सोशल मीडिया की
ताकत, उसकी सकारात्मक भूमिका और साथ ही उसके
नकारात्मक निहितार्थों पर इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट ने अच्छी
रोशनी डाली. हाल में दिल्ली के दंगों को लेकर सोशल मीडिया पर कड़वी, कठोर और हृदय विदारक टिप्पणियों की बाढ़ आई हुई थी. ऐसे में
प्रधानमंत्री के एक ट्वीट ने सबको चौंका
दिया. उन्होंने लिखा, 'इस रविवार को सोशल मीडिया
अकाउंट फेसबुक, ट्विटर,
इंस्टाग्राम और
यूट्यूब छोड़ने की सोच रहा हूं.' उनके इस छोटे से संदेश ने
सबको स्तब्ध कर दिया. क्या मोदी सोशल मीडिया को लेकर उदास हैं? क्या वे जनता से संवाद का
यह दरवाजा भी बंद करने जा रहे हैं? या बात कुछ और है?
इस ट्वीट के एक
दिन बाद ही प्रधानमंत्री ने अपने आशय को स्पष्ट कर दिया, पर एक दिन में कई तरह की सद्भावनाएं और दुर्भावनाएं बाहर आ
गईं. जब प्रधानमंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है, तब भी जो टिप्पणियाँ आ रही हैं उनमें सकारात्मक और
नकारात्मक दोनों तरह के दृष्टिकोण शामिल हैं. उनके समर्थक हतप्रभ थे और उनके
विरोधियों ने तंज कसने शुरू कर दिए. इनमें राहुल गांधी से लेकर कन्हैया कुमार तक
शामिल थे. कुछ लोगों ने अटकलें लगाईं कि कहीं मोदी अपना मीडिया प्लेटफॉर्म लांच
करने तो नहीं जा रहे हैं? क्या ऐसा तो नहीं कि अब
उनकी जगह अमित शाह जनता को संबोधित करेंगे?