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Sunday, July 23, 2023

वीभत्स वीडियो और शर्मसार देश


सिर्फ एक वीडियो ने देश की अंतरात्मा को जगा दिया। प्रधानमंत्री को बोलने को मजबूर कर दिया और सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई करने की चेतावनी दे दी। मणिपुर में 3 मई को शुरू हुई हिंसा के जिस तरह के वीभत्स विवरण सामने आ रहे हैं, उनसे किसी भी देशवासी को शर्म आएगी। पिछले ढाई महीने में शायद ही कोई दिन रहा हो जब इस राज्य के किसी इलाक़े में हिंसक झड़प, हत्या या आगज़नी नहीं हुई हो, पर गत 19 जुलाई को सोशल मीडिया पर दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न के विचलित करने वाले वीडियो के सामने आने के बाद यह वितृष्णा पराकाष्ठा पर पहुँच गई है। एकसाथ कई तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। क्या यह केवल कुकी और मैतेई समुदायों के बीच की सामुदायिक हिंसा है या इसके पीछे किसी की कोई योजना है? बर्बरता दोनों तरफ से हुई है और कई तरह के वीडियो वायरल हो रहे हैं। कौन है इसके पीछे? यह हिंसा रुक क्यों नहीं रही? राज्य सरकार क्या सोई हुई है? केंद्र खामोश क्यों है? अदालतें क्या कर रही है वगैरह। इस वीडियो के आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने बोलने में इतनी देर क्यों की? वे ऐसे प्रकरणों पर बोलते क्यों नहीं?  वे भारतीय मीडिया से बात क्यों नहीं करते?  उधर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा, कोई कुछ नहीं करेगा, तो हमें कोई कदम उठाना होगा। क्या कदम उठा सकती है अदालत? अदालत ने कहा है कि वह इस मामले में 28 जुलाई को सुनवाई करेगी।

राजनीतिक रंग

ज्यादातर राजनीतिक दलों ने अपने-अपने नज़रिए से टिप्पणी की है, बल्कि इस वीडियो के वायरल होने की तारीख बता रही है कि इसके पीछे कोई राजनीतिक-दृष्टि है। वर्ना 4 मई की घटना के वीडियो को प्रकट होने में ढाई महीने क्यों लगे? कौन था, जिसे संसद के सत्र का इंतज़ार था?  किसी ने कहा इंटरनेट पर पाबंदी थी, इसलिए वीडियो वायरल नहीं हुआ। वस्तुतः सरकारी अधिसूचना के अनुसार राज्य में 20 जुलाई के दिन में तीन बजे तक इंटरनेट पर रोक थी। वायरल तो वह रोक के दौरान ही हुआ। उसके पहले भी मणिपुर के वीडियो सोशल मीडिया पर आ ही रहे थे। खबरें आ ही रही थीं और इतने महत्वपूर्ण वीडियो को तो राज्य के बाहर जाकर भी अपलोड किया जा सकता था। बहरहाल जो भी था। वीडियो के प्रकट होते ही सरकार ने मुख्य अभियुक्त की पहचान कर ली और उसे गिरफ्तार भी कर लिया। तभी क्यों नहीं पकड़ा, जब घटना की खबर मिली थी? यदि यह दो समुदायों के टकराव का मामला है, तो मुख्य अभियुक्त के गाँव की महिलाओं ने जो उसके मैतेई समुदाय से ही आती हैं, उसके घर को क्यों फूँका?  इस हिंसा में कोई एक पक्ष पीड़ित नहीं है। कुकी और मैतेई, दोनों ही पक्ष अत्याचार झेल रहे हैं। दोनों समुदायों के लोगों को ज़िंदा जलाए जाने के भी मामले सामने आए हैं। बताया जाता है कि इससे भी ज्यादा भयावह वीडियो लोगों के पास हैं। बहरहाल यह वीडियो बेहद शर्मनाक है और इस कृत्य की निंदा होनी चाहिए।

Sunday, June 4, 2023

पूर्वोत्तर की चुनौती: मणिपुर-हिंसा


मणिपुर में एक महीने से चल रही हिंसा की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि गृहमंत्री अमित शाह को खुद वहाँ जाकर स्थिति पर नियंत्रण करने के निर्देश देने पड़े। उन्होंने अलग
-अलग जनजातियों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से बातचीत की है, पर दीर्घकालीन समाधान एक-दो दिनों में नहीं आते। उसके लिए पहले माहौल को बनाना होगा। यह हिंसा देश की बहुजातीय पहचान और सांस्कृतिक-बहुलता के लिए खतरनाक है। इसका राजनीतिक इस्तेमाल और भी खतरनाक है। राज्य के पाँच जिलों में जितनी तेजी से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ, लोगों की जान गई, घरों, चर्चों, मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई, वह राज्य में लंबे अर्से से चली आ रही पहाड़ी और घाटी की पहचान के विभाजन का नतीजा है। प्रशासनिक समझदारी से उसे टाला जा सकता था।

