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Wednesday, February 22, 2023

साम्राज्यवाद के शिकार भारत को साम्राज्यवादी नसीहतें

कार्बन उत्सर्जन में भारत की भूमिका को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स का कार्टून 

तमाम विफलताओं के बावजूद भारत की ताकत है उसका लोकतंत्र. सन 1947 में भारत का एकीकरण इसलिए ज्यादा दिक्कत तलब नहीं हुआ, क्योंकि भारत एक अवधारणा के रूप में देश के लोगों के मन में पहले से मौजूद था. पूरे एशिया में सुदूर पूर्व के जापान, ताइवान और दक्षिण कोरिया को छोड़ दें, तो भारत अकेला देश है, जहाँ पिछले 75 से ज्यादा वर्षों में लोकतांत्रिक-व्यवस्था निर्बाध चल रही है.

अब अपने आसपास देखें. पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव में सत्ता-परिवर्तन की प्रक्रिया सुचारु नहीं रही है. सत्ता-परिवर्तन की बात ही नहीं है, देश की लोकतांत्रिक-संस्थाएं काम कर रही हैं और क्रमशः मजबूत भी होती जा रही हैं. लोकतंत्र की ताकत उसकी संस्थाओं के साथ-साथ जनता की जागरूकता पर निर्भर करती है.

इस जागरूकता के लिए शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय-प्रणाली और नागरिकों की समृद्धि की जरूरत होती है. बहुत सी कसौटियों पर हमारा लोकतंत्र अभी उतना विकसित नहीं है कि उसकी तुलना पश्चिमी देशों से की जा सके, पर पिछले 75 वर्षों में इन सभी मानकों पर सुधार हुआ है. सबसे पहले इस बात को स्वीकार करें कि भारत की काफी समस्याएं अंग्रेजी-साम्राज्यवाद की देन हैं.

लुटा-पिटा देश

15 अगस्त, 1947 को जो भारत आजाद हुआ, वह लुटा-पिटा और बेहद गरीब देश था. अंग्रेजी-राज ने उसे उद्योग-विहीन कर दिया था और जाते-जाते विभाजित भी. सन 1700 में वैश्विक-व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 22.6 फीसदी थी, जो पूरे यूरोप की हिस्सेदारी (23.3) के करीब-करीब बराबर थी. यह हिस्सेदारी 1952 में केवल 3.2 फीसदी रह गई थी.

इतिहास के इस पहिए को उल्टा घुमाने की जिम्मेदारी आधुनिक भारत पर है. क्या हम ऐसा कर सकते हैं? आप पूछेंगे कि इस समय यह सवाल क्यों? इस समय अचानक हम दो विपरीत-परिस्थितियों के बीच आ गए हैं. एक तरफ भारत जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन की अध्यक्षता करते हुए विदेशी-सहयोग के रास्ते खोज रहा है, वहीं भारतीय लोकतंत्र में विदेशी-हस्तक्षेप की खबर सुर्खियों में है.

सोरोस का बयान

गत 16 फरवरी को म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस से पहले टेक्नीकल यूनिवर्सिटी ऑफ म्यूनिख में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अमेरिकी पूँजीपति जॉर्ज सोरोस ने अपने चेहरे पर से पर्दा हटाते हुए कहा कि हम भारतीय लोकतंत्र के पुनरुत्थान के लिए कोशिशें कर रहे हैं. कैसा पुनरुत्थान, क्या हमारा लोकतंत्र सोया हुआ है?   

सोरोस के बयान के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और विदेशमंत्री एस जयशंकर ने सोरोस को जवाब दिए हैं. शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में रायसीना डायलॉग के उद्घाटन सत्र के दौरान जयशंकर ने कहा कि सोरोस की टिप्पणी ठेठ 'यूरो अटलांटिक नज़रिये' वाली है. वे न्यूयॉर्क में बैठकर मान लेते हैं कि पूरी दुनिया की गति उनके नज़रिए से तय होगा...वे बूढ़े, रईस, हठधर्मी और ख़तरनाक हैं.

जयशंकर ने यह भी कहा कि आप अफ़वाहबाज़ी करेंगे कि दसियों लाख लोग अपनी नागरिकता से हाथ धो बैठेंगे तो यह हमारे सामाजिक ताने-बाने को चोट पहुंचाएगा. ये लोग नैरेटिव बनाने पर पैसा लगा रहे हैं. वे मानते हैं कि उनका पसंदीदा व्यक्ति जीते तो चुनाव अच्छा है और हारे, तो कहेंगे कि लोकतंत्र खराब है. गजब है कि यह सब कुछ खुले समाज की वकालत के बहाने किया जाता है. भारत के मतदाता फैसला करेंगे कि देश कैसे चलेगा.  

Tuesday, May 4, 2021

अमेरिकी समाज में बैठी कड़वाहट को कैसे दूर करेंगे बाइडेन?


अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की पिछले साल हुई मौत के मामले में अमेरिका की एक अदालत में पूर्व पुलिस अधिकारी डेरेक शॉविन को हत्या का दोषी माने जाने के बाद राष्ट्रपति जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने जॉर्ज फ़्लॉयड के परिवार से फोन पर बात की। बाइडेन ने टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश में कहा, कम से कम अब न्याय तो मिला, पर हमें अभी बहुत कुछ करना है। यह फ़ैसला सिस्टम में मौजूद वास्तविक नस्लवाद से निपटने का पहला क़दम साबित होने वाला है। सिस्टम में बैठा नस्लवाद देश के ज़मीर पर धब्बा है।

पुलिस-हिरासत में होने वाली मौतों के मामले में अमेरिकी अदालतें पुलिस अधिकारियों को बहुत कम दोषी ठहराती रही हैं। डेरेक शॉविन के इस मामले के बारे में कहा जा रहा है कि इससे पता लगेगा कि अमेरिका की विधि-व्यवस्था  भविष्य में ऐसे मामलों से किस तरह से निपटेगी। इस फ़ैसले के बाद अदालत के बाहर उत्सव का माहौल था। लोग मुट्ठियां भींचकर ‘ब्लैक पावर! ब्लैक पावर!’ चिल्ला रहे थे।