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Saturday, June 5, 2021

दुधारी तलवार के जोखिम

चाकू डॉक्टर के हाथ में हो, तो वह जान बचाता है। गलत हाथ में हो, तो जान ले लेता है। सोशल मीडिया दुधारी चाकू है। कश्मीरी डॉक्टरों का एक समूह वॉट्सएप के जरिए हृदय रोगों की चिकित्सा के लिए आपसी विमर्श करता है। वहीं आतंकी गिरोह अपनी गतिविधियों को चलाने और किशोरों को भड़काने के लिए इसका सहारा लेते हैं। गुजरे वर्षों में असम, ओडिशा, गुजरात, त्रिपुरा, बंगाल, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से खौफनाक आईं। झूठी खबरों से उत्तेजित भीड़ ने निर्दोष लोगों की हत्याएं कर दीं-मॉब लिंचिंग।

वर्षों पहले ट्विटर ने पाकिस्तानी संगठन लश्करे तैयबा के अमीर हाफिज सईद का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया। उनके तीन नए अकाउंट तैयार हो गए। आईएस के एक ट्वीट हैंडलर की बेंगलुरु में गिरफ्तारी के बाद पता लगा कि ‘साइबर आतंकवाद’ का खतरा उससे कहीं ज्यादा बड़ा है, जितना सोचा जा रहा था। दुनिया एक तरफ उदात्त मानवीय मूल्यों की तरफ बढ़ रही है, तो दूसरी तरफ कट्टरपंथी संकीर्णताओं के ज्वालामुखी के मुँह भी खुल रहे हैं। 

बिचौलियों का उदय

सूचना-प्रसारण दुनिया का शुरूआती औद्योगिक उत्पाद है। सन 1454 में मूवेबल टाइप के आविष्कार के फौरन बाद अखबारों, पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन शुरू हो गया था। उसी दौरान यूरोप में साक्षरता बढ़ी जैसा आज हमारे यहाँ हो रहा है। पुराने मीडिया में लेखक-संवाददाता और पत्रकार अपने पाठक को कुछ परोसते थे। सोशल मीडिया पब्लिक का मीडिया है। उसमें पत्रकार गायब है और साथ में गायब है मॉडरेशन। इसमें गाली-गलौज है, अच्छी जानकारियाँ भी हैं और झूठी बातें भी।

Thursday, December 12, 2019

कैसा होगा भारत का डेटा संरक्षण कानून


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 4 दिसम्बर को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2019 को अपनी मंजूरी दे दी. यह विधेयक 11 दिसंबर को संसद में पेश कर दिया गया है. इस बिल के जरिए सार्वजनिक और प्राइवेट कंपनियों के लिए निजी डेटा की प्रोसेसिंग [pj1] को लेकर कानून बनाने का उद्देश्य है. विधेयक के पास हो जाने के बाद भारतीय विदेशी कंपनियों को व्यक्तियों के बारे में प्राप्त व्यक्तिगत जानकारियों के इस्तेमाल को लेकर कुछ मर्यादाओं का पालन करना होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार घोषित किया था, पर अभी तक देश में व्यक्तिगत सूचनाओं के बारे में कोई नियम नहीं है.
यह विधेयक व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक-2018 पर आधारित है, जिसे एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया था. इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण ने की थी. चूंकि सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के बीच इस विषय पर विमर्श चल रहा था, इसलिए इसे सरकार के पिछले दौर में रखा नहीं जा सका था. यह कानून पास हो जाने के बाद कम्पनियों को कुछ समय इसके लिए दिया जाएगा, ताकि वे अपनी व्यवस्थाएं कर सकें.