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Tuesday, August 13, 2024

बांग्लादेश का नया निज़ाम और भारत से रिश्ते


बांग्लादेश में डॉ मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार पद की शपथ लेने के बाद देश की कमान संभाल ली है. उन्हें मुख्य सलाहकार कहा गया है, पर व्यावहारिक रूप से यह प्रधानमंत्री का पद है. उनके साथ 13 अन्य सलाहकारों ने भी शपथ ली है. पहले दिन तीन सलाहकार शपथ नहीं ले पाए थे. शायद इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक ले चुके होंगे.

इन्हें प्रधानमंत्री या मंत्री इसलिए नहीं कहा गया है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. देश में अब जो हो रहा है, उसे क्या कहेंगे, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा. पर ज्यादा बड़े सवाल सांविधानिक-संस्थाओं से जुड़े हैं, मसलन अदालतें.   

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को राष्ट्रपति के आदेश से रिहा कर दिया गया. क्या यह संविधान-सम्मत कार्य है? इसी तरह एक अदालत ने मुहम्मद यूनुस को आरोपों से मुक्त कर दिया. क्या यह न्यायिक-कर्म की दृष्टि से उचित है? ऐसे सवाल आज कोई नहीं पूछ रहा है, पर आने वाले समय में पूछे जा सकते हैं.  

न्यायपालिका

आंदोलनकारियों की माँग है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को बर्खास्त किया जाए. यह माँग केवल सुप्रीम कोर्ट तक सीमित रहने वाली नहीं है. अदालतें, मंडलों और जिलों में भी हैं और शिकायतें इनसे भी कम नहीं हैं.

सरकारी विधिक अधिकारियों यानी कि अटॉर्नी जनरल वगैरह को राजनीतिक पहचान के आधार पर नियुक्त किया जाता है. बड़ी संख्या में विधिक अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है, पर अदालतों और जजों का क्या होगा?

डॉ यूनुस की सरकार को कानून-व्यवस्था कायम करने के बाद राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति को सुव्यवस्थित करना होगा. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश कमोबेश मिलती-जुलती समस्याओं के शिकार हैं. यही हाल पड़ोसी देश म्यांमार का भी है.

इन सभी देशों में क्रांतियों ने यथास्थिति को तोड़ा तो है, पर सब के सब असमंजस में हैं. इन ज्यादातर देशों में मालदीव और बांग्लादेश के इंडिया आउट जैसे अभियान चले थे. और अब सब भारत की सहायता भी चाहते हैं. 

Wednesday, August 7, 2024

शेख हसीना का पराभव और अराजकता भारत के लिए अशुभ संकेत


बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने कार्यकाल के आठवें महीने में ही न केवल इस्तीफा देना पड़ा है, देश छोड़कर भी जानापड़ा है. वे दिल्ली आ गई हैं, पर शायद यह अस्थायी मुकाम है.

पहले सुनाई पड़ रहा था कि संभवतः वे लंदन जाएंगी, पर अब सुनाई पड़ रहा है कि ब्रिटेन को कुछ हिचक है. फिलहाल उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत पर है. उनके पराभव से बांग्लादेश की राजनीति में किस प्रकार का बदलाव आएगा, इसका पता नहीं, पर इतना साफ है कि दक्षिण एशिया के निकटतम पड़ोसी देशों में भारत के सबसे ज्यादा दोस्ताना रिश्ते उनके साथ थे.

अब हमें उनके बाद के परिदृश्य के बारे में सोचना होगा. इसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दलों के साथ संपर्क बनाकर रखना होगा. कम से कम उन्हें भारत-विरोधी बनने से रोकना होगा.

आशा थी कि शेख हसीना के नेतृत्व में देश एक स्थिर और विकसित लोकतंत्र के रूप में उभर कर आएगा, पर वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुईं. देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा.

सेना के हाथ में सत्ता बनी रही, तो उससे नई समस्याएं पैदा होंगी और यदि असैनिक सरकार आई, तो उसे लोकतांत्रिक-पारदर्शिता और कट्टरपंथी आक्रामकता के बीच से गुजरना होगा. आंदोलन के एनजीओ टाइप छात्र नेता जैसी बातें कर रहे हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि भविष्य की राह आसान नहीं है.

व्यवस्था या अराजकता?

देश के विभिन्न स्थानों और प्रतिष्ठानों में शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीरों और प्रतिमाओं को तोड़ा गया, अवामी लीग के कार्यालय में आग लगाई गई. सोमवार की दोपहर, बीएनपी, जमाते इस्लामी आंदोलन सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता और नागरिक समाज के प्रतिनिधि ढाका छावनी से एक सशस्त्र बल वाहन में राष्ट्रपति के निवास बंगभवन गए.

राष्ट्रपति, सेना प्रमुख के साथ बंगभवन में हुई इस बैठक में अंतरिम सरकार को लेकर कई फैसले किए गए. बैठक के बाद बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि संसद जल्द ही भंग कर दी जाएगी और अंतरिम सरकार की घोषणा की जाएगी.

