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Tuesday, September 7, 2021

ब्रेकथ्रू-इंफेक्शन और वैक्सीन को लेकर उठे नए सवाल


देश में कोरोना के नए मामलों की संख्या में आ रही गिरावट में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। उत्तर भारत में गिरावट जारी है, पर केरल में एक नई प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। वहाँ नौ जिलों में वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोग बड़ी संख्या में कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं। पिछले कुछ दिनों में संक्रमण के ऐसे 40,000 केस सामने आ चुके हैं। इनमें भी पथनामथिट्टा की रिपोर्ट बहुत चिंताजनक है। वायनाड में करीब-करीब सौ फीसदी टीकाकरण हुआ है, पर ब्रेकथ्रू के मामले वहां भी हैं।

दूसरी डोज के बाद कुल ब्रेकथ्रू इंफेक्शन के 46 प्रतिशत केस केरल में आए हैं।  केरल में करीब 80 हजार ब्रेकथ्रू इंफेक्शन (टीका लेने के बाद संक्रमण) के मामले सामने आए हैं। इनमें करीब 40 हजार दूसरी डोज के बाद के हैं। इतने ज्यादा मामलों को देखते हुए केंद्र ने राज्य सरकार से सभी मामलों की जीनोम सीक्वेंसिंग कर पता लगाने को कहा कि कहीं नया वेरिएंट तो यह सब नहीं कर रहा।

ब्रेकथ्रू-इंफेक्शन

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के अनुसार, ब्रेकथ्रू इंफेक्शन उसे कहते हैं जब वैक्सीन की दोनों डोज लेने के 14 दिन या उससे ज्यादा समय बाद कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाया जाए। ऐसे में पहला शक होता है कि कहीं ऐसा कोई वेरिएंट तो नहीं फैल रहा जो टीके से हासिल इम्यूनिटी को ध्वस्त कर रहा हो। केरल में छह सदस्यीय केंद्रीय टीम भेजी गई थी जिसने अपने शुरुआती आकलन में बताया कि ब्रेकथ्रू इंफेक्शन कोवैक्सीन और कोवीशील्ड दोनों ही वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में मिले हैं।

Monday, June 21, 2021

दुनिया पर भारी पड़ेगी वैक्सीन-असमानता


ब्रिटेन के कॉर्नवाल में हुए शिखर सम्मेलन में जी-7 देशों ने घोषणा की है कि हम गरीब देशों के 100 करोड़ वैक्सीन देंगे। यह घोषणा उत्साहवर्धक है, पर 100 करोड़ वैक्सीन ऊँट में मुँह में जीरा जैसी बात है। दूसरी तरफ खबर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में आधिकारिक रूप से कोविड-19 की तीसरी लहर चल रही है। वहाँ अब एक्टिव केसों की संख्या एक महीने के भीतर दुगनी हो रही है और पॉज़िटिविटी रेट 16 प्रतिशत के आसपास पहुँच गया है, जो कुछ दिन पहले तक 9 प्रतिशत था। सारी दुनिया में तीसरी लहर को डर पैदा हो गया है। ब्रिटेन में भी तीसरी लहर के शुरूआती संकेत हैं।

इतिहास बताता है कि महामारियों की लहरें आती हैं। आमतौर पर पहली के बाद दूसरी लहर के आने तक लोगों का इम्यूनिटी स्तर बढ़ जाता है। पर दक्षिण अफ्रीका और भारत में यह बात गलत साबित हुई। चूंकि अब दुनिया के पास कई तरह की वैक्सीनें भी हैं, इसलिए भावी लहरों को रोकने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया की बड़ी आबादी को समय रहते टीके लगा दिए जाएं, तो सम्भव है कि वायरस के संक्रमण क्रमशः कम करने में सफलता मिल जाए, पर ऐसा तभी होगा, जब वैक्सीनेशन समरूप होगा।

टीकाकरण की विसंगतियाँ

दुनिया में टीकाकरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ है। इसकी प्रगति पर नजर डालें, तो वैश्विक-असमानता साफ नजर आएगी। दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में इस हफ्ते तक 2.34 अरब से ज्यादा टीके लग चुके हैं। वैश्विक आबादी को करीब 7.7 अरब मानें तो इसका मतलब है कि करीब एक तिहाई आबादी को टीके लगे हैं। पर जब इस डेटा को ठीक से पढ़ें, तो पता लगेगा कि टीकाकरण विसंगतियों से भरा है।

Tuesday, June 15, 2021

वैक्सीन को पेटेंट-फ्री करने में दिक्कत क्या है?