पक्षपात का आरोप

इस वक्त सबसे ज्यादा सवाल राज्य सरकार की भूमिका को लेकर उठाए जा रहे हैं। अमित शाह ने विभिन्न वर्गों और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान कहा कि राज्य में शांति बहाल करना सरकार की सबसे पहली प्राथमिकता है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का दावा है कि स्थिति को नियंत्रण में कर लिया गया है और 20 हज़ार के क़रीब लोगों को हिंसाग्रस्त इलाकों से निकालकर शिविरों में पहुंचा दिया गया है। राज्य सरकार ने तत्परता और समझदारी से काम किया होता तो यह धारणा जन्म नहीं लेती कि वह एक खास समुदाय की हिमायती है। ‘ड्रग्स के खिलाफ युद्ध’ से प्रेरित होकर सरकार ने अति उत्साह में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया, जिसमें कुकी समुदाय के गाँव प्रभावित हुए थे। भाजपा के कुछ आदिवासी विधायकों ने इस पक्षपात का मुद्दा उठाया था और नेतृत्व में बदलाव की मांग भी की थी।

अतिक्रमण-विरोधी अभियान

मणिपुर सरकार ने फ़रवरी में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था। लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद 3 मई से स्थिति बेकाबू हो गई, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को जनजातीय एकता मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान कई जगह हिंसा हुई। यह मार्च मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने के प्रयास के विरुद्ध हुआ था। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे, जिसमें ग़ैर-जनजाति मैती समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। यह शिकायत, कि मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर पहाड़ी आदिवासी समुदायों के आरक्षण लाभों को काम कर देगा, एक सीमा तक ठीक लगता है। पर उनकी यह चिंता सही नहीं है कि इससे पारंपरिक भूमि स्वामित्व बदल जाएगा। आदिवासी नेताओं ने घाटी विरोधी भावनाओं को भड़काने में जमीन खोने के दाँव का इस्तेमाल किया है।

Monday, May 8, 2023

प्रशासनिक समझदारी से टाली जा सकती थी मणिपुर की हिंसा


मणिपुर में हुई हिंसा चिंतनीय स्तर तक बढ़ने के बाद हालांकि रुक गई है, पर उससे हमारे बहुल समाज की पेचीदगियाँ उजागर हुई हैं। यह हिंसा देश की बहुजातीय पहचान और सांस्कृतिक-बहुलता के लिए खतरनाक है।  राज्य के पांच जिलों में जितनी तेजी से बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ, लोगों की जान गई, घरों, चर्चों, मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई, वह राज्य में लंबे अर्से से चली आ रही पहाड़ी और घाटी की पहचान के विभाजन का नतीजा है। प्रशासनिक समझदारी से उसे टाला जा सकता था। ऐसा नहीं लगता कि इस हिंसा के पीछे राजनीति है, बल्कि यह हिंसा राजनीतिक नेतृत्व की कमी को बता रही है। इसमें जनता के दो समूह आपस में लड़ रहे हैं। 

मणिपुर सरकार ने फ़रवरी में संरक्षित इलाक़ों से अतिक्रमण हटाना शुरू किया था, तभी से तनाव था। लोग सरकार के इस रुख़ का विरोध कर रहे थे, लेकिन मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद 3 मई से स्थिति बेकाबू हो गई, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को जनजातीय एकता मार्च निकाला। इस मार्च के दौरान कई जगह हिंसा हुई। यह मार्च मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने के प्रयास के विरुद्ध हुआ था। हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफ़ारिश को लागू करे, जिसमें ग़ैर-जनजाति मैती समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।

आदिवासी समूह इस मांग का विरोध कर रहे हैं। मैती समुदाय के सभी वर्गों ने भी समान रूप से आदिवासी का दर्जा देने वाली माँग का समर्थन नहीं किया है। यह शिकायत, कि मैती समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर पहाड़ी आदिवासी समुदायों के आरक्षण लाभों को काम कर देगा, एक सीमा तक ठीक लगता है। पर उनकी यह चिंता सही नहीं है कि इससे पारंपरिक भूमि स्वामित्व बदल जाएगा। आदिवासी नेताओं ने घाटी विरोधी भावनाओं को भड़काने में जमीन खोने के दाँव का इस्तेमाल किया है।