Wednesday, December 11, 2024

सीरिया में असद के पराभव का संदेश और उभरते नए ख़तरे


सीरिया में 2011 से चल रहे गृहयुद्ध में करीब चार साल के ठहराव के बाद हाल में अचानक फिर से लड़ाई शुरू हुई और देखते ही देखते वहाँ बशर अल-असद की सरकार का पतन हो गया. गौरतलब है कि सत्ता-परिवर्तन सहज और शांतिपूर्ण हुआ है. यानी कि असद की सेना ने किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया. 

इतनी तेजी से हुए इस सत्ता-परिवर्तन से पश्चिम एशिया के हालात में बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है. इसके पहले लक्षण इसराइल-सीरिया सीमा पर दिखाई पड़े, जहाँ इसराइली सेना ने विसैन्यीकृत बफर जोन पर कब्ज़ा कर लिया. अभी तक वहाँ संयुक्त राष्ट्र की सेना गश्त करती थी. इसराइली प्रधानमंत्री ने कहा है कि दोनों देशों के बीच 50 साल पुराना समझौता भंग हो गया है. 

रूस में शरण

रविवार को रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि बशर अल-असद ने अन्य प्रतिभागियों के साथ बातचीत के बाद पद और देश छोड़ दिया और सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के आदेश दिए हैं. इसके बाद देर रात रूसी समाचार एजेंसियों ने क्रेमलिन के एक सूत्र का हवाला देते हुए बताया कि असद और उनका परिवार रूस पहुँच गया है और उन्हें वहाँ शरण दी गई है. 

Wednesday, December 4, 2024

बांग्लादेश की विसंगतियाँ और भारत से बिगड़ते रिश्ते

हिंदू-प्रतिरोध

गत 5 अगस्त को बांग्लादेश में शेख हसीना के पराभव के बाद से उसके और भारत के रिश्ते लगातार तनाव में हैं. कभी आर्थिक, कभी राजनयिक और कभी दूसरे कारण इसके पीछे रहे हैं. अभी स्पष्ट नहीं है कि वहाँ की राजनीति किस दिशा में जाएगी, पर इतना साफ है कि देश का वर्तमान निज़ाम भारत के प्रति पिछली सरकार की तुलना में कठोर है. 

अंतरिम सरकार शेख हसीना को भारत में शरण देने की आलोचना करती रही है और संभव है कि निकट भविष्य में वह औपचारिक रूप से उनके प्रत्यर्पण की माँग करे. अगस्त में हुए सत्ता-परिवर्तन को पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त था, क्योंकि वे शेख हसीना के तौर-तरीकों से सहमत नहीं थे. पर क्या वे इस देश के और दक्षिण एशिया के अंतर्विरोधों को समझते हैं? यूनुस को अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार और बांग्लादेश के इस्लामिक कट्टरपंथियों ने कुर्सी पर बैठाया है. अब चीन ने भी इस्लामिक कट्टरपंथियों से संपर्क स्थापित किया है. 

जमात-ए-इस्लामी

कुछ पर्यवेक्षक मानते हैं कि बांग्लादेश की राजनीति में इस समय वास्तविक ताकत जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़ते इस्लाम के हाथों में है. अंतरिम सरकार में मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन अहम भूमिका निभा रहे हैं. डॉ यूनुस की सरकार केवल शेख हसीना को ही नहीं, शेख मुजीबुर रहमान को भी फासिस्ट बता रही है. 

अगस्त में शेख हसीना के विरुद्ध हिंसक आंदोलन में जमात-ए-इस्लामी की महत्वपूर्ण भूमिका थी. शेख हसीना के कार्यकाल में जमात पर पाबंदी थी, जिसे डॉ यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार ने हटा लिया. जमात-ए-इस्लामी वैचारिक रूप से मिस्र के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के बेहद करीब है. उसका पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी निकट-संबंध है. 

महाराष्ट्र ने बदल दी राष्ट्रीय-राजनीति की दिशा

हरियाणा के बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को मिली भारी विजय ने लोकसभा चुनाव में लगे झटके को काफी हद तक कम कर दिया है। इन परिणामों से पार्टी कार्यकर्ता के मनोबल बढ़ा है, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन के पैरोकार हताश होने लगे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में नौ में से सात सीटें जीतकर पार्टी ने अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरी को मात दी है, जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। हालांकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस पार्टी शामिल नहीं थी, पर बिना चुनाव लड़े ही वह राज्य में एक कदम और पीछे चली गई है। यदि उसने अपनी रणनीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया, तो वह हमेशा के लिए समाजवादी पार्टी की पिछलग्गू बनकर रह जाएगी। 