इस साल जबसे दुनिया में कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हुआ है, गरीब और अमीर देशों के बीच का फर्क पैदा होता जा रहा है। अमीर देशों में जहाँ आधी आबादी को टीका लग गया है, वहीं बहुत से गरीब देशों में टीकाकरण शुरू भी नहीं हुआ है। वैक्सीन उपभोक्ता सामग्री है, जिसकी कीमत होती है। गरीबों के पास पैसा कहाँ, जो उसे खरीदें। विश्व व्यापार संगठन के ट्रेड रिलेटेड इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (ट्रिप्स) इसमें बाधा बनते हैं। दवा-कम्पनियों का कहना है कि अनुसंधान-कार्यों को आकर्षक बनाए रखने के लिए पेटेंट जरूरी है।

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्तूबर में विश्व व्यापार संगठन में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की पेशकश की थी। इसे करीब 100 देशों का समर्थन हासिल था। हालांकि अमेरिका ने केवल कोरोना-वैक्सीन पर एक सीमित समय के लिए छूट देने की बात मानी है, पर वैक्सीन कम्पनियों को इसपर आपत्ति है। यूरोपियन संघ ने भी आपत्ति व्यक्त की है।

ब्रिक्स भी आगे आया

इस महीने ब्रिक्स देशों के विदेशमंत्रियों के एक सम्मेलन में भारत और दक्षिण अफ्रीका के उस प्रस्ताव का समर्थन किया गया, जिसमें गरीब देशों के वैक्सीन देने, उनकी तकनीक के हस्तांतरण और उत्पादन की क्षमता के विस्तार में सहायता देने की माँग की गई है, ताकि इन देशों में भी बीमारी पर जल्द से जल्द काबू पाया जा सके।

यह पहला मौका है, जब ब्रिक्स देशों ने इस मामले में एक होकर अपनी राय व्यक्त की है। हालांकि अमेरिका ने शुरूआती झिझक के बाद इस सुझाव को मान लिया है, पर यूरोपियन यूनियन ने इसे स्वीकार नहीं किया है। ईयू ने गत 4 जून को डब्लूटीओ को एक प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत टीकों के वैश्विक वितरण में तेजी लाने का सुझाव है, पर उसमें लाइसेंस से जुड़े नियमों में छूट देने की सलाह नहीं है।

Wednesday, June 2, 2021

गरीबों के हित में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की माँग


कोरोना का सबसे बड़ा सबक है कि दुनिया को जीवन-रक्षा पर निवेश की कोई प्रणाली विकसित करनी होगी, जो मुनाफे और कारोबारी मुनाफे की कामना से मुक्त हो। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने पिछले साल अक्तूबर में विश्व व्यापार संगठन में कोरोना वैक्सीनों को पेटेंट-मुक्त करने की पेशकश की थी। इसे करीब 100 देशों का समर्थन प्राप्त था। हालांकि अमेरिका ने केवल कोरोना-वैक्सीन पर एक सीमित समय के लिए छूट देने की बात मानी है, पर वैक्सीन कम्पनियों को इसपर आपत्ति है। यूरोपियन संघ ने भी आपत्ति व्यक्त की है।

भारत ने डब्ल्यूटीओ की ट्रिप्स (TRIPS) काउंसिल से सीमित वर्षों के लिए कोविड-19 की रोकथाम और उपचार के लिए ट्रिप्स समझौते के विशिष्ट प्रावधानों के कार्यान्वयन, आवेदन और प्रवर्तन से छूट देने का आग्रह किया है। यूरोपीय संघ ने प्रस्तावित कोविड-19 वैक्सीन के वास्तविक मुद्दे को संबोधित करने के बजाय, पेटेंट पूल के विषय को लाकर मुद्दे को भटकाने की रणनीति अपनाई है। इसके पहले सन 2003 में डब्लूटीओ ने गरीब देशों के हितों की रक्षा के लिए दवाओं के मामले में अपने कुछ नियमों में बदलाव किया था।

Monday, May 31, 2021

जोखिमों के बावजूद टीका ही हराएगा कोरोना को

एक अध्ययन से यह बात निकलकर आई है कि दसेक साल के भीतर कोविड-19 महज सर्दी-जुकाम जैसी बीमारी बनकर रह जाएगा। पुरानी महामारियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। कुछ तो गायब ही हो गईं। अमेरिका के यूटा विश्वविद्यालय के गणित जीव-विज्ञान के प्रोफेसर फ्रेड एडलर के अनुसार अगले दसेक साल में सामूहिक रूप से मनुष्यों के शरीर की इम्यूनिटी के सामने यह बीमारी मामूली बनकर रह जाएगी। जीव-विज्ञान से जुड़ी नवीनतम जानकारियों के आधार पर तैयार किए गए इस गणितीय मॉडल के अनुसार ऐसा इसलिए नहीं होगा कि कोविड-19 की संरचना में कोई कमजोरी आएगी, बल्कि इसलिए होगा क्योंकि हमारे इम्यून सिस्टम में बदलाव आ जाएगा। यह बदलाव हमारी प्राकृतिक-संरचना करेगी और कुछ वैक्सीन करेंगी।  