Monday, August 5, 2024

फिर से चौराहे पर बांग्लादेश


बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है। ऐसा लगता था कि शेख हसीना के नेतृत्व में देश लोकतांत्रिक राह पर आगे बढ़ेगा, पर वे ऐसा कर पाने में सफल हुईं नहीं। हालांकि इस देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर लगता है कि फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा। उसके बाद लोकतंत्र की वापसी कब होगी और किस रूप में होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि सेना बैरक में कब लौटेगी, कर्फ्यू पूरी तरह से नहीं हटाया गया है, इंटरनेट पूरी तरह से वापस नहीं आया है और शैक्षणिक संस्थान बंद हैं।

शेख हसीना और उनके सलाहकारों ने भी राजनीतिक रूप से गलतियाँ की हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि उन्होंने पिछले 16 वर्षों में लोकतांत्रिक-व्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश नहीं की और जनमत को महत्व नहीं दिया। अवामी लीग जनता के मुद्दों को नजरंदाज़ करती रही। आरक्षण विरोधी आंदोलन को 'सरकार विरोधी आंदोलन' माना गया। उसे केवल कोटा सुधार आंदोलन के रूप में नहीं देखा। शेख हसीना के बेटे और उनके आईटी सलाहकार सजीब वाजेद जॉय ने सेना और न्याय-व्यवस्था से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया है कि कोई भी अनिर्वाचित देश में नहीं आनी चाहिए। सवाल है कि क्या निकट भविष्य में चुनाव संभव है? भारत की दृष्टि से यह परेशानी का समय है।

Thursday, September 8, 2022

शेख हसीना की राजनीतिक सफलता पर निर्भर हैं भारत-बांग्लादेश रिश्ते


शेख हसीना और नरेंद्र मोदी की मुलाकात और दोनों देशों के बीच हुए सात समझौतों से ज्यादा चार दिन की इस यात्रा का राजनीतिक लिहाज से महत्व है. दोनों की कोशिश है कि विवाद के मसलों को हल करते हुए सहयोग के ऐसे समझौते हों, जिनसे आर्थिक-विकास के रास्ते खुलें.

 

बांग्लादेश में अगले साल के अंत में आम चुनाव हैं और उसके तीन-चार महीने बाद भारत में. दोनों चुनावों को ये रिश्ते भी प्रभावित करेंगे. दोनों सरकारें अपनी वापसी के लिए एक-दूसरे की सहायता करना चाहेंगी.  

 

पिछले महीने बांग्लादेश के विदेशमंत्री अब्दुल मोमिन ने एक रैली में कहा था कि भारत को कोशिश करनी चाहिए कि शेख हसीना फिर से जीतकर आएं, ताकि इस क्षेत्र में स्थिरता कायम रहे. दो राय नहीं कि शेख हसीना के कारण दोनों देशों के रिश्ते सुधरे हैं और आज दक्षिण एशिया में भारत का सबसे करीबी देश बांग्लादेश है.

 

विवादों का निपटारा

असम के एनआरसी और हाल में रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े विवादों और बांग्लादेश में कट्टरपंथियों के भारत-विरोधी आंदोलनों के बावजूद दोनों देशों ने धैर्य के साथ मामले को थामा है.

 

दोनों देशों ने सीमा से जुड़े तकरीबन सभी मामलों को सुलझा लिया है. अलबत्ता तीस्ता जैसे विवादों को सुलझाने की अभी जरूरत है. इन रिश्तों में चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, पर बांग्ला सरकार ने बड़ी सफाई से संतुलन बनाया है.

 

बेहतर कनेक्टिविटी

पाकिस्तान के साथ बिगड़े रिश्तों के कारण पश्चिम में भारत की कनेक्टिविटी लगभग शून्य है, जबकि पूर्व में काफी अच्छी है. बांग्लादेश के साथ भारत रेल, सड़क और जलमार्ग से जुड़ा है. चटगाँव बंदरगाह के मार्फत भारत अपने पूर्वोत्तर के अलावा दक्षिण पूर्व के देशों से कारोबार कर सकता है.

 

इसी तरह बांग्लादेश का नेपाल और भूटान के साथ कारोबार भारत के माध्यम से हो रहा है. बांग्लादेश की इच्छा भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग कार्यक्रम में शामिल होने की इच्छा भी है.

 

शेख हसीना सरकार को आर्थिक मोर्चे पर जो सफलता मिली है, वह उसका सबसे बड़ा राजनीतिक-संबल है. भारत के साथ विवादों के निपटारे ने इसमें मदद की है. इन रिश्तों में विलक्षणता है.

 

सांस्कृतिक समानता

दोनों एक-दूसरे के लिए ‘विदेश’ नहीं हैं. 1947 में जब पाकिस्तान बना था, तब वह ‘भारत’ की एंटी-थीसिस था, और आज भी दोनों के अंतर्विरोधी रिश्ते हैं. पर ‘सकल-बांग्ला’ परिवेश में बांग्लादेश, ‘भारत’ जैसा लगता है, विरोधी नहीं.

 

बेशक वहाँ भी भारत-विरोध है, पर सरकार के नियंत्रण में है. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि पिछले एक दशक में शेख हसीना के कारण भारत का बांग्लादेश पर प्रभाव बहुत बढ़ा है. क्या यह मैत्री केवल शेख हसीना की वजह से है? ऐसा है, तो कभी नेतृत्व बदला तो क्या होगा?

 

यह केवल हसीना शेख तक सीमित मसला नहीं है. अवामी लीग केवल एक नेता की पार्टी नहीं है. पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी काफी लोग बांग्लादेश की स्थापना को भारत की साजिश मानते हैं. ज़ुल्फिकार अली भुट्टो या शेख मुजीब की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं या ऐसा ही कुछ और.

 

आर्थिक सफलता

केवल साजिशों की भूमिका थी, तो बांग्लादेश 50 साल तक बचा कैसे रहा? बचा ही नहीं रहा, बल्कि आर्थिक और सामाजिक विकास की कसौटी पर वह पाकिस्तान को काफी पीछे छोड़ चुका है, जबकि 1971 तक वह पश्चिमी पाकिस्तान से काफी पीछे था.