Wednesday, December 10, 2025

पुतिन की यात्रा और तलवार की धार पर भारत


पुतिन के भारत दौरे से भारत ने अपनी विदेश-नीति की स्वतंत्रता का परिचय दिया वहीं, रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों को विफल करने में मदद भी की है. भारत को यह संदेश भी देना है कि हम किसी की दादागीरी के दबाव में नहीं आएँगे और अपनी स्वतंत्र सत्ता को बनाकर रखेंगे.

रूस को अलग-थलग करना इसलिए भी आसान नहीं है, क्योंकि विकासशील देशों के साथ उसके रिश्ते सोवियत-युग से बने हुए हैं. रूस ने बहुत लंबे समय तक इन देशों का साथ दिया है और अब ये देश उसका साथ दे रहे हैं.

इसका अर्थ यह भी नहीं है कि भारत ने अमेरिका से दूरी बनाई है या वह वैश्विक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में किसी एक पाले में जाकर बैठेगा. अलबत्ता यह संकेत ज़रूर दिया कि भारत और रूस की दोस्ती ख़ास है, जो समय की कसौटी पर परखी गई है.

भारत को अमेरिका से रिश्तों में बदलाव आने पर धक्का जरूर लगा है. पिछले दो दशक से भारत यह कोशिश कर रहा था कि अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित हो. डॉनल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत का दर्जा रणनीतिक रूप से घटाया गया है.

ट्रंप प्रशासन ने इस हफ़्ते अपनी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की है, जिसे देखते हुए लगता है कि अमेरिका ने एशिया में चीन से शत्रुता को कम करने और यूरोप में अपने प्रभाव को बढ़ाने का फैसला किया है.

संचार साथी: पहले साख बनाएँ, फिर इस्तेमाल करें


दूरसंचार विभाग ने स्मार्टफोन कंपनियों को संचार साथी एप्लीकेशन को अनिवार्य रूप से प्री-लोड करने के अपना आदेश वापस लेकर अच्छा काम किया है। इसे लागू करने का बेहतर तरीका यही था कि लोगों पर छोड़ दिया जाता कि वे चाहें, तो इसे डाउनलोड कर लें और न चाहें, तो न करें। इसके फायदों को देखते हुए वह खुद ही लोकप्रिय हो जाएगा। हाँ, फायदों की जानकारी लोगों को जरूर दी जानी चाहिए थी। इसे लेकर गोपनीयता और संभावित निगरानी को लेकर चिंताएं पैदा हुई, जिनके पीछे भले ही कोई आधार नहीं रहा होगा, पर वे वाजिब थीं। संचार मंत्रालय ने अब बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘सरकार ने मोबाइल निर्माताओं के लिए प्री-इंस्टॉलेशन को अनिवार्य नहीं बनाने का निर्णय लिया है।’

मतलब यह भी नहीं है कि सरकार साइबर अपराधों को रोकने की अपनी जिम्मेदारी से हाथ धो ले। वस्तुतः यह साख का सवाल है। पिछले सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने देशभर से सामने आए डिजिटल अरेस्ट के मामलों की देशभर में जाँच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, डिजिटल अरेस्ट तेजी से बढ़ता साइबर क्राइम है। इसमें ठग खुद को पुलिस, कोर्ट या सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताकर वीडियो/ऑडियो कॉल के जरिए पीड़ितों, खासकर सीनियर सिटिजन को धमकाते हैं और उनसे पैसे वसूलते हैं।

शुरू होगा भारत-रूस सहयोग का एक नया दौर


 ऐसे मौके पर जब लग रहा है कि रूस ने यूक्रेन में लड़ाई को डिप्लोमैटिक-मोर्चे पर जीत लिया है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ रहे हैं. दूसरी तरफ इसी परिघटना के आगे-पीछे भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की भी संभावना है.

इन दोनों खबरों को मिलाकर पढ़ें, तो भारत की दृष्टि से साल का समापन अच्छे माहौल में होने जा रहा है. यूक्रेन में लडाई खत्म हुई, तो एक और बड़ा काम होगा. वह है रूस पर आर्थिक-पाबंदियों में कमी. इनसे भी भारत का रिश्ता है.

दूसरी तरफ अमेरिका-रूस, अमेरिका-चीन और भारत-चीन रिश्ते भी नई शक्ल ले रहे हैं. अक्सर सवाल किया जाता है कि चीन से घनिष्ठता को देखते हुए क्या  रूस भारत के साथ न्याय कर पाएगा. क्यों नहीं? बल्कि रूस संतुलनकारी भूमिका निभा सकता है.

Wednesday, November 26, 2025

वैश्विक-राजनीति क्या जी-20 को विफल कर देगी?


हाल में जोहानेसबर्ग में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन से वैश्विक व्यवस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण संदेश निकले हैं. भारत की दृष्टि से इस सम्मेलन का दो कारणों से महत्व है.

एक, भारत ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में उभर रहा है, जिसमें अफ्रीका की बड़ी भूमिका है. 2023 में भारत की जी-20 की अध्यक्षता के दौरान, अफ्रीकी संघ जी-20 का सदस्य बनाने की घोषणा की गई थी. ग्लोबल साउथ में अफ्रीकी देशों की महत्वपूर्ण भूमिका है.

दूसरी तरफ अमेरिकी बहिष्कार के कारण यह सम्मेलन वैश्विक राजनीति का शिकार भी हो गया. कहना मुश्किल है कि आगे की राह कैसी होगी, क्योंकि जी-20 का अगला मेजबान अमेरिका ही है, जिसका कोई प्रतिनिधि अध्यक्षता स्वीकार करने के लिए सम्मेलन में उपस्थित नहीं था.

खाली कुर्सी की अध्यक्षता

अजीब बात है कि वह देश, जिसे अध्यक्षता संभालनी है, सम्मेलन में आया ही नहीं. ऐसे  दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने कहा कि हमें यह अध्यक्षता किसी ‘खाली कुर्सी’ को सौंपनी होगी.

दक्षिण अफ्रीका ने ट्रंप के स्थान पर कार्यभार सौंपने के लिए दूतावास के किसी अधिकारी को भेजने के अमेरिकी प्रस्ताव को प्रोटोकॉल का उल्लंघन बताते हुए अस्वीकार कर दिया. अब शायद किसी और तरीके से इस अध्यक्षता का हस्तांतरण होगा.

Sunday, November 23, 2025

तमिल राजनीति और केंद्र-राज्य टकराव


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 20 नवंबर को राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर स्वीकृति देने के लिए पहले इसी अदालत द्वारा निर्धारित अपनी ही समय-सीमा वापस ज़रूर ले ली, पर असाधारण स्थितियों में राज्यों के लिए अदालत का दरवाज़ा भी खुला रहने दिया है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाले पीठ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायालय कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण नहीं कर सकता।

न्यायालय ने यह भी कहा है जब कोई राज्यपाल कानून बनाने की प्रक्रिया में ‘लंबी, अस्पष्ट और अनिश्चित’ देरी का कारण बने, तब राज्य सरकार अदालत की शरण ले सकती है। इस तरह से अदालत ने केंद्र और राज्यों के बीच एक जटिल राजनीतिक मुद्दे में नाज़ुक संतुलन बनाने की कोशिश की है। अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि 8 अप्रैल के फैसले के कारण तमिलनाडु के जिन 10 कानूनों पर राज्यपाल की स्वीकृति मान ली गई थी, उनकी स्थिति क्या होगी। कुछ संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि वे कानून बन चुके हैं और उनकी अधिसूचना गजट में भी हो चुकी है, इसलिए उन्हें स्वीकृत मान लेना चाहिए।