Wednesday, September 17, 2025

नेपाल की बग़ावत से निकले सवाल


हाल में हुए आंदोलन के बाद नेपाल की सूरत बदल गई है. हालाँकि सेनाध्यक्ष अशोक राज सिगडेल और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल के आपसी समन्वय से राज्य नाम की संस्था के कुछ लक्षण अभी बचे हुए हैं, पर भविष्य को लेकर अनेक सवाल है.

सबसे बड़ा सवाल है कि क्या किसी प्रधानमंत्री को इस तरह से पद छोड़ने के लिए मज़बूर किया जा सकता है? क्या इस तरह से अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति की जा सकती है? क्या संसद भंग की जा सकती है?

नेपाल के 2015 के संविधान में संघीय संसद के बाहर के किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने की परिकल्पना नहीं की गई है. कार्की सांसद नहीं हैं. हालाँकि, आवश्यकता का सिद्धांत, एक कानूनी सिद्धांत है जो कहता है कि असाधारण परिस्थितियों में संविधानेतर तरीकों की आवश्यकता होती है.

इस दृष्टि से राष्ट्रपति के पास संविधान के अनुच्छेद 61 (4) की व्यापक व्याख्या के तहत कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति का अधिकार है. थोड़ी देर के लिए इन फैसलों को आपातकाल के फैसले मानते हुए स्वीकार कर भी लें, तब भी क्या ये फैसले समाधान की ओर ले जाएँगे?

राष्ट्रपति की दो घोषणाएँ महत्वपूर्ण हैं. एक, संसद का भंग होना और दूसरे अगले संसदीय चुनाव की तारीख की घोषणा, जो 5 मार्च को होंगे. देश के प्रमुख राजनीतिक दलों ने संसद भंग करने के फ़ैसले की कड़ी आलोचना करते हुए इसे ‘असंवैधानिक’, ‘मनमाना’ और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर झटका बताया है।

Tuesday, September 16, 2025

बहुध्रुवीय होती दुनिया में भारत के जोखिम

 मोटा अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के प्रति ट्रंप की आक्रामक-नीतियों ने अमेरिका-भारत की दीर्घकालीन साझेदारी को धक्का पहुँचाया है, पर इससे यह निष्कर्ष नहीं लगाया जा सकता है कि भारत रूस और चीन के खेमे में पहुँच गया है.

हाँ, इससे इतना फर्क ज़रूर पड़ा है कि भारत और चीन के रिश्तों में सुधार हुआ है. पर भारत को इन रिश्तों से आर्थिक, तकनीकी और सामरिक-क्षेत्रों में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं होगी. इस सुधार की एक सकारात्मक भूमिका है, जिसे स्वीकार करना चाहिए.

महत्वपूर्ण बात यह है वैश्विक-व्यवस्था में बुनियादी तौर पर बड़े परिवर्तन आ रहे हैं. इन परिवर्तनों का असर संयुक्त राष्ट्र और उसकी वित्तीय संरचनाओं पर भी पड़ेगा. भारत अब किसी एक ग्रुप या गिरोह का पिछलग्गू बनकर नहीं रह पाएगा.

भारत पहले से बहुध्रुवीयता के सिद्धांत का समर्थक है, पर बहुध्रुवीय-व्यवस्था के अपने खतरे भी हैं. जब अनेक प्रकार की शक्तियाँ विश्व में सक्रिय होंगी, तब उनकी गतिविधियों पर नज़रें रखना भी आसान नहीं होगा. उसमें शक्ति-संतुलन की स्थापना सबसे बड़ी जरूरत होगी है.

Thursday, August 21, 2025

भारत को लंबा खेल ही खेलना होगा

इकोनॉमिस्ट में कैल का कार्टून

भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर बातचीत फिलहाल रोक दी गई है. वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच पिछले शुक्रवार को हुई बातचीत से ऐसा कोई समाधान नहीं निकला है, जिससे भारत की उम्मीदें बढ़ें.

व्यापार वार्ता के विफल होने से भारत की चिंताएँ इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो दुनिया में किसी भी देश पर लगा सबसे ज़्यादा टैरिफ है.

