बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव कराए जाने की घोषणा के बाद से घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. वहाँ के राजनीतिक अंतर्विरोध तेजी से खुल रहे हैं. यह स्पष्ट हो रहा है कि वहाँ के समाज और राजनीति में कई धाराएँ एक साथ बहती हैं.
बुनियादी सवाल
अब भी अपनी जगह है. चुनाव होंगे या नहीं और हुए तो परिणाम क्या होगा, कैसी सरकार
बनेगी? अंतरिम सरकार को जो आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयाँ विरासत में मिली हैं, वे
अब और बढ़ गई हैं, जो आने वाली सरकार के मत्थे मढ़ी जाएँगी. भारत के साथ रिश्ते भी
इन चुनाव-परिणामों पर निर्भर करेंगे.
नई सरकार को राजनीतिक असंतोष, ऊँची मुद्रास्फीति और राजनीतिक-समूहों के तूफान का सामना करना होगा. देश
की अर्थव्यवस्था भारत के साथ संबंधों पर भी निर्भर करती है. ये संबंध बिगड़े हुए हैं
और कहना मुश्किल है कि नई सरकार का इस मामले में नज़रिया क्या होगा.
बढ़ती अराजकता
डॉ यूनुस की अंतरिम सरकार ने चुनाव की तारीख की
घोषणा पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी)
और इस्लामी जमात-ए-इस्लामी के साथ विचार-विमर्श के बाद की है. फिर भी अधूरे
सुधारों और बिगड़ती सुरक्षा व्यवस्था के कारण चुनाव की समय-सीमा खिसक जाए, तो हैरत
नहीं होगी.
भीड़ की हिंसा बेरोकटोक जारी है, दिन-दहाड़े गोलीबारी और लिंचिंग की खबरें आ रही हैं. अवामी लीग को निशाना बनाकर राजनीतिक स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाए जा रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी मई 2025 की रिपोर्ट में, इसे लेकर चिंता व्यक्त की है.




