प्रवासी मजदूरों की बदहाली से जुड़ा एक वीडियो इन दिनों वायरल हुआ है, जिसमें एक स्त्री की लाश के पास उसकी छोटी सी बच्ची चादर खींच रही है. यह हृदय विदारक वीडियो किसी के भी मन को विह्वल कर जाएगा. ट्विटर पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं. ज्यादातर प्रतिक्रियाएं दया और करुणा से भरी हैं. पर यह मामला करुणा से ज्यादा हमारे विवेक को झकझोरने वाला होना चाहिए. ऐसा कैसे हो गया? क्या इनके आासपास लोग नहीं थे? क्या उस महिला को पीने का पानी देने वाला भी कोई नहीं था?
दया और करुणा से भरी प्रतिक्रियाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाएं राजनीतिक नेताओं की हैं. किसी ने बच्चों की मदद की पेशकश की. उन्हें पालने-पोसने की जिम्मेदारी ली. अच्छी बात है, पर सवाल अपनी जगह है. इस मदद को पाने के लिए एक माँ को बदहाली में मरना होता है. क्या आपकी राजनीति इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है? ऐसी मदद का दशमांश भी सामान्य समय में मिल गया होता, तो शायद उसकी मौत नहीं होती. ऐसी परिस्थितियाँ क्यों पैदा हुईं? परिस्थितियों का लाभ उठाने वाले तमाम हाथ हैं, पर बुनियादी सवाल का जवाब देने कोई आगे नहीं आता. क्यों? जो जवाब आएंगे भी वे ज्यादातर राजनीतिक हैं. शायद यही वजह है कि आज तमाम कहानियाँ हमारे सामने हैं, जिनमें ज्योति की कहानी भी एक है, जो पीपली लाइव की याद दिला रही है. हमारी करुणा और दया प्रचार चाहती है. हम बुनियादी सवालों पर जाना ही नहीं चाहते.