महाराष्ट्र और झारखंड दोनों राज्यों ने प्रो-इनकंबैंसी वोट दिया है। इनमें महिलाओं और दूसरे सामाजिक-वर्गों की भूमिका है, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिला है। दोनों राज्यों के चुनाव-परिणामों को समझने के अलावा उत्तर प्रदेश में हुए नौ उपचुनावों के परिणामों और उसके कुछ समय पहले हुए हरियाणा (और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र) के परिणामों के निष्कर्षों को समझने की ज़रूरत भी है। इन सभी परिणामों की वर्ष के शुरू में हुए लोकसभा चुनाव के परिणामों के साथ तुलना की जानी चाहिए। इसके बाद ही राष्ट्रीय-राजनीति की भावी दशा-दिशा के बारे में अनुमान लगाए जा सकते हैं।

Thursday, November 28, 2024

सुलगता पश्चिम एशिया और इस्लामिक-देशों की निष्प्रभावी-एकता


अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद सऊदी अरब की राजधानी रियाद में पिछले 11 नवंबर को हुए अरब और इस्लामी देशों के सम्मेलन को लेकर इस्लामी देशों में ही काफी चर्चा हो रही है. खासतौर से इस बात को लेकर कि इस्लामिक-देशों की कोशिशें सफल क्यों नहीं हो पाती हैं?

यह सम्मेलन ग़ज़ा और लेबनान में इसराइली सैनिक कार्रवाइयों को रोकने के लिए अमेरिका पर दबाव डालने के इरादे से ही बुलाया गया था. माना जाता है कि इस मामले में अमेरिका के नए प्रशासन के दृष्टिकोण पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. 

यह शिखर सम्मेलन काहिरा स्थित अरब लीग और जेद्दा स्थित ओआईसी की रियाद में हुई इसी तरह की बैठक के एक साल बाद हुआ. उस सम्मेलन में भी मुस्लिम देशों ने गज़ा में इसराइली कार्रवाइयों की निंदा करते हुए उसे ‘बर्बर’ बताया था.

इसबार के सम्मेलन के प्रस्ताव को देखने पर पहली नज़र में लगता है कि इसमें इसराइल की निंदा-भर्त्सना करने में इस्लामिक देशों ने अपनी एकता ज़रूर साबित की है, पर ऐसी कोई व्यावहारिक योजना पेश नहीं की है, जिससे लड़ाई रुके या फलस्तीन की समस्या का दीर्घकालीन समाधान हो सके.  

सम्मेलन का प्रस्ताव 

सम्मेलन में गज़ा और लेबनान पर इसराइल के फौजी हमले को तत्काल रोकने की माँग की गई है. अलग-अलग देशों के नेताओं ने अपने भावुक भाषणों में इसराइली सेना के ‘भयानक अपराधों’, ‘नरसंहार’ और गज़ा में ‘जातीय सफाए’ की निंदा की और इन मामलों की ‘स्वतंत्र, विश्वसनीय’ अंतरराष्ट्रीय जाँच की माँग की. 

सम्मेलन के समापन के बाद जारी एक बयान में कहा गया कि सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी पक्ष फलस्तीनी लोगों को उनके वैध और अविभाज्य राष्ट्रीय अधिकारों को साकार करने और सभी प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों को लागू करने का दृढ़ता से समर्थन करते हैं. 

हालात की माँग है कि भारत और चीन के संबंध सुधरें


भारत और चीन के संबंधों को लेकर पिछले कुछ महीनों में हुई गतिविधियों से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि दोनों देशों के बीच बिगड़े संबंध अब सुधार की दिशा में बढ़ रहे हैं, पर यह साफ नहीं है कि सुधार की पहल भारत की ओर से हुई या चीन की ओर से. या फिर दोनों देश अपने अनुभवों को देखते हुए समझौते की मेज पर आए हैं.

एक महीने पहले 21 अक्तूबर को दोनों देशों ने एलएसी पर टकराव के दो बिंदुओं, देपसांग मैदानों और डेमचोक में गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया है. उसे देखते हुए लगता है कि वहाँ अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति या तो बहाल हो गई है, या जल्द हो जाएगी. 

उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कज़ान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के हाशिए पर मुलाकात हुई. इन दोनों बातों के अलावा विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बताया कि दोनों देशों ने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कुछ नए कदम उठाने का फैसला किया है. 

चीनी नज़रिया

हाल में भारतीय पत्रकारों की एक टीम को बुलाकर चीन ने उन्हें अपना दृष्टिकोण समझाने की कोशिश की. अंग्रेजी के एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ‘चीनी अधिकारियों, व्यापारिक समुदाय के सदस्यों, तथा सरकारी थिंक टैंकों और मीडिया संगठनों के साथ हुई बैठकों का यह संदेश स्पष्ट था कि चीन रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है.’

‘अधिकारियों ने अपनी ‘इच्छा-सूची’ बताई: देशों के बीच ‘सीधी उड़ानें’ फिर से शुरू करना, राजनयिकों और विद्वानों सहित चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंधों में ढील, चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध हटें, चीनी पत्रकारों को भारत से रिपोर्टिंग करने दी जाए और चीनी सिनेमाघरों में अधिक भारतीय फिल्में दिखाने की अनुमति मिले आदि.’