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Friday, February 19, 2021

शबाना को फाँसी से बचाने की कोशिशें

 

रामपुर की जेल में कैद शबनम को अब जल्द ही फाँसी पर चढ़ाए जाने की खबरें आने के बाद से देश में फाँसी की सजा को लेकर बहस फिर से शुरू हो गई है। दुनिया में मानवाधिकारवादियों का एक बड़ा तबका मानता है कि मृत्युदंड समाप्त होना चाहिए। शबाना ने अब फाँसी की सजा टलवाने की आखिरी कोशिशें शुरू कर दी हैं। यदि उसे फाँसी हुई, तो वह स्वतंत्र भारत में फाँसी पाने वाली पहली महिला होगी। उसे फाँसी दी गई, तो वह मथुरा में होगी, क्योंकि देश में महिला कैदी को फाँसी देने की व्यवस्था केवल मथुरा की जेल में है।

नेशनल लॉ युनिवर्सिटी, नई दिल्ली की सन 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 12 स्त्रियाँ फाँसी की सजा का इंतजार कर रही हैं। ये सभी महिलाएं पिछड़े वर्गों या धार्मिक अल्पसंख्यकों से ताल्लुक रखती हैं। फाँसी की सजा प्राप्त एक और मामला दो बहनों रेणुका शिंदे और सीमा मोहन गवित का है। इनकी दया याचिका भी राष्ट्रपति के दफ्तर से अस्वीकार की जा चुकी है। इनपर 1990 से 1996 के बीच महाराष्ट्र के अनेक बच्चों के अपहरण और उनकी हत्या करने का आरोप है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले की हसनपुर तहसील के बावनखेड़ी गाँव में रहने वाली शबनम सैफी समुदाय से थी और उसका प्रेमी पठान। इस वजह से उनके परिवार इस विवाह के लिए तैयार नहीं थे। अंग्रेजी और भूगोल दो विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाली शबनम शिक्षा मित्र (सरकारी स्कूलों में अध्यापिका) का काम करती थी।

Wednesday, November 21, 2012

अब फाँसी की सजा खत्म होनी चाहिए


अजमल खां कसाब को फाँसी होने के बाद यह बहस फिर शुरू होगी कि फाँसी की सजा खत्म होनी चाहिए या नहीं। दुनिया के 140 देशों ने मृत्यु दंड खत्म कर दिया है। अब केवल 58 देशों में मृत्यु दंड दिया जाता है। पर भारत में भी सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था है कि फाँसी रेयर ऑफ द रेयरेस्ट केस में दी जानी चाहिए। इस वक्त लगभग 300 मृत्युदंड प्राप्त कैदी जेलों में हैं। इनमें राजीव गांधी की हत्या से जुड़े तीन व्यक्ति भी हैं।  कसाब को दी गई फाँसी पिछले पिछले सत्रह साल में दी गई पहली फाँसी है। ऐसा लगता है कि भारतीय व्यवस्था फाँसी को खत्म करने की दिशा में बढ़ रही है। पर कसाब का मामला गले की हड्डी था। यदि उसे फाँसी नहीं दी जाती तो सरकार के लिए राजनीतिक रूप से यह खुद को फाँसी देने की तरह होता। वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी  ने शुरू में ही कहा था कि कसाब को फाँसी देने से उसे क्या सजा मिलेगी? उसे जीवित रखने से ही वह अपनी गलती को समझेगा।

हम यह समझते हैं कि फाँसी की सजा डिटरेंट हैं। दूसरे अपराधियों को अपराध करने से रोकती है तो यह भी गलत फहमी है। जिन देशों में फाँसी की सजा नहीं है, वहाँ हमारे देश के मुकाबले कम अपराध होते हैं। हमारे यहाँ भी फाँसी की सजा जिन्हें होती है उनमें से ज्यादातर साधनहीन, गरीब लोग होते हैं, जो न्याय हासिल करने के लिए वकीलों को फीस नहीं दे सकते।