नाइजर की राजधानी
नियामे में
27-28 नवंबर को ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन
(ओआईसी) के विदेश मंत्रियों के 47वें सम्मेलन में कश्मीर के
उल्लेख से दो बातें साबित हुईं। एक, इस्लामिक देश आसानी से कश्मीर से मुँह मोड़
नहीं पाएंगे, भले ही वे ऐसा चाहते हों। दूसरे, कश्मीर मामले को, संयुक्त राष्ट्र में
उठाने में पाकिस्तान भले ही विफल रहा हो, पर ओआईसी का समर्थन पाने में कामयाब है।
इससे पहले ओआईसी
के कश्मीर कांटैक्ट ग्रुप की जून में हुई बैठक में भी भारत की आलोचना की गई थी।
उसे पाकिस्तान की बड़ी सफलता नहीं माना गया, पर नियामे सम्मेलन को पाकिस्तान सरकार,
कम से कम अपने देश में, उपलब्धि के रूप
में प्रचारित कर रही है। ओआईसी विदेश मंत्रियों का 2021 में सम्मेलन पाकिस्तान में
होगा। उसमें पाकिस्तान इस विषय को बेहतर तरीके से उठाने की उम्मीद रखता है। इस्लामिक
देशों के बीच भी गोलबंदी हो रही है। एक साल बाद की स्थितियों के बारे में अभी कुछ
कहना कठिन है।
फलस्तीन और
कश्मीर
सच यह भी है कि इस्लामिक
देशों के बीच भारतीय राजनय ने पैठ जमाई है, पर उसके चमत्कारिक परिणाम नहीं हैं।
सिवाय इसके कि पिछले साल मार्च में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अबू
धाबी के सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया और पाकिस्तान के विरोध की
अनदेखी की गई। हाल में सऊदी अरब, यूएई और बहरीन के साथ भारत के रिश्तों में सुधार हुआ
है। नियामे सम्मेलन में एकबारगी ओआईसी का असमंजस झलका भी था। सम्मेलन के ठीक पहले
आयोजकों ने कहा था कि सम्मेलन का एजेंडा कश्मीर नहीं है, पर सम्मेलन के पहले दिन
ही सऊदी अरब, तुर्की और नाइजर के विदेश मंत्रियों ने अपने वक्तव्यों में कश्मीर का
जिक्र किया। प्रस्तावों में भी भारतीय कार्रवाइयों की आलोचना की गई।