जब इस बीमारी का हमला हुआ, वैज्ञानिकों ने पहला काम इसके वायरस की पहचान करने का किया। उसके बाद अलग-अलग तरीकों से इससे लड़ने वाली वैक्सीनों को तैयार करके दिखाया। वैक्सीनों के साथ दूसरे किस्म के जोखिम जुड़े हैं। टीका लगने पर बुखार आ जाता है, सिरदर्द वगैरह जैसी परेशानियाँ भी होती हैं, पर बचाव का सबसे अच्छा रास्ता वैक्सीन ही है।

कितने वेरिएंट

पिछले एक साल में हमारे शरीरों में पलते-पलते इस वायरस का रूप-परिवर्तन भी हुआ है। इस रूप परिवर्तन को देखते हुए वैक्सीनों की उपयोगिता के सवाल भी खड़े होते हैं। हाल में ब्रिटेन से जारी हुए एक प्रि-प्रिंट डेटा (जिसकी पियर-रिव्यू नहीं हुई है) के अनुसार कोरोना वायरस के दो वेरिएंट बी.1.1.7 (जो सबसे पहले ब्रिटेन में पाया गया) और बी.1.617.2 (जो सबसे पहले भारत में पाया गया) पर फायज़र और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कारगर हैं। भारत के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारे यहाँ बी.1.617 सबसे ज्यादा मिला है। बी.1.617.2 इसका ही एक रूप है।  

Friday, May 28, 2021

टीकों को लेकर 'भ्रम' और नीति आयोग का स्पष्टीकरण

 


भारत के कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम को लेकर कई तरह के भ्रम कुछ समय से हवा में हैं। नीति आयोग में सदस्य (स्वास्थ्य) और कोविड-19 (एनईजीवीएसी) के लिए वैक्सीन प्रबंधन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ विनोद पॉल ने इन भ्रमों को लेकर स्पष्टीकरण जारी किया है। उन्होंने कहा है कि जो गलतफहमियाँ हैं, उनकी वास्तविकता इस प्रकार है:-

1: विदेशों से टीके खरीदने के लिए केंद्र पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है

तथ्य: केंद्र सरकार 2020 के मध्य से ही सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए है। फायज़र, जेएंडजे और मॉडर्ना के साथ कई दौर का वार्तालाप हो चुका है। सरकार ने उन्हें भारत में उनके टीकों की आपूर्ति और/अथवा इन्हें बनाने के लिए सभी प्रकार की सहायता की पेशकश की है। हालांकि, ऐसा नहीं है कि उनके टीके निःशुल्क रूप से आपूर्ति के लिए उपलब्ध हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टीके खरीदना 'ऑफ द शैल्फ' वस्तु खरीदने के समान नहीं है। विश्व स्तर पर टीके सीमित आपूर्ति में हैं, और सीमित स्टॉक को आवंटित करने में कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, योजनाएं और मजबूरियां हैं। वे अपने मूल देशों को भी प्राथमिकता देती हैं जैसे हमारे अपने वैक्सीन निर्माताओं ने हमारे लिए बिना किसी संकोच के किया है। फायज़र ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया, इसके बाद से ही केंद्र सरकार और कंपनी वैक्सीन के जल्द से जल्द आयात के लिए मिलकर कार्य कर रही हैं। भारत सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप, स्पूतनिक वैक्सीन परीक्षणों में तेजी आई और समय पर अनुमोदन के साथ, रूस ने हमारी कंपनियों को टीके की दो किस्तें भेजते हुए निपुण तकनीक-हस्तांतरण पहले ही कर दी हैं और अब बहुत जल्द ही ये कंपनियां इसका निर्माण भी शुरू कर देंगी। हम सभी अंतर्राष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं से भारत में आने और भारत और दुनिया के लिए वैक्सीन बनाने के अपने अनुरोध को दोहराते हैं।

2:  विश्व स्तर पर उपलब्ध टीकों को केंद्र ने मंजूरी नहीं दी है

 तथ्य: केंद्र सरकार ने अप्रैल में ही भारत में यूएस एफडीए, ईएमए, यूके की एमएचआरए और जापान की पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ की आपातकालीन उपयोग सूची द्वारा अनुमोदित टीकों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है। इन टीकों को पूर्व ब्रिजिंग परीक्षणों से गुजरने की आवश्यकता नहीं होगी। अन्य देशों में निर्मित बेहतर तरीके से परीक्षित और जाँचे गए टीकों के लिए परीक्षण आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रावधान में अब और संशोधन किया गया है। औषधि नियंत्रक के पास अनुमोदन के लिए किसी विदेशी विनिर्माता का कोई आवेदन लंबित नहीं है।

