दुनिया के किसी
भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं
की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे
पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस
सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई
प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को
याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी
विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें
सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।
जीएसएलवी की
चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की
कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग
मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़
से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं
देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए।
पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन
समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।