भारत की विविधता में एकता को देखना है, तो उसके पर्वों और त्योहारों पर नज़र डालनी होगी। इनका देश की संस्कृति, अर्थव्यवस्था और समाज के साथ भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम के साथ गहरा रिश्ता है। जिस तरह साल के उत्तरार्ध में पावस की समाप्ति और शरद के आगमन के साथ पूरे देश में त्योहारों और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है, उसी तरह सर्दियाँ खत्म होने और गर्मियों की शुरुआत के बीच वसंत ऋतु के पर्व हैं। वसंत पंचमी, मकर संक्रांति, होली, नव-संवत्सर, वासंतिक-नवरात्र, रामनवमी और गंगा दशहरा इन पर्वों का समुच्चय है।
यों तो हमारा हर दिन पर्व है और यह खास तरह की जीवन-शैली है, जो परंपरागत भारतीय-संस्कृति की देन है। जैसा उत्सव-धर्मी भारत है, वैसा शायद ही दूसरा देश होगा। आप भारत और भारतीयता की परिभाषा समझना चाहते हैं, तो इस बात को समझना होगा कि किस तरह से इन पर्वों और त्योहारों के इर्द-गिर्द हमारी राष्ट्रीय-एकता काम करती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक कुछ खास तिथियों पर अलग-अलग रूप में मनाए जाने वाले पर्वों के साथ एक खास तरह की अद्भुत एकता काम करती है। वह मकर संक्रांति, नव संवत्सर, पोइला बैसाख, पोंगल, ओणम, होली हो या दीपावली और छठ।
धार्मिक दृष्टि
यह सप्ताह नव संवत्सर और नवरात्र का था, जिसका समापन रामनवमी के साथ होगा। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार इस दिन मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्र का समापन भी होता है। धार्मिक-दृष्टि से देखें, तो भगवान श्री राम ने भी देवी दुर्गा की आराधना की थी। उनकी शक्ति-पूजा ने उन्हें युद्ध में विजय प्रदान की। इन दो महत्वपूर्ण पर्वों का एक साथ होना उसकी महत्ता को बढ़ा देता है। इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था। रामनवमी का व्रत पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। यह धार्मिक-दृष्टि है, पर विश्व-साहित्य में शायद ही कोई ऐसा दूसरा पात्र होगा, जिसकी राम से तुलना की जा सके। यह बहस का विषय है कि राम, ऐतिहासिक पात्र हैं या नहीं, पर इसमें दो राय नहीं कि साहित्य, संस्कृति और समाज में राम अतुलनीय हैं।