Monday, May 24, 2021

वैक्सीन ने उघाड़ कर रख दी गैर-बराबरी की चादर

कोविड-19 ने मानवता पर हमला किया है, पर उससे बचाव हम राष्ट्रीय और निजी ढालों तथा छतरियों की मदद से कर रहे हैं। विश्व-समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी का जुमला पाखंडी लगता है। वैश्विक-महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन की योजनाएं भी सरकारें या कम्पनियाँ अपने राजनीतिक या कारोबारी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कर रही हैं। पिछले साल जब महामारी ने सिर उठाया, तो सबसे पहले अमीर देशों में ही वैक्सीन की तलाश शुरू हुई। उनके पास ही साधन थे।

वह तलाश वैश्विक मंच पर नहीं थी और न मानव-समुदाय उसका लक्ष्य था।  गरीब तो उसके दायरे में ही नहीं थे। उन्हें उच्छिष्ट ही मिलना था। पिछले साल अप्रेल में विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोलीशन फॉर एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सेपी) और ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइज़ेशन यानी गावी ने गरीब और मध्यम आय के देशों के लिए वैक्सीन की व्यवस्था करने के कार्यक्रम कोवैक्स का जिम्मा लिया। इसके लिए अमीर देशों ने दान दिया, पर यह कार्यक्रम किस गति से चल रहा है, इसे देखने की फुर्सत उनके पास नहीं है।

अमेरिका ने ढाई अरब दिए और जर्मनी ने एक अरब डॉलर। यह बड़ी रकम है, पर दूसरी तरफ अमेरिका ने अपनी कम्पनियों को 12 अरब डॉलर का अनुदान दिया। इतने बड़े अनुदान के बाद भी ये कम्पनियाँ पेटेंट अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं। कम से कम महामारी से लड़ने के लिए कारोबारी फायदों को छोड़ दो।   

गरीबों की बदकिस्मती

इस साल मार्च तक 10 करोड़ डोज़ कोवैक्स कार्यक्रम को मिलनी थीं, पर अप्रेल तक केवल 3.85 करोड़ डोज़ ही मिलीं। उत्पादन धीमा है और कारोबारी मामले तय नहीं हो पा रहे हैं। जनवरी में गावी ने कहा था कि जिन 46 देशों में टीकाकरण शुरू हुआ है, उनमें से 38 उच्च आय वाले देश हैं। अर्थशास्त्री जोसफ स्टिग्लिट्ज़ ने वॉशिंगटन पोस्ट के एक ऑप-एडिट में कहा, कोविड-वैक्सीन को पेटेंट के दायरे में बाँधना अनैतिक और मूर्खता भरा काम होगा।

Monday, April 26, 2021

क्या वैक्सीन ताउम्र सुरक्षा की गारंटी है?


कोविड-19 का टीका लगने के बाद शरीर में कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी? यह सवाल अब बार-बार पूछा जा रहा है। क्या हमें दुबारा टीका या बूस्टर लगाना होगा? क्या डोज़ बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ाई जा सकती है? क्या दो डोज़ के बीच की अवधि बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ सकती है? ऐसे तमाम सवाल हैं।

इन सवालों के जवाब देने के पहले दो बातों को समझना होगा। दुनिया में कोविड-19 के वैक्सीन रिकॉर्ड समय में विकसित हुए हैं और आपातकालीन परिस्थिति में लगाए जा रहे हैं। इनका विकास जारी रहेगा। दूसरे प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इम्यूनिटी का एक स्तर होता है। बहुत कुछ उसपर निर्भर करेगा कि टीके से शरीर में किस प्रकार का बदलाव आएगा।

दुनिया में केवल एक प्रकार की वैक्सीन नहीं है। कोरोना की कम से कम एक दर्जन वैक्सीन दुनिया में सामने आ चुकी हैं और दर्जनों पर काम चल रहा है। सबके असर अलग-अलग होंगे। अभी डेटा आ ही रहा है। फिलहाल कह सकते हैं कि कम से कम छह महीने से लेकर तीन साल तक तो इनका असर रहेगा।

कम से कम छह महीने

हाल में अमेरिकी अखबार वॉलस्ट्रीट जरनल ने इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की, तो विशेषज्ञों ने बताया कि हम भी अभी नहीं जानते कि इसका पक्का जवाब क्या है। अभी डेटा आ रहा है, उसे अच्छी तरह पढ़कर ही जवाब दिया जा सकेगा। दुनिया में फायज़र की वैक्सीन काफी असरदार मानी जा रही है। उसके निर्माताओं ने संकेत दिया है कि उनकी वैक्सीन का असर कम से कम छह महीने तक रहेगा। यानी इतने समय तक शरीर में बनी एंटी-बॉडीज़ का क्षरण नहीं होगा। पर यह असर की न्यूनतम प्रमाणित अवधि है, क्योंकि परीक्षण के दौरान इतनी अवधि तक असर रहा है।

