान की नौबत नहीं आई. बैंक-प्रतिनिधियों ने सरकार की बातों को गौर से सुना और सरकार ने बैंक-प्रतिनिधियों को पूरा सम्मान दिया. दोनों पक्षों ने आग पर पानी डालने का काम किया. यह तनातनी कितनी थी, इसे लेकर भी कयास ज्यादा हैं. मीडिया और राजनीति के मैदान में इसका विवेचन ज्यादा हुआ और ट्विटरीकरण ने आग लगाई.

Sunday, November 4, 2018

मौद्रिक-व्यवस्था पर निरर्थक टकराव


ऐसे महत्वपूर्ण समय में जब देश को आर्थिक संवृद्धि की दर में तेजी से वृद्धि की जरूरत है विश्व बैंक की 16वीं कारोबार सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस) रैंकिंग में भारत इस साल 23 पायदान पार करके 100वें से 77वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले दो सालों में भारत की रैंकिंग में 53 पायदान का सुधार आया है। माना जा रहा है कि इससे भारत को अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी। इस खुशखबरी के बावजूद देश में पूँजी निवेश को लेकर निराशा का भाव है। वजह है देश के पूँजी क्षेत्र व्याप्त कुप्रबंध।

पिछले कुछ वर्षों से बैंकों के नियामक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार के बीच तनातनी चल रही है। इस तनातनी की पराकाष्ठा पिछले हफ्ते हो गई, जब केंद्र सरकार ने आरबीआई कानून की धारा 7 के संदर्भ में विचार-विमर्श शुरू किया। इसके तहत केंद्र सरकार जरूरी होने पर रिज़र्व बैंक को सीधे निर्देश भेज सकती है। इस अधिकार का इस्तेमाल आज तक केंद्र सरकार ने कभी नहीं किया। इस खबर को मीडिया ने नमक-मिर्च लगाकर सनसनीखेज बना दिया। कहा गया कि धारा 7 का इस्तेमाल हुआ, तो रिज़र्व बैंक के गवर्नर ऊर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे।