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Friday, December 16, 2022

सुरक्षित और असीमित ऊर्जा के दरवाजे खुले-2


अमेरिका का प्रयोग इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें कम ऊर्जा लगाकर ज्यादा ऊर्जा की प्राप्ति की गई है। पर इसके पहले भी ऐसे प्रयोग होते रहे हैं। इन्हें कृत्रिम सूर्य कह सकते हैं। पिछले साल 30 दिसंबर को चीन ने भी ऐसा प्रयोग करके दिखाया था। चीन के हैफेई में स्थित चीन के इस न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर या कृत्रिम सूर्य से 1,056 सेकंड या करीब 17 मिनट तक 7 करोड़ डिग्री सेल्सियस ऊर्जा निकली थी। भारत में भी इस दिशा में काम हो रहा है।

जिज्ञासुओं का प्रश्न होता है कि संलयन ऊर्जा की खोज किसने कब की?  संलयन ऊर्जा की खोज स्वयं प्रकृति ने की। बिग-बैंग के करीब 10 करोड़ साल बाद, बहुत ही अधिक घनत्व एवं ताप वाले,एक दैत्याकार गैसीय गोले में, जो कि हाइड्रोजन गैस के बादलों से बना था, पहली संलयन क्रिया हुई और इस तरह पहले सितारे का जन्म हुआ। इसके बाद यह प्रक्रिया लगातार चलती रही और लाखों सितारों का जन्म हुआ और आज भी हो रहा है।

प्राकृतिक ऊर्जा

ब्रह्मांड में संलयन, अन्य सभी अवस्थाओं (ठोस, द्रव एवं गैस) में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। सौर-परिवार में, जहाँ हम रहते हैं, कुल द्रव्यमान का लगभग 99.86%, संलयन अवस्था में है। 20वीं सदी की शुरूआत तक सूर्य की तेज़ चमक और तारों की दिल लुभावनी झिलमिलाहट ऐसे आश्चर्य थे, जिनकी व्याख्या करना संभव नहीं था। 1920में एक अंग्रेज वैज्ञानिक आर्थर ऐडिंगटन ने सबसे पहले यह बताया कि तारे अपनी असीमित ऊर्जा हाइड्रोजन के हीलियम में संलयन द्वारा प्राप्त करते हैं।

ऐडिंगटन का सिद्धांत 1926 में उनकी सितारों की आंतरिक संरचना रचना में प्रकाशित हुआ जिसने आधुनिक सैद्धांतिक खगोल भौतिकी की नींव रखी। जिस सिद्धांत एवं विधियों की अवधारणा ऐडिंगटन ने की, उन्हें सही तरीके से एक अन्य वैज्ञानिक हैंस बैथ ने समझाया। 1939 में हैंस बैथ (1906-2005) के  प्रोटोन-प्रोटोन चक्र सिद्धांत ने इस रहस्य को खोला। बैथ को उनके कार्य 'स्टैलर न्यूक्लियोसिंथेसिस' पर 1967 में नोबेल पुरस्कार मिला।

Thursday, December 15, 2022

सुरक्षित और असीमित ऊर्जा के दरवाजे खुले-1

लिवरमोर कैलीफोर्निया की प्रयोगशाला

अमेरिका के वैज्ञानिकों ने संलयन ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त करने की घोषणा की है। हालांकि व्यावसायिक रूप से इस पद्धति से बिजली बनाने में अभी कई दशक लगेंगे, पर भविष्य में यह ऊर्जा का सबसे विश्वसनीय स्रोत साबित होगा। हालांकि यह बिजली भी परमाणु के नाभिकीय में छिपे ऊर्जा स्रोत पर आधारित होगी, पर अभी प्रचलित विखंडन पर आधारित नाभिकीय ऊर्जा से एकदम अलग और सुरक्षित होगी। यह ऊर्जा उसी प्राकृतिक सिद्धांत पर आधारित होगी, जो सूर्य और अंतरिक्ष में फैले तमाम नक्षत्रों के निरंतर प्रज्ज्वलन के कारण को बताता है।

अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने 13 दिसंबर, 2022 को कहा कि पहली बार-और कई दशकों के प्रयास के बाद-वैज्ञानिकों ने ऊर्जा प्राप्ति की प्रक्रिया में लगाई जाने वाली ऊर्जा से अधिक ऊर्जा प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है। कैलिफोर्निया में अमेरिकी सरकार की नेशनल इग्नीशन फैसिलिटी के शोधकर्ताओं ने पहली बार प्रदर्शित किया है, जिसे "फ्यूजन इग्नीशन" के रूप में जाना जाता है। इग्नीशन तब होता है जब एक संलयन प्रतिक्रिया बाहरी स्रोत से प्रतिक्रिया में डाली जा रही ऊर्जा से अधिक ऊर्जा पैदा करती है और आत्मनिर्भर हो जाती है।

अब सवाल हैं कि इसका विकास कितना महत्वपूर्ण है? और प्रचुर मात्रा में, स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने वाले संलयन का लंबे समय से प्रतीक्षित सपना कब पूरा होगा? विश्लेषकों का अनुमान है कि हम इस ऊर्जा के इस्तेमाल से बीस से तीस साल दूर है।

जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के परिणाम स्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। नक्षत्रों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हीलियम परमाणु का निर्माण।

दुनिया में नाभिकीय ऊर्जा प्राप्त करने की जो पद्धति इस समय प्रचलित है, वह फ़िज़न यानी विखंडन पर आधारित है। दोनों प्रक्रियाओं में ऊर्जा पैदा होती है, पर संलयन से प्राप्त ऊर्जा कहीं ज्यादा होती है और वह सुरक्षित भी होती है। भौतिक विज्ञानी दशकों से परमाणु ऊर्जा प्रौद्योगिकी पर शोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना ​​है कि यह पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का असीमित स्रोत हो सकता है।

संलयन का प्रक्रिया के लिए भी दुनिया में कम से कम दो तरीके अपनाए जा रहे हैं। दोनों तरीकों में फर्क केवल संलयन की स्थिति तैयार करने के लिए जिस उच्च तापमान की जरूरत है, उसके तरीके में फर्क है। लॉरेंस लिवरमोर फैसिलिटी में वैज्ञानिकों ने उस तापना को प्राप्त करने के लिए हाई इनर्जी लेज़र बीम्स का इस्तेमाल किया। इसे इनर्शियल फ्यूज़न का नाम दिया गया है। दूसरा तरीका फ्रांस में अपनाया जा रहा है, जिसे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपैरिमेंटल रिएक्टर या संक्षेप में ईटर या आइटर ITER कहा जाता है। इसमें बहुत शक्तिशाली मैग्नेटिक फील्ड का इस्तेमाल उच्च तापमान प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस कार्यक्रम में भारत भी शामिल है।