Monday, January 18, 2021

टीका लगाने की वैश्विक ‘अफरा-तफरी’


शनिवार 9 जनवरी को ब्रिटेन की 94 वर्षीय महारानी एलिज़ाबेथ और उनके 99 वर्षीय पति प्रिंस फिलिप को कोविड-19 का टीका लगाया गया। ब्रिटेन में वैक्सीन की वरीयता सूची में उनका भी नाम था। वैक्सीनेशन की वैश्विक गणना करने वाली एक वैबसाइट के अनुसार 11 जनवरी तक दो करोड़ 38 लाख लोगों को कोविड-19 के टीके लगाए जा चुके थे। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक भारत में भी वैक्सीनेशन का काम शुरू हो जाएगा, जो दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान होगा। हालांकि आबादी के लिहाज से चीन ज्यादा बड़ा देश है, पर वैक्सीन की जरूरत भारत में ज्यादा बड़ी आबादी को है। 

इसे अफरा-तफरी कहें, हड़बड़ी या आपातकालीन गतिविधि दुनिया में इतनी तेजी से किसी बीमारी के टीके की ईजाद न तो पहले कभी हुई, और न इतने बड़े स्तर पर टीकाकरण का अभियान चलाया गया। पिछले साल के शुरू में अमेरिका सरकार ने ऑपरेशन वार्पस्पीड शुरू किया था, जिसका उद्देश्य तेजी से वैक्सीन का विकास करना। वहाँ परमाणु बम विकसित करने के लिए चली मैनहटन परियोजना के बाद से इतना बड़ा कोई ऑपरेशन नहीं चला। यह भी तय था वैक्सीन की उपयोगिता साबित होते ही उसे आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति (ईयूए) मिल जाएगी।

Sunday, January 17, 2021

वैक्सीन यानी भरोसे की वापसी

भारत में कोविड-19 से लड़ाई के लिए जो टीकाकरण अभियान कल से शुरू हुआ है, उसका प्रतीकात्मक महत्व है। यह दुनिया का, बल्कि इतिहास का सबसे बड़ा अभियान है। भारत को श्रेय जाता है कि उसने न केवल त्वरित गति से वैक्सीन तैयार किए, बल्कि उन्हें देश के कोने-कोने तक पहुँचाया। अभियान के पहले चरण में करीब तीन करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा। यह टीकाकरण उस भरोसे की वापसीहै, जिसका पिछले दस महीनों से हमें इंतजार है। भारत केवल अपने लिए ही नहीं, दुनियाभर के लिए टीके बना रहा है।  

उम्मीद है कि इस साल के अंत तक देश की उस आबादी को टीका लग जाएगा, जिसे इसकी सबसे पहले जरूरत है। इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 3,600 केंद्र वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आपस में जुड़ेंगे। पहले चरण में हैल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स, 50 से अधिक उम्र के लोग और कोमॉर्बिडिटी वाले लोगों को टीका लगाया जा रहा है। भारत के इस अभियान के कुछ दिन पहले दुनिया में टीकाकरण का अभियान शुरू हुआ है। वैक्सीनेशन की वैश्विक गणना करने वाली वैबसाइट के अनुसार 15 जनवरी तक तीन करोड़ 85 लाख से ज्यादा लोगों को कोविड-19 के टीके लगाए जा चुके थे। भारत का अभियान शुरू होने के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ेगी।

भ्रामक प्रचार

इस सफलता के बावजूद और टीकाकरण शुरू होने के पहले ही कुछ स्वार्थी तत्वों ने भ्रामक बातें फैलानी शुरू कर दी हैं। उन बातों की कलई टीकाकरण शुरू होने के बाद खुलेगी, क्योंकि अगले कुछ दिनों के भीतर लाखों व्यक्ति टीके लगवा चुके होंगे। चूंकि दुष्प्रचार यह है कि राजनेता टीके लगवाने से बच रहे हैं, इसलिए उसका जवाब देना भी जरूरी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंस में कहा, जब भी आपका नंबर आए वैक्सीन जरूर लें, लेकिन नियम न तोड़ें। उनका आशय है कि वीआईपी होने का लाभ नहीं उठाएं। पर जब टीके को लेकर भ्रांत-प्रचार है, तब प्रतीक रूप में ही सही कुछ नेता टीकाकरण में शामिल होते तो अच्छा था। इनमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और कुछ मुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। इससे उन आशंकाओं को दूर करने में मदद मिलती, जो फैलाई जा रही हैं। संदेह दो प्रकार के हैं। एक वैज्ञानिक और दूसरे राजनीतिक। बेशक वैज्ञानिक संदेहों को ही महत्व दिया जाना चाहिए। वैक्सीन के साइड इफैक्ट क्या हैं और उनके जोखिम क्या हैं, उनपर भी बात करनी चाहिए।