25 प्रतिशत टैरिफ पहले ही लागू है, रूस के तेल व्यापार पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ भू-राजनीतिक घटनाक्रम पर निर्भर करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कहा कि हम अपने किसानों, मछुआरों और पशुपालकों की भलाई के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे.  

रोचक बात यह है कि ट्रंप का झुकाव रूस की तरफ है, और अलास्का वार्ता कमोबेश रूस के पक्ष में ही रही है. ट्रंप की कोशिश अब यूक्रेन पर दबाव डालने की होगी. दूसरी तरफ वे भारत को धमका रहे हैं.

Wednesday, August 13, 2025

‘टैरिफ टेरर’ और भारत के सामने विकल्प


भारत और अमेरिका के बीच व्यापार-वार्ता में गतिरोध आने के बाद भारत में मोटे तौर पर दो तरह की प्रतिक्रियाएँ हैं. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि भारत को अमेरिका का साथ छोड़कर रूस और चीन के गुट में शामिल हो जाना चाहिए.

वहीं गंभीर पर्यवेक्षकों का कहना है कि इतनी जल्दी निष्कर्ष नहीं निकाल लेने चाहिए. भारत की नीति किसी गुट में शामिल होने की नहीं है. व्यापार-वार्ता में तनातनी का समाधान दोनों देश आपस की बातचीत से ही निकाल सकते हैं.

पर बात यहीं खत्म नहीं होती. वैश्विक-व्यवस्था भी तेज बदलाव की दिशा में बढ़ रही है. ब्रिक्स जैसे समूह का उदय उसी प्रक्रिया की शुरुआत है. ऐसा लगता है कि वैश्विक-मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की हैसियत देर-सबेर खत्म होगी.

Friday, August 8, 2025

ट्रंप की सनक या बदलती दुनिया की प्राथमिकताएँ?


ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय विदेश-नीति के सामने अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर जो पेचीदगियाँ पैदा हुई हैं, उन्हें समझने के लिए हमें कई तरफ देखना होगा.

उनके पीछे अमेरिका की अपनी आंतरिक राजनीति, उनकी विदेश-नीति की नई प्राथमिकताएँ, ट्रंप के निजी तौर-तरीकों, खासतौर से पाकिस्तान के बरक्स, भारत की आंतरिक, आर्थिक और विदेश-नीति तथा पाकिस्तान के साथ रिश्तों की भूमिका भी है.

डॉनल्ड ट्रंप ने इस साल जनवरी में जबसे अपना नया कार्यकाल शुरू किया है, वे निरंतर विवाद के घेरे में हैं. इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनकी आर्थिक-नीतियों की है. उन्होंने अप्रेल के महीने से जिस नई पारस्परिक टैरिफ नीति को लागू करने की घोषणा की, उसकी पेचीदगियों से वे खुद भी घिरे हैं.

इसके के तहत दुनिया के तमाम देशों से होने वाले आयात पर भारी टैक्स लगाने का दावा किया गया. ट्रंप ने उसे ‘मुक्ति दिवस’ बताया, पर उनका वह कार्यक्रम उस वक्त लागू नहीं हो पाया. इसके बाद उन्होंने इसके लिए 8 जुलाई की तारीख तय की, फिर उसे 1 अगस्त किया और अब 7 अगस्त से कुछ देशों पर नई दरें लागू करने का दावा किया है.

भारत की चिंता

यह योजना कितनी सफल या विफल होगी, यह वक्त बताएगा. हमारी निगाहों में भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. इसके दो अलग-अलग आयाम हैं. एक है, भारत-अमेरिका व्यापार संबंध और दूसरा है दक्षिण एशिया को लेकर अमेरिका की नीति. इस समय दोनों गड्ड-मड्ड होती नज़र आ रही हैं. पर उससे ज्यादा डॉनल्ड ट्रंप के बयान ध्यान खींच रहे हैं.

ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि मैंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया. यह बात समझ में नहीं आ रही है कि अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति बार-बार इस बात को क्यों कह रहा है.