जम्मू-कश्मीर इस महीने हुए डीडीसी चुनाव में गुपकार गठबंधन (पीएजीडी) स्पष्ट रूप से जीत मिली है, पर बीजेपी इस बात पर संतोष हो सकता है कि उसे घाटी में प्रवेश का मौका मिला है। चूंकि राज्य में अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय बनाए जाने के बाद ये पहले चुनाव थे, इसलिए एक बात यह भी स्थापित हुई है कि इस केंद्र शासित राज्य में धीरे-धीरे राजनीतिक स्थिरता आ रही है। एक तरह से इस चुनाव को उस फैसले पर जनमत संग्रह भी मान सकते हैं।
इसमें एक बात यह साफ हुई कि कश्मीर की मुख्यधारा की जो पार्टियाँ
पीएजीडी के रूप में एकसाथ आई हैं, उनका जनता के साथ जुड़ाव बना हुआ है। अलबत्ता
बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में उस किस्म की सफलता नहीं मिली, जिसकी उम्मीद थी।
बीजेपी को उम्मीद थी कि घाटी की पार्टियाँ इस चुनाव का बहिष्कार करेंगी, पर वैसा
हुआ नहीं। बहरहाल घाटी के इलाके में पीएजीडी
की जीत का मतलब है कि जनता राज्य के विशेष दर्जे और पूर्ण राज्य की बहाली की
समर्थक है, जो पीएजीडी का एजेंडा है।
जिले की असेंबली
इन चुनावों में सीट जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण पूरे जिले में सफलता हासिल करना है। पीएजीडी का कश्मीर के 10 में से 9 जिलों पर नियंत्रण स्थापित हो गया है, जबकि बीजेपी को जम्मू क्षेत्र में केवल छह जिलों पर ही सफलता मिली है। कुल मिलाकर जो 20 डीडीसी गठित होंगी, उनमें से 12 या 13 पर पीएजीडी और कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। इस चुनाव की निष्पक्षता भी साबित हुई है, जिसका श्रेय उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को जाता है। पर सवाल आगे का है। इस नई संस्था की कश्मीर में भूमिका क्या होगी और विधानसभा के चुनाव कब होंगे?