Saturday, January 9, 2021

राजनीति के माथे पर वैक्सीन का टीका

भारत सरकार का दबाव रहा हो या फिर मेडिकल साइंस की नैतिकता ने जोर मारा हो वैक्सीन के विकास को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के प्रमुखों के बीच अनावश्यक ‘तू-तू मैं-मैं’ थम गई है। बावजूद इसके प्रतिरोधी-टीके को लेकर कुछ नए विवाद खड़े हो गए हैं। एक तरफ विवादों की प्रकृति राजनीतिक है, वहीं भारत बायोटेक को मिली आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति पर वैज्ञानिक समुदाय के बीच मतभेद है। सभी बातों को एक साथ मिलाकर पढ़ें, तो लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण की थुक्का-फज़ीहत शुरू हो गई है। यह गलत और आपराधिक है।

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर में माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर गगनदीप कांग ने भारत बायोटेक की वैक्सीन को मिली अनुमति को लेकर अपने अंदेशों को व्यक्त किया है। इसके बाद सरकार और वैज्ञानिक समुदाय की ओर से स्पष्टीकरण आए हैं। इन स्पष्टीकरणों पर नीचे बात करेंगे। अलबत्ता विशेषज्ञों के मतभेदों को अलग कर दें, तो राजनीतिक-सांप्रदायिक और इसी तरह के दूसरे संकीर्ण कारणों से विवाद खड़े करने वालों का विरोध होना चाहिए।

तीव्र विकास

महामारी का सामना करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने जितनी तेजी से टीकों का विकास किया है, उसकी मिसाल नहीं मिलती है। सभी टीके पहली पीढ़ी के हैं। उनमें सुधार भी होंगे। गगनदीप कांग ने भी दुनिया के वैज्ञानिकों की इस तीव्र गति के लिए तारीफ की है। टीकों के विकास की पद्धतियों की स्थापना बीसवीं सदी में हुई है। इस महामारी ने उन स्थापनाओं में कुछ बदलाव करने के मौके दिए हैं। यह बात विशेषज्ञों के बीच ही तय होनी चाहिए कि टीकों का विकास और इस्तेमाल किस तरह से हो। औषधि विकास के साथ उसके जोखिम भी जुड़े हैं। भारत में हों या विश्व-स्तर पर हों इस काम के लिए संस्थाएं बनी हैं। हमें उनपर भरोसा करना होगा। पर जनता के भरोसे को तोड़ने या उसे भरमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। इस अभियान में एक मात्र मार्गदर्शक विज्ञान को ही रहने दें।  

Friday, January 1, 2021

2 जनवरी को होगा देश में टीकाकरण का पूर्वाभ्यास


 कोविड टीकाकरण शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे टीकाकरण शुरू करने के लिए 2 जनवरी को पूर्वाभ्यास करें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वे पूरी तरह तैयार हैं। इससे टीका आपूर्ति, शीत भंडारगृह शृंखला समेत भंडारण एवं लॉजिस्टिक्स के प्रबंधन में उनकी क्षमता का पता चल पाएगा। यह टीकाकरण विश्व का अब तक का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम होगा, जिसके लिए सरकार 96,000 टीका लगाने वाले लोगों को प्रशिक्षित कर चुकी है। टीके से संबंधित सवालों के समाधान के लिए राज्य एक हेल्पलाइन 104 शुरू कर रहे हैं। इस बात की संभावना है कि अगले एक-दो दिन में एस्ट्राजेनेका ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन को भारत में लगाने की अनुमति मिल जाएगी। 

 पूर्वाभ्यास का मकसद जमीनी स्तर पर को-विन एप्लीकेशन के उपयोग की व्यवहार्यता का आकलन करना और टीकाकरण कार्यक्रम की योजना एïवं क्रियान्वयन के बीच तालमेल को जांचना है। इससे राज्यों के चुनौतियों को चिह्नित कर पाने और वास्तविक टीका उपलब्ध कराए जाने से पहले खामियों को दूर करने की संभावना है। यह पूर्वाभ्यास इसलिए भी किया जा रहा है ताकि विभिन्न स्तरों के कार्यक्रम प्रबंधकों में आत्मविश्वास पैदा किया जा सके। सभी राज्यों की राजधानियों में शनिवार को तीन टीकाकरण स्थलों पर पूर्वाभ्यास होगा। इन स्थलों में कुछ उन दुर्गम जगहों पर हो सकते हैं, जहां लॉजिस्टिक उपलब्धता कमजोर है। 

