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Sunday, November 14, 2021

कांग्रेस पर भारी पड़ेगी ‘हिंदू-विरोधी’ छवि


कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद सुलझे हुए और समझदार नेता माने जाते हैं
, पर उन्होंने अपनी नई किताब में हिंदुत्व की तुलना इस्लामी आतंकी संगठनों बोको हरम और इस्लामिक स्टेट से करके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आग में घी डालने का काम किया है। इस बहस में कांग्रेस पार्टी को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुँचेगा। इस किस्म की बातों से रही-सही कसर पूरी हो जाएगी। पार्टी की हिंदू-विरोधी छवि को ऐसे विचारों से मजबूती मिलती है। बोको हरम और तालिबान की तुलना बीजेपी से करके आप कुछ हासिल नहीं करेंगे, बल्कि अपने बचे-खुचे आधार को खो देंगे। ऐसी बातों को चुनौती दी जानी चाहिए, खासतौर से उन लोगों की ओर से, जो खुद को धार्मिक कट्टरपंथी नहीं मानते हैं।  

केवल हिंदू-कट्टरता

सलमान खुर्शीद को राहुल गांधी का समर्थन मिला है। दोनों राजनीतिक-हिंदुत्व को सनातन-हिंदू धर्म से अलग साबित करना चाहते हैं। व्यावहारिक सच यह है कि सामान्य व्यक्ति को दोनों का अंतर समझ में नहीं आता है। जब आप हिंदुत्व का नाम लेते हैं, तब केवल नाम ही नहीं लेते, बल्कि सनातन-धर्म से जुड़े तमाम प्रतीकों, रूपकों, परंपराओं, विचारों, प्रथाओं का एकमुश्त मजाक उड़ाते हैं। वामपंथी इतिहास लेखकों ने इसकी आधार भूमि तैयार की, जिन्हें पचास के दशक के बाद कांग्रेसी-व्यवस्था में राज्याश्रय मिला था। एक समय तक कट्टरपंथ के नाम पर हर प्रकार की धार्मिक कट्टरताओं का विरोध होता था, पर अब धार्मिक कट्टरता का अर्थ केवल हिंदू-कट्टरता रह गया है। इससे पैदा हुए ध्रुवीकरण का राजनीतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला है।

कांग्रेसी-अंतर्विरोध

स्वतंत्रता के पहले देश में कांग्रेस की छवि हिंदू और मुस्लिम लीग की मुस्लिम पार्टी के रूप में थी। स्वतंत्रता के बाद पार्टी के अंतर्विरोध उभरे। सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू के मतभेद जगजाहिर हैं। पुरुषोत्तम दास टंडन और नेहरू के विवाद को फिर से पढ़ने की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस की ही उस धारा को अपने साथ लिया है, जो हिंदू-भावनाओं को अपने साथ लेकर चलना चाहती थी। इस वैचारिक टकराव को मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण, शाहबानो और अयोध्या प्रकरणों से हवा मिली। ऐसे सवालों की गंभीरता पर 1947 से पहले विचार किया जाना चाहिए था, जिससे न केवल बचने की कोशिश की गई, बल्कि भारतीय इतिहास-लेखन को सायास बड़ा मोड़ दिया गया।