दो साल पहले मेरे पूर्व सहयोगी हाशमी जी ने जब ‘आवाज़-द वॉयस’ के बारे में बताया, तब एकबारगी मुझे समझने में देर लगी. वजह यह थी कि मैं समझता हूँ कि इस दौर के ज्यादातर मीडिया हाउस आत्यंतिक (एक्स्ट्रीम) दृष्टिकोण को अपनाते हैं. वे खुद को तेज़, बहादुर और लड़ाकू साबित करने की होड़ में हैं.
मर्यादा, संज़ीदगी, शालीनता और संतुलित दृष्टिकोण ‘दब्बू-नज़रिया’ मानने का चलन बढ़ा है. सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में मेल-मिलाप की जगह उत्तेजना और अतिशय सनसनी ने ले ली है. इस लिहाज़ से ‘आवाज़’ का यह प्रयोग मेरे लिए नया और स्फूर्ति से भरा था.