 स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में टीकाकरण शुरू करने के लिए 29,000 कोल्ड टेन पॉइंट, 240 वॉक-इन कूलर, 70 वॉइ-इन फ्रीजर, 45,000 आइस-लाइंड रेफ्रिजरेटर, 41,000 डीप फ्रीजर और 300 सोलर रेफ्रिजरेटर की जरूरत होगी।  स्वास्थ्य मंत्रालय कह चुका है कि कुल 2.39 लाख टीका देने वालों में से 1.54 लाख वे ऑग्जिलियरी नर्सेज ऐंड मिडवाइव्स (एएनएम) होंगी, जो व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम में टीके लगाती हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के परिचालन दिशानिर्देशों के मुताबिक प्रभारी चिकित्सा अधिकारी प्रत्येक टीकाकरण स्थल  पर 25 जांच लाभार्थियों- स्वास्थ्य कर्मियों की पहचान करेगा और उनका डेटा को-विन ऐप में अपलोड किया जाएगा। पूर्वाभ्यास में सभी प्रस्तावित टीकाकरण स्थलों का भौतिक सत्यापन भी शामिल होगा ताकि पर्याप्त स्थान, लॉजिस्टिक इंतजाम, इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली एवं सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उदाहरण के लिए प्रत्येक राज्य में तीन मॉडल टीकाकरण स्थलों में 'तीन कमरों के सेट-अप' में अलग-अलग प्रवेश और निकास बिंदु होने चाहिए और जागरूकता गतिविधियों के लिए बाहर पर्याप्त जगह होनी चाहिए। राज्यों को टीकाकरण टीम चिह्नित करनी होंगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें मानक परिचालन प्रक्रिया की जानकारी है और टीका लगाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इस पूर्वाभ्यास में टीकाकरण के बाद किसी प्रतिकूल स्थिति को संभालने पर भी अहम ध्यान दिया जाएगा।

पूरी रिपोर्ट पढ़ें बिजनेस स्टैंडर्ड में 

Saturday, December 12, 2020

कोरोना महामारी ने खोल कर रख दी वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों की पोल, गारंटी नहीं कि वैक्सीन के बाद नहीं होगा संक्रमण


सन 2020 में जब दुनिया को महामारी ने घेरा तो पता चला कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं। निजी क्षेत्र ने मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया। यह केवल भारत या दूसरे विकासशील देशों की कहानी नहीं है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे धनवान देशों का अनुभव है।

प्रमोद जोशी

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूंजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूंजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Sunday, December 6, 2020

वैक्सीन से जुड़े सवाल

सन 2020 को इतिहास के निर्ममतम वर्षों में गिना जाएगा। इस वर्ष का प्रारंभ वैश्विक महामारी के साथ हुआ था और अब इसका अंत उस महामारी के खिलाफ लड़ाई में विजय के पहले कदम के रूप में हो रहा है। हाल में खबर थी कि ब्रिटेन ने फायज़र की वैक्सीन को स्वीकृति दे दी है। अब हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अगले कुछ हफ्तों के भीतर भारत में भी वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी।

उधर खबर यह भी है कि फायज़र ने भारत के ड्रग कंट्रोलर से अपनी वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति माँगी है। यानी ब्रिटेन के बाद भारत दुनिया का दूसरा देश है, जिससे फायज़र ने अनुमति माँगी है और यदि यह अनुमति मिली, तो पश्चिमी देशों में विकसित वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाला भारत दुनिया में दूसरा देश बन जाएगा।

वैक्सीन के बन जाने से क्या समस्या का पूरी तरह समाधान हो जाएगा? कितने लोगों तक वैक्सीन पहुँच पाएंगी? इनकी कीमत क्या होगी? जनता तक कौन इन्हें पहुँचाएगा? कितनी प्रभावशाली होंगी ये वैक्सीन? कितने समय तक इसका असर रहेगा? क्या पूरी दुनिया के लोगों को वैक्सीन लगानी होगी? नहीं, तो फिर कितने लोगों को इन्हें लगाया जाएगा?

Friday, December 4, 2020

भारत में भी मिलने वाली है वैक्सीन को मंजूरी

 


सब कुछ ठीक रहा तो इस महीने के अंत या जनवरी की शुरुआत में देश की नियामक संस्था कोरोनावायरस टीके के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे देगी।  देश में विभिन्न टीकों का परीक्षण अभी अंतिम चरण में चल रहा है। इसकी जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बुधवार को दी। (उधर प्रधानमंत्री ने आज सर्वदलीय बैठक में भी इस बात की पुष्टि की कि भारत में वैक्सीन को मंजूरी मिलने वाली है)।

गुलेरिया ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि अल्पावधि में टीका सुरक्षित है। उन्होंने कहा, 'कई आंकड़े उपलब्ध हैं जो इसकी पुष्टि करते हैं कि टीका बेहद सुरक्षित है। टीके से संबंधित सुरक्षा और असर से किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। परीक्षण के दौरान तकरीबन 70 से 80 हजार स्वयंसेवकों को टीका लगाया गया है लेकिन अब तक कोई गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखा है।'

रूस दुनिया का पहला देश है जिसने इस साल अगस्त में कोरोनावायरस के टीके स्पूतनिक-5 के आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। हालांकि तब तक स्पूतनिक के तीसरे चरण का परीक्षण भी पूरा नहीं हुआ था। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सरकार को अगले हफ्ते से व्यापक स्तर पर देश में टीकाकरण शुरू करने का आदेश दिया है।

Monday, November 30, 2020

वैक्सीन तो तैयार हैं, हमें कब मिलेंगी?

