विडंबना है कि जब देश के 17 सरकारी बैंकों के कंसोर्शियम ने सुप्रीम कोर्ट में रंगीले उद्योगपति विजय माल्या के देश छोड़ने पर रोक लगाने की मांग की तब तक माल्या देश छोड़कर बाहर जा चुके थे. अब सवाल इन बैंकों से किया जाना चाहिए कि उन्होंने क्या सोचकर माल्या को कर्जा दिया था? हाल में देश के 29 बैंकों से जुड़े कुछ तथ्य सामने आए तो हैरत हुई कि यह देश चल किस तरह से रहा है. विजय माल्या पर जो रकम बकाया थी, उसकी वसूली शायद अब कभी नहीं हो सकेगी. कर्ज रिकवरी न्यायाधिकरण ने जिस राशि को रोका है वह ऊँट के मुँह में जीरे की तरह है. अफसोस इस बात का है कि व्यवस्था बहुत देर से जागी है. अपराधी आसानी से निकल कर भाग गया. साबित यह हुआ कि बीमार माल्या नहीं हमारे बैंक है.