इस साल मार्च में जब पहली बार लॉकडाउन घोषित किया गया, तब बहुत से लोगों को पहली नजर में वह पिकनिक जैसा लगा था। काफी लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, आओ घर में बैठकर घर का कुछ खाएं। काफी लोगों ने लॉकडाउन का आनंद लिया। फेसबुक पर रेसिपी शेयर की जाने लगीं। पर जैसे ही बीमारी बढ़ने और मौत की खबरें आने लगीं, लोगों के मन में दहशत ने धीरे-धीरे प्रवेश करना शुरू दिया। मॉल, रेस्त्रां और सिनेमाघरों के बंद होने से नौजवानों की पीढ़ी को धक्का लगा। अचानक कई तरह की सेवाएं खत्म हो गईं। सिर और दाढ़ी के बाल बढ़ने लगे। ब्यूटी पार्लर बंद हो गए। ज़ोमैटो और स्विगी की सेवाएं बंद। पीत्ज़ा और बर्गर की सप्लाई बंद। अस्पतालों में सिवा कोरोना के हर तरह का इलाज ठप।
कोविड-19 ने
हमारे जीवन और समाज को कितने तरीके से बदला इसका पता बरसों बाद लगेगा। भावनात्मक
बदलावों को मुखर होकर सामने आने में भी समय लगता है। इस दौरान छोटे बच्चों का जो
भावनात्मक विकास हुआ है, उसकी अभिव्यक्ति भी एक पीढ़ी बाद पता लगेगी। इतना समझ में
आता है कि जीवन और समाज में किसी एक वैश्विक घटना का इतना गहरा असर शायद इसके पहले
कभी नहीं हुआ होगा। पहले और दूसरे विश्व युद्ध का भी नहीं। इसका असर जीवन-शैली,
रहन-सहन और मनोभावों के अलावा उद्योग-व्यापार और तकनीक पर भी पड़ा है।
ठहर गई जिंदगी
विमान सेवाएं शुरू होने के बाद दुनिया के इतिहास में पहला मौका था, जब सारी दुनिया की सेवाएं एकबारगी बंद हो गईं। रेलगाड़ियाँ, मोटरगाड़ियाँ थम गईं। गोष्ठियाँ, सभाएं, समारोह, नाटक, सिनेमा सब बंद। खेल के मैदानों में सन्नाटा छा गया। विश्व कप क्रिकेट स्थगित, इस साल जापान में जो ओलिंपिक खेल होने वाले थे, टल गए।