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Wednesday, October 1, 2025

बिगड़ती विश्व-व्यवस्था और संयुक्त राष्ट्र


सितंबर के महीने में हर साल होने वाले संरा महासभा के सालाना अधिवेशन का राजनीतिक-दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं होता. अलबत्ता 190 से ऊपर देशों के शासनाध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि सारी दुनिया से अपनी बात कहते हैं, जिसमें राजनीति भी शामिल होती है.

भारत के नज़रिए से देखें, तो पिछले कई दशकों से इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों की कड़वाहट सामने आती रही है. भारत भले ही पाकिस्तान का ज़िक्र न करे पर पाकिस्तानी नेता किसी न किसी तरीके से भारत पर निशाना लगाते हैं.

यह अंतर दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है. दोनों देशों के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएँगे कि पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता है और भारत का वैश्विक-व्यवस्था पर.

इस वर्ष इस अधिवेशन पर हालिया सैनिक-टकराव की छाया भी थी। ऐसे में इन भाषणों पर सबकी निगाहें थी, पर इस बार अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण ने भी हमारा ध्यान खींचा, जिसपर आमतौर पर हम पहले ध्यान नहीं देते थे.

दक्षिण एशिया

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ और भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर के भाषणों में उस कड़वाहट का ज़िक्र था, जिसके कारण दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों में बना हुआ है. अलबत्ता जयशंकर ने भारत की वैश्विक भूमिका का भी ज़िक्र किया.

इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने मई में तनाव बढ़ने के दौरान पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन देने के लिए चीन, तुर्की, सऊदी अरब, क़तर, अजरबैजान, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राष्ट्र महासचिव सहित पाकिस्तान के ‘मित्रों और साझेदारों’ को धन्यवाद दिया.

उन्होंने एक से ज्यादा बार भारत का नाम लिया और यहाँ तक कहा कि पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध जीत लिया है और अब हम शांति जीतना चाहते हैं.

उनके इस दावे के जवाब में भारत के स्थायी मिशन की फ़र्स्ट सेक्रेटरी पेटल गहलोत ने 'राइट टू रिप्लाई' का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘तस्वीरों को देखें, अगर तबाह रनवे और जले हैंगर जीत है, तो पाकिस्तान आनंद ले सकता है.’

उन्होंने कहा, इस सभा ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बेतुकी नौटंकी देखी, जिन्होंने एक बार फिर आतंकवाद का महिमामंडन किया, जो उनकी विदेश नीति का मूल हिस्सा है.’

Sunday, September 30, 2018

पाकिस्तान से निरर्थक डिबेट

पाकिस्तान में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बेहतरी की जो उम्मीदें बन रहीं थीं, वे फिर धराशायी हुईं हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में दोनों विदेशमंत्रियों के भाषणों से यह साफ है। इस सालाना डिबेट से कुछ नहीं होने वाला। वस्तुत: पाकिस्तान को ज्यादा भाव देना बंद करना चाहिए। वह अपने अंतर्वरोधों से खुद गड्ढे में गिरेगा। अगले एक दशक में दुनिया का सीन बदलने जा रहा है। हमें उसके बारे में सोचना चाहिए। आतंकवाद हमारी बड़ी चिंता जरूर है, पर वह हमारी अकेली समस्या नहीं है। जबतक पाकिस्तान में सेना या 'डीप स्टेट' का बोलबाला है, उसके रुख में बुनियादी बदलाव नहीं होगा। महासभा की बैठक के हाशिए पर विदेश मंत्रियों की मुलाकात उम्मीद जरूर थी, पर इस किस्म की बैठकों के लिए भी न्यूनतम सौहार्द का माहौल होना चाहिए। वह नहीं है।

इमरान खान के पत्र की प्रतिक्रिया में भारत ने विदेशमंत्रियों की मुलाकात को स्वीकार कर भी लिया था, पर तीन पुलिसकर्मियों के अपहरण और उनकी हत्या और फिर बीएसएफ के एक जवान की गर्दन काटने की खबर आने के बाद देश में गुस्से की लहर दौड़ना स्वाभाविक था। इस धूर्तता का पता गत 24 जुलाई को पाकिस्तान के डाक-तार विभाग विभाग द्वारा जारी 20 डाक टिकटों की एक सीरीज से भी लगता है। इन डाक टिकटों में कश्मीर की गतिविधियों को रेखांकित किया गया है। इनमें एक डाक टिकट बुरहान वानी का स्वतंत्रता सेनानी के रूप में महिमामंडन करता है, जबकि भारत उसे आतंकवादी मानता है। ज़ाहिर है कि पाकिस्तान कश्मीर में अपनी गतिविधियों को सही मानता है। इन बातों को देखते हुए यदि भारत सरकार बातचीत की पहल करेगी, तो उसे देश की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा। पाकिस्तान कश्मीर में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाकर बातचीत का दबाव बनाना चाहता है। उसकी दिलचस्पी कश्मीर में है, सहयोग, सद्भाव और कारोबार में नहीं। बातचीत किसी न किसी स्तर पर हमेशा चलती है और भविष्य में भी चलेगी, पर उसका समारोह तभी मनेगा जब उसका माहौल होगा।

भाषणों की कड़वाहट बताती है कि रिश्तों में बेहतरी की उम्मीद निरर्थक है। अलबत्ता भारत को वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को बेहतर बनाना चाहिए। हम मजबूत नहीं होंगे, तो प्रतिस्पर्धी हमें आँखें दिखाएंगे। सुषमा स्वराज ने पर्यावरण रक्षा के वैश्विक प्रयासों और उनमें भारत की भूमिका का जिक्र किया और संरा सुरक्षा परिषद में अपनी दावेदारी का भी। उन्होंने कहा, पाकिस्तान न सिर्फ आतंकवाद को बढ़ावा देता है बल्कि वह इसे नकारता भी है। पाकिस्तानी विदेशमंत्री ने कहा, शांति तब तक नहीं होगी जब तक संयुक्त राष्ट्र के समझौतों के तहत समाधान नहीं होता। सुषमा स्वराज ने कहा, 91/1 का मास्टरमाइंड तो मारा गया, लेकिन 26/11 का मांस्टरमाइंड पाकिस्तान में छुट्टा घूम रहा है। सवाल है कि दुनिया क्या चाहती है? अमेरिका पर हमला आतंकवाद, तो हमपर हमला क्या है? जैशे मोहम्मद और लश्करे तैयबा क्या हैं? हम चाहते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक संधि हो। दुनिया आतंकवाद का रोना तो रोती है, पर उसकी परिभाषा तक तय नहीं करती। रास्ता एक है, पहले दुनिया हमारा महत्व माने, फिर आगे बात करें।