गुजरे कुछ दिनों में कोविड-19 के अमेरिका और यूरोप में प्रसार की खबरें मिलीं, वहीं भारत की राजधानी दिल्ली में फिर से संक्रमणों की बाढ़ है। फिर भी दुनिया में आशा की किरणें दिखाई पड़ी हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है, जब दुनिया में किसी महामारी के फैलने के एक साल के भीतर उसकी वैक्सीन तैयार हो गई है। मॉडर्ना, फायज़र और एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि ने दावा किया है कि उनकी वैक्सीनें लगभग तैयार होने की स्थिति में हैं और वे सुरक्षित और असरदार है।

भारत सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट से एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोवीशील्ड वैक्सीन की 50 से 60 करोड़ खुराकें खरीदने की योजना बनाई है। एक व्यक्ति को दो खुराकें लगेंगी। इसका मतलब है कि भारत ने पहले दौर में 25-30 करोड़ लोगों के टीकाकरण की योजना बनाई है। जैसे ही ब्रिटिश नियामक संस्था इस वैक्सीन को अनुमति देगी, भारतीय नियामक भी इसे स्वीकृति दे देंगे। उम्मीद है कि जनवरी के अंत या फरवरी में यह वैक्सीन भारत को मिल जाएगी।

Tuesday, November 24, 2020

वैक्सीन-प्रभावोत्पादकता की बहस में अभी पड़ना उचित नहीं


भारत में बन रही एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता को लेकर आज एक खबर दो तरह से पढ़ने को मिली। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड है कि यह वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावोत्पादक है। टाइम्स के हिंदी संस्करण नवभारत टाइम्स ने भी यह बात लिखी है, जबकि उसी प्रकाशन समूह के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने लिखा है कि यह वैक्सीन 90 फीसदी के ऊपर प्रभावोत्पादक है। खबरों को विस्तार से पढ़ें, तो यह बात भी समझ में आती है कि एस्ट्राजेनेका की दो खुराकें लेने के बाद उसकी प्रभावोत्पादकता 90 फीसदी के ऊपर है। केवल एक डोज की प्रभावोत्पादकता 70 फीसदी है। तमाम टीके एक से ज्यादा खुराकों में लगाए जाते हैं। छोटे बच्चों को चार पाँच साल तक टीके और उनकी बूस्टर डोज लगती है। इसकी डोज कितनी होगी, इसके बारे में इंतजार करें। इसमें दो राय नहीं कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विवि की वैक्सीन पर्याप्त कारगर होगी। अभी उसके पूरे विवरण तो आने दें। इस वैक्सीन का निष्कर्ष है कि यह छोटी डोज़ में दो बार देने पर बेहतर असरदार है। जो परिणाम मिले हैं, उनसे पता लगा है कि जिन लोगों को पहली डोज कम और दूसरी डोज पूरा दी गई उनके परिणाम 90 फीसदी के आसपास हैं और जिन्हें दोनों डोज पूरी दी गईं उनका असर 62 फीसदी के आसापास है। इसके पीछे के कारणों का पता तब लगेगा, जब इसके पूरे निष्कर्ष विस्तार से प्रकाशित होंगे। भारत में तो अभी तीसरे चरण के परीक्षण चल ही रहे हैं। 
बहरहाल महत्वपूर्ण खबर यह है कि भारत में वैक्सीन की पहली खुराक एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों को दी जाएगी। मुझे इन खबरों के पीछे हालांकि साजिश कोई नहीं लगती, पर कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा होता है कि फायज़र की वैक्सीन तो 95 फीसदी और मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसदी असरदार है, तो यह कम असरदार क्यों हो? पहले तो यह समझना चाहिए कि यह दवा के असर से जुड़ी खबर नहीं है, बल्कि उस डेटा का विश्लेषण है, जो टीके के दूसरे और तीसरे चरण के बाद जारी हुआ है। इसमें देखा यह जाता है कि कुल जितने हजार लोगों को टीके लगे, उनमें से कितनों को कोरोना का संक्रमण हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार टीका यदि 50 फीसदी या उससे ज्यादा लोगों को बीमारी से रोकता है, तो उसे मंजूरी मिल जानी चाहिए।