29 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के साथ खड़े होकर गज़ा में ‘शाश्वत शांति’ के लिए 20-सूत्री योजना पेश की थी. ट्रंप को यकीन है कि अब गज़ा में शांति स्थापित हो सकेगी, पर एक हफ्ते के भीतर ही इसकी विसंगतियाँ सामने आने लगीं हैं.
असल बात यह कि अभी यह योजना है, समझौता नहीं. योजना
के अनुसार, दोनों
पक्ष सहमत हुए, तो युद्ध तुरंत समाप्त हो जाएगा. बंधकों की
रिहाई की तैयारी के लिए इसराइली सेना आंशिक रूप से पीछे हट जाएगी. इसराइल की
‘पूर्ण चरणबद्ध वापसी’ की शर्तें पूरी होने तक सभी सैन्य अभियान स्थगित कर दिए
जाएँगे और जो जहाँ है, वहाँ बना रहेगा.
कुल मिलाकर यह एक छोटे लक्ष्य की दिशा में बड़ा
कदम है. इससे पश्चिम एशिया या फलस्तीन की समस्या का समाधान नहीं निकल जाएगा, पर
यदि यह सफल हुई, तो इससे कुछ निर्णायक बातें साबित होंगी. उनसे ‘टू स्टेट’ समाधान का रास्ता खुल भी सकता है, पर इसमें अनेक किंतु-परंतु जुड़े हैं.
हालाँकि हमास ने इसराइली बंधकों को रिहा करने पर
सहमति व्यक्त की है, लेकिन वे कुछ मुद्दों पर चर्चा करना
चाहते हैं. ट्रंप ने हमास के बयान को सकारात्मक माना है, लेकिन
अभी तक उनकी ‘बातचीत’ की माँग के बारे
में कुछ नहीं कहा है.
इसराइल ने कहा है कि ट्रंप की योजना के ‘पहले चरण’ के तहत गज़ा में सैन्य अभियान सीमित
रहेंगे, लेकिन उसने यह नहीं कहा है कि हमले पूरी तरह से बंद
हो जाएंगे या नहीं.
इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का कहना है कि यह योजना इसराइल के युद्ध उद्देश्यों के अनुरूप है, वहीं अरब और मुस्लिम नेताओं ने इस पहल का शांति की दिशा में एक कदम के रूप में स्वागत किया है. लेकिन एक महत्वपूर्ण आवाज़ गायब है-वह है फ़लस्तीनी लोगों के किसी प्रतिनिधि की.